पटनाः बिहार में महागठबंधन की सरकार है.बेरोजगारों को नीतीश-तेजस्वी सरकार ने 20 लाख नौकरी और रोजगार देने का वादा कर चुके हैं. इस संदर्भ में कार्य भी किया जा रहा है.तो कैसे विकास मित्र को रोजाना नौकरी जाने का डर सता रहा है! विकास मित्र संजय कुमार को किस तरह स्पष्टीकरण का जवाब देने का डर है.आप लोगों को खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही बहाल किये हैं तो किस तरह से अधिकारी कार्रवाई कर सकते है.इस तरह का डर को दिलो दिमाग से निकाल दीजिए.
विकास मित्र का कहना है कि यह एक ऐसी नौकरी है.जहां पर सरकारी नौकरी की तरह लगता ही नहीं है.विकास मित्र को किस वेतनमान के तहत रखा गया है,जिसमें वेतनमान ही नहीं है. वह पता ही नहीं चलता है. कई दशक से विकास मित्र कार्यरत हैं.उनको स्थायीकरण का प्रावधान ही नहीं है.विकास मित्र का मासिक मानदेय नहीं मिलता है.इसका कोई ठिकाना भी नहीं है और न ही मिलने का कोई आसार है.जिसके कारण विकास मित्र सूदखोरों से भारी ब्याज देकर ऋण लेने का बाध्य होते हैं.भारतीय नागरिकों की तरह कर्ज में जन्म लेते हैं और कर्ज में ही परलोक सिधार जाते हैं.वही हाल विकास मित्र का भी है. कर्ज के तले विकास मित्र है. कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं.सरकार की नौकरी करके विकास मित्र सिर्फ उम्मीद पर जीने को बाध्य हैं और इसी उम्मीद पर कर्ज पर कर्ज लिये जा रहे हैं.
विकास मित्र का सवाल है कि आखिरकार ऐसा हम लोगों के साथ ही क्यों हो रहा है! आखिर हम लोग कर्ज में कब तक डूबे रहेंगे. लोकल बैंक के द्वारा विकास मित्र को लोन नहीं दिया जाता है.बैंक अधिकारियों का कहना है कि आप लोगों को किस आधार पर बैंक से लोन दे. इस संदर्भ में विकास मित्र का कहना है कि सरकार कोई ठोस कदम उठाए ताकि हम लोगों का जीवन में सुधार आ सके.
आलोक कुमार
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