पटना।
देश के जाने
माने सामाजिक-राजनीतिक
कार्यकर्ता और देशभर
में सूचना के
अधिकार एवं काम
के अधिकार आंदोलन
के अग्रणी निखिल
डे की मौजूदगी
में बिहार जन
संसद का दूसरा
दिन राजधानी के
आर.ब्लॉक में
समाप्त हो गया।
मौके
पर एकता परिषद
के राष्ट्रीय समन्वयक
प्रदीप प्रियदर्शी ने कहा
कि गरीबी उन्मूलन
के संदर्भ में
जमीन के महत्व
का निर्धारण अर्थशास्त्र
के शास्त्रीय सिद्धांतों
के मुताबिक नहीं
जा सकता। एक
भूमिहीन व्यक्ति के लिए
जमीन का महत्व
सिर्फ आजीविका के
साधन या वासस्थान
के रूप में
ही नहीं बल्कि
पहचान,सम्मान एवं
सुरक्षा के आधार
के रूप में
कई गुना ज्यादा
है।
सर्वविदित
है कि बिहार
जैसे आर्थिक रूप
से पिछड़े राज्य
में कृषि ही
बहुसंख्यक आबादी के जीवन
यापन का आधार
है। ग्रामीण आबादी
खेती के सहारे
ही अपना गुजारा
चलाती है,चाहे
वह खेत मालिक
हो, भूमिहीन खेतिहर हो या
बटाईदार। एन एस
एस ओ द्वारा
1999-2000 में संचालित सर्वे के
मुताबिक बिहार के कुल
खेत मजदूरों का
76.6 प्रतिशत पूर्णतः
भूमिहीन है। भूमिहीनता
के मामले में
बिहार अन्य समुदाय
की तुलना में
दलितों की स्थिति
बहुत ज्यादा चिंताजनक
है। वहीं भूमि
वितरण की विषमताओं
को दूर करने
में बिहार में
सरकारी प्रयास अततक अप्रयाप्त
रहे हैं। जिस
वजह से ग्रामीण
क्षेत्रों में हिंसा
प्रतिहिंसा ज्यादा हुई है।

वरिष्ठ
सामाजिक कार्यकर्ता रणजीव , भोजन
के अधिकार और
लोक परिषद से
जुड़े रूपेश, जन
आंदोलनों के राष्ट्रीय
समन्वयक की राष्ट्रीय
संयोजक कामायनी स्वामी, प्रो0
जावेद अख्तर, प्रो0
विनय कंठ, फादर
फिलिप मंथरा,अधिवक्ता
नीतिरंजन झा समेत
शहर के कई
बुद्धिजीवियों ने शामिल
होकर विचार व्यक्त
किए।
Alok
Kumar
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