Wednesday 13 November 2013

वह सात दिनों से स्टेशन पर पड़ा रहा



*जीआरपी थानाध्यक्ष आंख खोलकर रखे। केवल मरण के बाद ही पुलिसिया खानापूर्ति करने की कोशिश की जाए। हरेक मानव का अधिकार है कि वह जीर्वित रहे। इसके लिए जरूरी है। थानाध्यक्ष के द्वारा जीते जी कदम उठाया जाए।
दानापुर। पुलिस को नसीयत दी जाती है। वह पीपुल्स फ्रेंडली बने। पुलिस पीपुल्स फ्रेंडस  नहीं बन पाती है। जिन्दा में पुलिस के द्वारा खास काम हो मगर मरण के बाद सक्रिय हो ही जाती है। अभी-अभी इसी तरह का नमूना पुलिस के द्वारा पेश की गयी है।
जानकार लोगों का कहना है कि दानापुर रेलवे प्लेटफार्म पर कोई शख्स 7 दिनों से पड़ा हुआ था। उसे किसी जगह पर घाव हो गया था। इसके कारण चलने में दिक्कत महसूस करता था। अन्ततः उक्त शख्स की मौत हो गयी। जीआरपी थाना परेशान हो उठा। सिपाही को भेजकर ठेला चालक को बुलाया गया। उसकी मदद करने के किसी महादलित को पकड़ा गया। मृतक को ठेला पर रखकर जीआपी थाना लाया गया। पेड़ के नीचे रखा जा रहा था। तब वरीय आरक्षी के कहने पर रेलवे सीढ़ी के बगल में ठेला लगा दिया गया। उसके पास चादर था। उसी से शव को ढंक दिया गया। रातभर खुले आकाश में शव पड़ा रहा। दिल के उजाले में औपचारिकता निर्वाह करके अंतिम संस्कार कर दिया गया।
जीआरपी थानाध्यक्ष का कहना है कि कोई भीखमंगा है। जो मर गया है। वह नहीं बताया कि वह कितने दिनों से प्लेटफार्म पर पड़ा था। कोई मसीहा बनकर नहीं आया। यह खुलेआम जीने का अधिकार का मसला बनता है। राज्य मानवाधिकार आयोग को संज्ञान लेना ही चाहिए। वहीं रेलवे स्टेशन पर शवगृह नहीं रहने के कारण शव को खुले आकाश में ही रखा जाता है। मानवाधिकार आयोग को पूर्व मध्य रेलवे अधिकारियों से तलब करना चाहिए। यह निर्देश देना चाहिए कि जल्द से जल्द केन्द्रीय शवगृह बने ताकि शव को सुरक्षित रखा जा सके।
बताते चले कि दानापुर में ही डीआरएम रहते हैं। जब डीआरएम के घर में सात दिनों से कोई व्यक्ति बेहाल पड़ा हो। उसकी कोई सुधि लेता हो। तो उनके भी क्रियाकलापों पर सवाल उठना लाजिमी है। अगर दानापुर में डीआरएम हो भी तो कार्यालय तो दानापुर में ही है।
 जीआरपी थानाध्यक्ष आंख खोलकर रखे। केवल मरण के बाद ही पुलिसिया खानापूर्ति करने की कोशिश की जाए। हरेक मानव का अधिकार है कि वह जीर्वित रहे। इसके लिए जरूरी है। थानाध्यक्ष के द्वारा जीते जी कदम उठाया जाए।
आलोक कुमार