पटना।
दैनिक भास्कर के
आगमन से रीडर
को फायदा हुआ।
कम कीमत पर
अखबार खरीद पा
रहे हैं। अखबार
की कीमत कम
होने के बाद
भी हॉकर के
कमीशन में कमी
नहीं की गयी
है। उसके बाद
हाई मनी पेड
करके रिपोर्टर को
अपने खेमे में
लाने का प्रयास
शुरू हो गया
है इस तरह
दैनिक भास्कर के
‘र’ के फेरे
में अखबार मालिक
बुरे फंस गये
हैं। वहीं ‘र’
के कारण रीडर,
हॉकर और अब
रिपोर्टर मस्त होने
लगे हैं।

भास्कर
के पटना संस्करण
की लॉचिंग की
आहट के भय
से जहां पटना
के अखबारों ने
कीमतें घटा दी
है। हॉकरों को
मोहित करने में
जुट गये हैं।
इसके कारण रोजाना
लगभग दस-पंद्रह
लाख रुपये की
आमदनी को गंवा
रहे हैं। वहीं
उनके पारखी पत्रकारों
को उड़ा कर
दैनिक भास्कर ले
जाने में सफल
हो गया। इसके
कारण अखबार मालिक
को सिर दर्द
होने है।
हिंदुस्तान
के पत्रकारों को
उड़ा ले जाने
के बाद दैनिक
भास्कर की नजर
पटना के दो
और बड़े अखबार
दैनिक जागरण और
प्रभात खबर पर
भी है। अवसर
मिलते ही पत्रकारों
को थोकभाव में
भास्कर पनाह देने
में समर्थ है।
अगर ऐसा हो
जाता है तो
दैनिक भास्कर पाठकों
के सिरमोर बन
जाएगा।
हिंदुस्तान
से जो पत्रकार
दैनिक भास्कर में
गये हैं, उनको
औसतन 35 प्रतिशत से ज्यादा
सैलरी और अन्य
सुविधायें दी गयी
हैं। हिंदुस्तान
की तो हालत
ऐसी हो गयी
है जैसे उसका
ब्यूरो ही खाली
हो गया है।
हिंदुस्तान ब्यूरो से आलोक
कुमार, विजय कुमार
और इंद्रभूषण जैसे
तेज तर्रार पत्रकार
को अब भास्कर
के पाठक पढ़ा
करेंगे। इसी प्रकार
हिंदुस्तान सिटी रिपोर्टिंग
से विनय झा,
मनोज प्रताप, मोहम्मद
सिकंदर, नीतीश सोनी, अजय
कुमार ने भी
छलांग लगाते हुए
भास्कर का दामन
थाम लिये हैं।
इसी प्रकार एडिटोरियल
से कई दिग्गज
पत्रकारों को भी
भास्कर ने अपने
यहां खीच लिया
है।
हिंदुस्तान
अखबार के लगभग
तीन दशक के
इतिहास में किसी
प्रतिद्वंद्वी अखबार ने इतना
बड़ा झटका पहली
बार दिया है।
जो पाठक हिंदुस्तान
के पत्रकारों की
लेखनी के कायल
रहे हैं अब
उन्हें भास्कर के पन्ना
पलटने पड़ेंगे। वैसे
ऊपर से लेकर
नीचे तक भास्कर
में जितने पत्रकार
हैं उनमें अधिकतर
हिंदुस्तान से ही
जुड़े थे। चाहे
भास्कर के परामर्शी
सम्पादक सुरेंद्र किशोर हों
या स्थानीय सम्पादक
प्रमोद मुकेश।
ऐसा
नहीं है कि
भास्कर ने सिर्फ
हिंदुस्तान को ही
झटका दिया है.
इसने प्रभात खबर
के भी पांच
पत्रकारों को ऊंची
सैलरी पर अपने
यहां बुला लिया
है। इनमें कमल
किशोर, कुमार अनिल, विधान
चंद्र मिश्र आदि
के नाम शामिल
हैं।
इधर
बिन्दास बादल नामक
महिला पत्रकार ने
फेसबुक पर लिखी
है कि हिंदुस्तान
को टा-टा-बाय-बाय
करके प्रभात खबर
के दामन थाम
ली हैं। हिंदुस्तान
से अधिक मोटी
रकम मिल रही
है। फेसबुक पर
बहस छिड़ गयी
है कि बिन्दास
बादल को हिंदुस्तान
को नहीं छोड़ना
चाहिए था। कुछ
ने प्रभात खबर
से बेहतर दैनिक
भास्कर की ओर
रूख करने पर
बल दिया। बहरहाल
कुछ दिनों तक
सिलसिला चलते ही
रहेगा।
आलोक
कुमार