Tuesday 22 October 2013

दलित महिलाओं के प्रति होने वाले हिंसा पर जिला स्तरीय परिचर्चा संपन्न





जमुई। ऑक्सफैम इंडिया के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति के द्वारा जमुई जिले के सिकंदरा प्रखंड के कुछ पंचायतों में गा्रमोत्थान का कार्य किया जाता है। कुछ पंचायतों के गांवों में ग्रामोत्थान कार्य करने के दौरान दिखा कि महिलाओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। खासकर सबसे अधिक दलित महिलाओं के साथ हो रहा है। इन प्रताड़ित महिलाओं की आपबीती पर एक जिला स्तरीय परिचर्चा आयोजित की गयी।
 स्थानीय नीरज गेस्ट हाउस में आयोजित इस परिचर्चा में बलात्कारी मालती देवी ने कहा कि पंचायत के ही गण प्रतिनिधि ही बलात्कार कर दिया। बेहतर ढंग से न्याय नहीं मिला। सांझो देवी को सरेआम डायन कहकर अपमानित और प्रताड़ित किया जाने लगा है। जातिगत हिंसा की शिकार मानो देवी ने आपबीती बयान कर दी। शराबी पति के अत्याचार से पीड़ित फुलवा देवी ने कहा कि शरीबी पति मारते-पीटते रहता है।
इस अवसर पर जिला हेल्पलाइन की प्रभारी प्रीति कुमारी, सरपंच मोहम्मद सम्फुद्दीन, निरंजन सिन्हा,विधु आदि ने विचार व्यक्त किया। अंत में जिला स्तरीय परिचर्चा में दलित महिलाओं के प्रति होने वाले हिंसा के आलोक में 15 तरह की अनुशंषा पेश कर पारित की गयी। इसे परिचर्चा में शामिल बुद्धिजीवियों ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। इन अनुशंषाओं को ऑक्सफैम इंडिया को अग्रसारित कर दिया गया है। जो 23 अक्तूबर,2013 को पटना में आयोजित जन सुनवाई के दौरान निकलने वाली अनुशंषाओं को लेकर सर्वमान्य अनुशंषा पारित कर सरकार के पास अमल और पहल करने के लिए प्रेषित कर दी जाएगी। अनुग्रह नारायण सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान में 23 अक्तूबर को दलित महिलाओं पर उत्पीड़न और न्याय व्यवस्था पर जन सुनवाई होगी। इस जन सुनवाई में जमुई जिले में जिला स्तरीय परिचर्चा में आपबीती बयान करने वाली मालती देवी और सांझो देवी अपनी बात रखेंगी।
जिला स्तरीय परिचर्चा के दौरान ली गयी अनुशंषाः 
गांवघर की दलित महिलाओं के बीच में सरकार के द्वारा गठित महिला थाना के बारे में जानकारी देकर लोगों को जागरूक करना। सरकार के द्वारा गांवघर के नुक्कड़ पर खुली सरकारी एवं गैर सरकारी दारू की दुकान को बंद कराया जाए। समाज के द्वारा दलित महिलाएं और दलित बच्चियों को शिक्षित करना। दलित महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए गांव-गांव में महिला संगठन की जरूरत है और उसे मजबूत बनाया जाए। घरेलू हिंसा से पीड़ित दलित और बुजुर्ग महिलाओं के लिए सहायता केन्द्र खोला जाए। ऐसे व्यक्तियों के लिए आजीविका चलाने के लिए प्रत्येक माह 1500 सौ रू. बतौर पेंशन देने की व्यवस्था की जाए। दलित महिलाओं के बीच में हेल्पलाइन के प्रति जानकारी देना और महिलाओं को जागरूक करने की जरूरत है। घरेलू हिंसा या अन्य मसले से पीड़ित महिलाओं को सीधे स्थानीय थाना में जाकर फरियाद दर्ज करवाने के लिए