Friday 15 March 2013

येसु मसीह की जय बोलो


येसु मसीह की जय बोलो

किसी भी तरह की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए विभिन्न तरह का प्रशिक्षण का आयोजन किया जाता है। प्रशिक्षण देने वालों का कर्तव्य बन जाता है कि जो व्यवधान उत्पन्न हो गया है। उसे विभिन्न तरह से समझाकर पटरी पर ला सके। बस यही पटना धर्मप्रांतीय प्रार्थना में की गयी। दिल्ली से आयी टीम ने ईसाई धर्मावलम्बियों को समझाने और बुझाने का प्रयास किया गया कि एकमात्रः येसु ख्रीस्त ही मुक्तिदाता हैं। उनके प्रतिनिधि फादर-सिस्टरों के द्वारा नाजायज कार्य करने देने के बाद भी किसी तरह की आलोचना नहीं करनी चाहिए जिस प्रकार हम अपने माता-पिता के साथ किया करते हैं उसी तरह फादर-सिस्टरों के साथ करना चाहिए।

पटना जिले के पूर्वी दीघा ग्राम पंचायत में रोमन कैथोलिकों का गिरजाघर है। इसे चर्च भी कहते हैं। 14 और 15 मार्च को दो दिवसीय पटना धर्मप्रांतीय प्रार्थना का आयोजन किया गया। इसमें शामिल होने वाले भक्तगण बीच में आल्लेलूईया...आल्लेलूईया कहते रहे। इस बीचजय बोलो,जय बोलो,जय बोलो, येसु मसीह की जय बोलो नामक गीत पेश किये। इसे श्रद्धालु जोरजोर से दोहराकर गीत गाते रहे। प्रेरितों की रानी ईश मंदिर नामक गिरजाघर में सैकड़ों की संख्या में पटना धर्मप्रांत के धर्मावम्बी भाग लिये। इस अवसर पटना धर्मप्रांत के आर्क बिशप विलियम डिसूजा उपस्थित रहे। दिल्ली से फादर ऑनोल्ड डेविट के नेतृत्व में एक दल आया आकर  दो दिनों तक प्रार्थना सभा की अगुवाई किये।

 उल्लेखनीय है कि माता कलीसिया के द्वारा ईसाई समुदाय को 7 तरह का संस्कार दिया गया है। इसका उपयोग ईसाई समुदाय करते हैं। इस 7 संस्कारों में विवाह संस्कार को पुरोहित और सिस्टर ग्रहण नहीं कर पाते हैं कारण कि उनको ब्रह्मचर्य का व्रत लेकर धर्मसमाज में रहना है।  दिल्ली से आयी सुश्री ममता ने सातों संस्कार के बारे विस्तार से प्रकाश डाला। इस प्रकार यह संस्कार है, स्नान संस्कार (बपतिस्मा), पापस्वीकार, परमप्रसाद, दृढ़करण, विवाह संस्कार, पुरोहिताई और अंतमलन।

  लब्बोलुआब यह है कि कैथोलिक लोगों को बताया गया कि धर्मसमाज में गये फादर-सिस्टर विशेष प्रकार से अभिषेषिक्त किये गयेे हैं। किसी तरह की गलती करते हैं तो उनको क्षमा कर देना चाहिए। उनका मजाक कदापि नहीं उड़ाया चाहिए। ऐसे लोग ईश्वर का कार्य किया करते हैं।
 गिरजाघर में आने में वाले बनठन के आते हैं। ऐसा करते समय बदन नंगा हो जाता है। कहींकहीं तो हाफ पैंट पहन कर जाते हैं। यह गलत है। गिरजाघर में खुद का नुमाईश करने नहीं आते हैं। दिल में सजावट करनी है। प्रवेशगान के पांच मिनट के पहले चर्च में जाना चाहिए और समापन गीत के बाद ही चर्च से बाहर जाना चाहिए।

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