पटना. भाजपा का उन्मादी साम्प्रदायिक अभियान जारी है. इसने जमीनी स्तर पर विमर्श को बुरी तरह प्रभावित किया है. इस विमर्श को बदलकर ही भाजपा के उन्मादी अभियान को रोका जा सकता है. नीतीशजी के आधार में जो गिरावट आ रही है,उसे भाजपा जोड़ने में जी जान से लगी है. उत्तर बिहार-पूर्वी बिहार की स्थिति तो और चिंताजनक है. समस्तीपुर की हालिया घटनाओं और रामनवमी के दिन घटी घटनाओं ने तो लोकतांत्रिक प्रगतिशील समूहों के समक्ष अभूतपूर्व चुनौतियां पेश की हैं.यह सोच कामरेड धीरेंद्र झा का है.
राजनीतिक परिस्थिति की दरपेश चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये विपक्ष की ताकतों को ज्यादा गंभीर होना होगा.समावेशी,लोकतांत्रिक और पारदर्शी मूल्यबोधों के आधार पर गठबंधन राजनीति को मजबूती देनी होगी. प्रतीकात्मकता के साथ साथ सामाजिक न्याय के मौलिक मुद्दों पर आंदोलनात्मक धार देनी होगी.आमजन की कठिन होती जिन्दगी के बरक्स महंगाई-बेरोजगारी को आंदोलन का मुद्दा बनाना होगा. शिक्षा और जमीन से बेदखली आज के समय में अहम मुद्दा है जो सामाजिक न्याय और समतामूलक समाज बनाने के सपने के बुनियाद पर चोट करता है.
ऐसी स्थिति में महागठबंधन को दरकिनार कर राजद की ओर से एकतरफा प्रत्याशियों की घोषणा करना दुर्भाग्यपूर्ण है.परिषद की तीसरी सीट पर उनके द्वारा लिया गया निर्णय तो गठबंधन धर्म की बुनियाद को नकारना है. राजद यह कह सकती थी कि माले और कांग्रेस मिलकर तीसरी सीट का फैसला कर ले. बिहार में भाजपा अब नीतीश कुमार को किनारे कर स्वतंत्र कब्जा करने की रणनीति के तहत काम कर रही है.ऐसी स्थिति में सबों को जवाबदेही के साथ काम करना होगा और इसमें सबसे बड़े दल की भूमिका सबसे अहम है. राजद के अनुभवी नेतृत्व को तात्कालिकता की जगह दीर्घकालिकता को तब्बजो देनी चाहिए.वादाखिलाफी के खिलाफ न्यायपूर्ण दावेदारी की न्यायपूर्ण आवाज को भाकपा माले बुलंद करती रहेगी!
आलोक कुमार
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