Saturday, 26 January 2013

सांगठनिक स्वरूप देने की तैयारी में एकता परिषद

सांगठनिक स्वरूप देने की तैयारी में एकता परिषद

किस प्रकार संस्थाओं के कवच से जन संगठन एकता परिषद को मुक्त किया जाए। यह सवाल जन संगठन चलाने वालों को है। एकता परिषद को आम आदमी के कल्याणार्थ और विकासार्थ बनाने पर जोर दिया जा रहा है। मगर संस्था वाले इस तरह की कार्रवाई को अमलीजामा पहनाने को तैयार नहीं है। मनी पॉवर और नेम पॉवर को खोना नहीं चाहते हैं। वहीं एकता परिषद के अध्यक्ष पी0व्ही0राजगोपाल ने स्पष्ट रूप से कह दिये हैं कि अगर ऐसा संस्था वाले नहीं कर पायेंगे तो एकता परिषद को टा-टा-बाई-बाई कहकर चले जा सकते हैं। वहीं संस्थाओं के सचिवों का अलग से संचालन समिति बनाने की राह खोल दी गयी है। जहां अपने राग अलाप कर सकते हैं। बहरहाल संस्था और जन संगठन को सांगठनिक रूप देने की कार्रवाई पर अंड़गा लगना शुरू हो गया है।

  एकता परिषद के द्वारा वर्श 2007 मेंजनादेशऔर 2012 मेंजन सत्याग्रहजनांदोलन के तहत सत्याग्रह पदयात्रा की गयी। दोनों बार ग्वालियर से पदयात्रा शुरू की गयी। 2007 में 25 हजार सत्याग्रही दिल्ली तक पहुंचे वहां पर पर यूपीए 1 के पूर्व केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद निर्माण करने की घोषणा की। इसी अवसर पर केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति बनाने की घोषणा की। 
  इसके आलोक में इस बार जन सत्याग्रह 2012 में 2 अक्तूबर से 1 लाख सत्याग्रही दिल्ली की ओर कूच किये थे। 11 अक्तूबर 2012 को मोहब्बत की नगरी आगरा में समझौता पर समझौता पर हस्ताक्षर किया गया। केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश और महानायक पी0व्ही0राजगोपाल ने 10 सूत्री पर मूलतः सहमति बनने के बाद हस्ताक्षर किये। अब उस पर कार्रवाई षुरू कर दी गयी है। इसके तहत इंदिरा आवास योजना की राशि में बढ़ोतरी करके नक्सली प्रभावित क्षेत्र में 75 हजार रूपये कर दिया गया है। वहीं सामान्य स्थानों पर के लिए 70 हजार रूपये कर दिया गया है। इन दोनों जगहों में समान तौर पर जमीन खरीदने के लिए अधिकतम 20 हजार रूपये कर दी गयी है।
  जन सत्याग्रह 2012 सत्याग्रह पदयात्रा के बाद प्रथम बार बिहार आगमन पर एकता परिषद के राष्ट्रीय संचालन समिति के सदस्य रणसिंह परमार ने कहा कि वित विभाग के विरोध के बावजूद भी केन्द्र सरकार ने 4 हजार करोड़ का पैकेज का ऐलान किया है। इसके तहत इंदिरा आवास योजना के तहत मकान निर्माण करने एवं आवासीय भूमिहीनों को जमीन खरीदने के लिए उपयोग में लाया जाएगा। यह बहुत ही बड़ा कदम है। वहीं संचालन समिति के सदस्य रमेश शर्मा ने कहा कि 10 सूत्री पर समझौता की गयी है उसपर मार्च महीने के अंदर काफी कार्य कर लिया जाएगा। इस बीच जन संगठन एकता परिषद के सांगठनिक स्वरूप को मजबूती देने की तैयारी जारी रही है। प्रदेश में संचालन समिति, कमिश्नरी स्तर पर संचालन और राष्ट्रीय स्तर पर संचालन समिति बनायी जा रही है। इसमें 5 से कम सदस्यों को रखा जा रहा है। ऐसा करने से सामूहिक नेतृत्व विकसित होगा। संचालन समिति के नेतृत्व करने वाले का कार्यकाल 1 साल का होगा। सदस्यों के तीन साल का है। इसके बाद स्वतः हट जाएंगे।  इस बैठक में गया, भोजपुर, दरभंगा, कटिहार, अररिया, पटना आदि जिलों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिये। बैठक प्रगति ग्रामीण विकास समिति के प्रगति भवन में की गयी।
  बताया जाता है कि जनादेश सत्याग्रह के बाद भी एकता परिषद को पीपुल्सवेस बनाने की कवायद की गयी। इसमें स्टेट और नेशनल काउंसिल बनाने पर जोर दिया गया। स्टेट काउंसिल बनाने में बिहार अव्वल रहा। इसके अलावे और किसी राज्य में स्टेट काउंसिल बेहतर ढंग से क्रियाशील नहीं हो सकी। इस जन सत्याग्रह के बाद इस बार भी परिवर्तन के तौर पर संचालन समिति बनायी जा रही है। राष्ट्रीय स्तर पर गठित संचालन समिति के सदस्य रमेश शर्मा,रणसिंह परमार और अनीस आये थे। उनका पूरा प्रयास रहा कि बिहार में संचालन समिति गठित कर दिया जाए। लेकिन इसको दो सप्ताह के लिए टाल दिया गया। अब देखना है कि बिहार में संचालन समिति में बदलाव हो रहा है कि जो नाम तय किया गया है उसे तय मान लिया जाएगा।

किस प्रकार संस्थाओं के कवच से जन संगठन एकता परिषद को मुक्त किया जाए। यह सवाल जन संगठन चलाने वालों को है। एकता परिषद को आम आदमी के कल्याणार्थ और विकासार्थ बनाने पर जोर दिया जा रहा है। मगर संस्था वाले इस तरह की कार्रवाई को अमलीजामा पहनाने को तैयार नहीं है। मनी पॉवर और नेम पॉवर को खोना नहीं चाहते हैं। वहीं एकता परिषद के अध्यक्ष पी0व्ही0राजगोपाल ने स्पष्ट रूप से कह दिये हैं कि अगर ऐसा संस्था वाले नहीं कर पायेंगे तो एकता परिषद को टा-टा-बाई-बाई कहकर चले जा सकते हैं। वहीं संस्थाओं के सचिवों का अलग से संचालन समिति बनाने की राह खोल दी गयी है। जहां अपने राग अलाप कर सकते हैं। बहरहाल संस्था और जन संगठन को सांगठनिक रूप देने की कार्रवाई पर अंड़गा लगना शुरू हो गया है।राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति ने राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति का मसौदा तैयार करके राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के अध्यक्ष प्रधानमंत्री को सौंप दिया। मगर प्रधानमंत्री ने परिषद की बैठक ही नहीं बुलाई। इस तरह एक बार भी बैठक नहीं की गयी। जिसके कारण राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद के द्वारा तैयार किये मसौदा राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की मौत हो गयी।



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