Wednesday 8 June 2016

सेवा से हटाने का साक्ष्य आजतक नहीं दिया गया


पटना। हमलोग बहुत ही गर्व से कहते हैं कि हमलोगों का लिखित संविधान है। संविधान सम्मत कानून से देश-प्रदेश चल रहा है। दुर्भाग्य से कदमकुआँ के आसपास में स्थित राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज-अस्पताल के अधीक्षक ने 7 मई 1986 को लिपिक-सह-टंकक के पद पर बहाल आई0एस0सी0उर्त्तीण प्रह्लाद पाण्डेय को मौखिक आदेश निर्गत कर नौकरी से बाहर निकालकर जिदंगी बर्बाद कर दिया। वह इतना ही दुःसाहस किया कि अधिकारियों द्वारा माँग की गयी सेवा शुल्क देने से मुकर गया। जिसका खामियाजा वह 30 साल से भुगत रहा हैं। वह 30 साल से हर द्वार जाकर वेतनादि भुगतान करवाने का आग्रह करता हैं। सभी द्वार के लोग बापू जी के तीन बंदर की तरह भूमिका अदा करने लगते हैं। 

राजधानी के विष्णुपुर पकड़ी,रोड नम्बर 1, भाया अनिसाबाद में रहते हैं प्रह्लाद पाण्डेय। इनका जन्म 8 जुलाई 1962 में हुआ है। आई0एस0सी0 तक पढ़े हैं। 24 साल की अवस्था में कदमकुआँ के आसपास में स्थित राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज-अस्पताल में 7 मई 1986 को लिपिक-सह-टंकक के पद पर बहाल कर लिये गये। वेतनमान 580-860 निर्धारित किया गया। इनके साथ 7 अन्य कर्मियों को भी बहाल किया गया। अस्पताल के अधिकारियों द्वारा बड़े पैमाने पर सेवा शुल्क गड़क लिया गया। तब जाकर 7 कर्मियों को नौकरी में रख ली गयी। सेवा शुल्क नहीं देने के कारण प्रह्लाद पाण्डेय को लटका दिया गया। नूतन वर्ष 1 जनवरी 1987 को मौखिक आदेश के बल पर प्रह्लाद पाण्डेय को नौकरी से बाहर कर दिया गया। मौखिक आदेश से विरमित होने वाले प्रह्लाद पाण्डेय ने 30 साल से नियमित अस्पताल जाते हैं। विरोध में एक शिकायत पत्र छोड़ जाते हैं। उसमें उल्लेख करते हैं कि आजतक किसी तरह की शिकायत भी नहीं रहने से नौकरी से क्यों निकाल दिया? इस विरोध को अधिकारियों ने प्रह्लाद पाण्डेय को मानसिक रोगी करार दिया है। इस बाबत अस्पताल के अधीक्षक ही चिकित्सक बन जाते हैं। अस्पताल को किसी चिकित्सक का प्रमाण-पत्र उपलब्ध नहीं है। 

अधीक्षक द्वारा 7 मई 1986 को मौखिक रूप से लिपिक-सह-टंकक के पद विरमित होने वाले प्रह्लाद पाण्डेय लोक शिकायत निवारण कानून के तहत आवेदन दिया है। संचार विभाग में आवेदन दिया। इस आवेदन में कहा गया है कि मई 1986 का वेतन भुगतान आजतक नहीं किया गया है जबकि अधीक्षक द्वारा मौखिक रूप से कहते हैं कि वेतन भुगतान कर दिया गया है। इस बाबत साक्ष्य आजतक नहीं दिये। जो झूठ का सुनिश्चित प्रमाण है। बिना संवैधानिक आदेश पत्र निर्गत के ही सेवा से वंचित कर वेतन बंद कर दी गयी है जबकि अधीक्षक द्वारा सेवा से हटाये जाना कहना एवं सेवा से हटाने का साक्ष्य आजतक नहीं दिया गया। जानबुझकर भूखे मारने का, आर्थिक,मानसिक एवं शारीरिक कष्ट देने का यह सुनिश्चित प्रमाण है। 

आगे कहते हैं कि हमसे कनीय सात कर्मचारियों अखिलेश सिंह, देवकुमार सिंह,साजू फ्रांसिस, वृजबिहारी पाठक आदि समेत 7 कर्मी बहाल हुए। इनकी सेवा लेनदेन के बाद नियमित कर वेतन भुगतान की जा रही है, जिसका जिक्र बिन्दूवार प्रतिवेदन में नहीं किया जा रहा है जो विभेद एवं भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 एवं 16 को उल्लघंन का सुनिश्चित प्रमाण है। संपूर्ण मामले को राज्य मानवाधिकार आयोग को कार्रवाई के लिए प्रेषित है। उसी तरह सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देने की मांग की जाती है तो वस्तुपरक जवाब देने के बदले अन्य तरह का जवाब देते हैं। प्रथम अपील का भी परिणाम सामने नहीं आता है। 

इस आफत में पत्नी किरण देवी और 4 बच्चे सांत्वना देते हैं। गांवघर के बच्चों को पढ़ाते हैं। इसी से दो जून की रोटी का जुगाड़ हो जाता है। कई करोड़ रूपये की देनदारी है। कर्ज लेकर बच्चों की शादी करते हैं। सूबे के सीएम, मंत्री के अलावे निदेशक,देसी चिकित्सा, संयुक्त सचिव, प्रधान सचिव आदि को आवेदन देकर उचित कार्रवाई करने की मांग की गयी है। जिसपर कार्रवाई नहीं होने के बाद लोक शिकायत निवारण कानून का सहारा ले रहे हैं। 60 दिनों के अंदर पता चल पायेगा। प्रथम और द्वितीय अपील करने का प्रावधान है। 

आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना। 

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