मोबाइल का रिंग टॉन बजने लगा। पॉकेट में रखे मोबाइल को निकाला और हाथ के नाखून से बटन को दबाकर बातचीत करने लगे। इस तरह ‘गुरू’ विकलांग होकर भी स्वस्थ शरीर वालों को चुनौती देने से बाज नहीं आ रहे हैं।
पटना। बिहटा में सुभाष चन्द्र सिंह नामक विकलांग रहते हैं। सदीसोपुर में पैनाल है। वहीं पर एक कॉलेज है। वहां के प्राचार्य सुभाष चन्द्र सिंह थे। यहीं से अवकाश ग्रहण किये हैं। कहते हैं कि पपटना विश्वविघालय से एमएससी किये हैं। बी.एड. और उसके बाद एमएड किये हैं। प्रारंभ में उच्च विघालय के प्रधानाध्यापक थे। शरीर से दिखने में मजबूत एससीसिंह का हाथ छोटा है। जो जन्मजात ही प्राप्त हुआ है।
पूर्व प्राचार्य एससी सिंह का कहना है कि विकलांगता मजबूरी नहीं है। जरूरत है कि इस प्राकृतिक असमानता को दिल से न लें। खुदा की मर्जी समझकर सहर्ष मन से स्वीकार कर लेना चाहिए। इसी हाथ से कलम पकड़कर परीक्षा पास किये हैं। मतलब हरेक तरह का कार्य कर पाते हैं। पॉकेट से खैनी का डिब्बियां निकालकर पहले चूना निकाला। चूना के हाथ के हथैली पर रख दिया। फिर डिब्बिया को उल्टाकर सरकार से मिली टैक्स से छूट वाली खैनी को निकाला। उसके हथेली पर रखा चूना को खैनी से मिलाकर उसे मसलने लगा। उसके बाद खैनी बन जाने के बाद खैनी खा लिये।
इसके बाद मोबाइल का रिंग टॉन बजने लगा। पॉकेट में रखे मोबाइल को निकाला और हाथ के नाखून से बटन को दबाकर बातचीत करने लगे। इस तरह ‘गुरू’ विकलांग होकर भी स्वस्थ शरीर वालों को चुनौती देने से बाज नहीं आ रहे हैं।
आलोक कुमार