जागरूक करना। दलित महिलाओं की बच्चियों के लिए गांव में ही दलित छात्रावास /विघालय निर्माण करने की जरूरत है। स्थानीय स्तर के प्रशासनिक पदाधिकारियों को दलित महिलाा हिंसा के प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। स्थानीय प्रशासनिक ढांचा में हिंसा पीड़ित महिला के प्रति संवेदनशील और जागरूक करने की आवश्यकता है। दलित महिलाओं एवं लड़कियों पर होने वाले अत्याचार एवं हिंसा के प्रति जागरूक स्थानीय जन प्रतिनिधियों को शिक्षित कर पंचायती राज व्यवस्था को संवेदनशील करना। हिंसा से पीड़ित महिला को क्षमतानुसार रोजगार, प्रशिक्षण एवं स्वरोजगार हेतु आर्थिक सहायता करने की व्यवस्था करनी चाहिए। हिंसा से पीड़ित महिलाओं को झोपड़ीनुमा आवास के बदले इंदिरा आवास योजना के तहत मकान बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए। हिंसा से पीड़ित महिलाओं का तीन माह के अंदर फोलोअप करने की जरूरत है। सरकार के द्वारा हिंसा से पीड़ित महिलाओं एवं लड़कियों को लगातार छह माह तक स्वास्थ्य सुविधा एवं नियमित भोजन देने की व्यवस्था करनी चाहिए।
दलित महिलाओं के प्रति होने वाले हिंसा के संदर्भ में शिकायत निवारण तंत्र तक पहुंच एवं परिचर्चा के उद्देश्य पर कार्यक्रम आयोजक मंजू डुंगडुंग ने कहा कि आज देशभर में महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय है। सामाजिक,आर्थिक, शैक्षणिक,राजनीतिक आदि स्तर पर पिछड़ गयी हैं। उन्हें समाज में हर स्तर पर बराबरी का दर्जा एवं मान सम्मान मिले। इसके लिए लगातार संघर्ष कर रही हैं। प्रगति ग्रामीण विकास समिति एवं ऑक्सफैम इंडिया के सहयोग से दलित महिलाओं के प्रति होने वाले हिंसा पर जिला स्तरीय परिचर्चा की गयी। कारण कि दलित महिला गरीब में भी महिला हैं।  महिला होने के नाते पति द्वारा शारीरिक शोषण,मानसिक शोषन एवं आर्थिक शोषन हो रहा है। वह घरेलू हिंसा का शिकार है। इसके साथ-साथ समाज के अन्य जाति के दबंग पुरूषों द्वारा भी जातिगत हिंसा, आर्थिक हिंसा एवं यौनिक हिंसा के शिकार हो जाती है। यह हिंसा एवं अत्याचार रूकने के बजाए प्रतिदिनि बढ़ रहा है।
इन क्षेत्रों में दलित महिलाओं की समस्याओं का अध्ययन करने के दरम्यान पाया गया कि दलित महिलाएं हिंसा अथवा अत्याचार से संबंधि तमामले को निपटाने के लिए सरकार के द्वारा गठित महिला हेल्प लाइन और महिला थाना में नहीं जाती हैं। महिलाओं के लिए सुलभ न्याय दिलवाने की भी व्यवस्था की गयी है। इन प्रभावित महिलाओं को सरकारी स्तर पर गठित विभागों तक पहुंचाना ही अपने आप में चुनौती है। इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार करके इसे सुलभ बनाना और लोगों के बीच में जाकर विविध तरह की जानकारी शेयर करके कानूनी लाभ दिलवाया जा सकता है। इसकी संभावना तलाशी जा रही है। इसमें लोकतंत्र के सजग प्रहरी कार्यपालिका, न्यायापालिका, विधायिका और प्रजातंत्र के चतुर्थ स्तंभ पत्रकारिता के सहयोग की जरूरत है। सभी के सहयोग से दलित महिलाओं पर होने वाले संगठित हिंसा को कम कर सकते हैं।

आलोक कुमार