Friday 5 April 2013

महादलित कैलू मांझी का पार्थिव शरीर को दफनाया




महादलित कैलू मांझी का पार्थिव शरीर को दफनाया

गया। पहले हम क्रिकेट खेलेंगे। इसके बाद ही किसी को मैदान में दफनाने देंगे। क्रिकेट को जेंटल मैनों का खेल कहा जाता है। जो बयान और नादानी क्रिकेट खिलाड़ियों ने कर दिखाया वह मानवाधिकार का उल्लघंन है। आजीवन घौंस जमाने वाले ने मरने के बाद घौंस जमाने से बाज नहीं आये। ऐसी हरकत की उम्मीद नहीं की जा सकती है। परन्तु सचिन और धोनी के दीवानों ने जमकर अनावश्यक तनाव उत्पन्न कर दिये। ऐसी परिस्थिति में सामाजिक कार्यकर्ता को हस्तक्षेप करना पड़ा तब जाकर महादलित कैलू मांझी का पार्थिव शरीर को दफनाया जा सका।

  बाराचट्टी प्रखंड के विबिपेसरा पंचायत के करमा गांव में हेदी मांझी के पुत्र कैलू मांझी को टी.बी. बीमारी हो गया था। उसका इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र से चल रहा था। कुछ दिनों तक टी.बी. की दवाई खाने के बाद स्वस्थ हो गया। घर-गृहस्थी चलाने में जूट गया। कड़ी परिश्रम करके मजदूरी करने लगा। मजदूरी में जो रकम मिलती, उससे परिवार के दो जून की रोटी जुगाड़ करने लगा। ठीक तरह से टी.बी. रोग की दवा नहीं खाने और पौष्टिक आहार नहीं लेने के कारण फिर से कैलू मांझी  पटका गया। इस समय बुरी तरह से टी.बी. के जीवाणुओं ने धावा बोल दिया। बीमारी काफी उवाल पर गया। इस बीच गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति के कार्यकर्ता रामजी कुमार ने सरकारी हॉस्पीटल में ले गये। वहां से दवाई मिली। टी.बी. के उवाल से टी.बी.रोधी दवा निःसहाय साबित हो गया। इसके कारण कैलू मांझी की टी.बी.बीमारी से मौत हो गयी।

  कुछ दूरी पर मैदान है। जहां पर महादलित परिवार के परिजनों की मौत के बाद दफन किया जाता है। कुछ महादलित मृत रिश्तेदारों को जलाते भी हैं। यह सब  आमदनी पर निर्भर होता है। कैलू मांझी को दफन करने से उत्पन्न समस्याओं को दूर करने के लिए गांव के बुद्धिजीवी बैठक किये। इसमें हिन्दु-मुसलमान भाई उपस्थित हुए। यह निर्णय लिया गया कि मैदान में दफन एवं दाह संस्कार की रीति चलती रहेगी। इसमें कोई और किसी को बाधक बनने की जरूरत नहीं हैं। अगर कोई विध्न डालेंगे तो उस पर कानूनी कार्रवाई संभव हैं।

  सामाजिक कार्यकर्ता अजय मांझी ने कहा कि गरीबी और लाचारी के कारण महादलित मुसहर समुदाय हिन्दू होने पर भी मिट्टी की कटाई करके शव को दफन करते हैं। जिस प्रकार मुस्लिम और क्रिश्चियन समुदाय के लोग अपने मृत परिजनों को कब्रिस्तान में दफन करते हैं। दोनों धार्मिक अल्पसंख्यकों की कब्रिस्थान की चहारदीवारी करने के लिए विशेष राशि आंवटित की जाती है। मगर मुसहर समुदाय के दफन करने वाली (स्थल) की जमीन की चहारदीवारी नहीं की जाती है। इसके कारण हमेंशा विवाद उत्पन्न हो जाता है। और तो और बिल्डरों की भी पैनी निगाहें महादलित मुसहर समुदाय की दफन करने वाली जमीन पर पड़ी रहती है। कुछ साल पहले बेलीरोड,पटना में स्थित जगदेव पथ मुसहरी की एक महिला की मौत हो गयी। जब मुसहरी के महादलितों ने दफन करने वाली जमीन पर आये बिल्डरों को खदेड़ने के लिए आगे बढ़े थे। उन्होंने सरकार से मांग की है कि महादलित मुसहरों की दफन करने वाली जमीन को भी घेराबंदी कराये।