Saturday 14 December 2013

हमलोग विदेशी समानों को कद्रदान करने वाले हैं




पटना। देश से विदेशी चले गये। परन्तु उनको नहीं छोड़े हैं। आखिर छोड़ने वाली बात ही नहीं है। आखिर इंसान ही है। इसी इंसान के द्वारा विदेशी समान मिल रहा है। हमलोग विदेशी समानों को कद्रदान करने वाले हैं
तो हर्ज ही क्या है। इस देशी मेम साहब को देख लीजिए। इन्हें किसी ने खैरात में कुकुर थमा दिये हैं। वह भी देशी नहीं विदेशी नस्ल का है। वह भी बॉन इन जर्मनी है। देशी और विदेशी में लव हो गया है। इसी लिए कुकुर को सीने से सटा रखी हैं। यह सब कुकुर शान देने वाला होते हैं। सिकड़ में बंद करके कुकुर को छोटी और बड़ी बाथरूम करवाना पड़ता है। वह भी सुबह और शाम में करवाना पड़ता है।

 कुर्जी होली फैमिली अस्पताल में मेम साहब कार्यरत हैं। कुर्जी मगध कॉलोनी में रहती हैं। खुद को देशी कम और विदेशी अधिक शो करती हैं। इसी लिए कुकुर को गोद ले रखी हैं। गांवघर में रहने वाले कुपोषण से ग्रसित बच्चों को नजर अंदाज कर दिया जा सकता है। देवी-देवताओं को दूध पिलाया जा सकता है। वहीं विदेशी नस्ल वाले कुकुर को हाई प्रोटीन डायट खिलाया जा सकता है। मगर कुपोषित बच्चों को देखना और ख्याल करना नहीं जानते हैं। आप पुण्य कमाने के लिए गंगा तट पर जाकर गंगा मइया को दानस्वरूप पैसा पानी में फेंक सकते हैं। मगर बगल में खड़ा बच्चे के हाथ में सिक्का नहीं दे सकते हैं। गंगा नदी में फेंके सिक्के को निकालने के लिए बच्चे परिश्रम करते हैं। छपाक,छपाक कर गंगा नदी में गोता मारते हैं। यह सब देकर सकून होता है। कम सोकर जागेंगे। वह तो पता ही नहीं चलता है। केवल आजादी के साल गिनते-गिनते 66 साल गुजार दिये हैं।

 हम आज भी गुलाम है। आज भी हमलोगों को विदेशी चीजों से काफी लगाव और प्यार है। देखिए देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी रहने के बाद भी इंगलिश को गले लगाए हुए हैं। इंगलिश के बिना काम ही नहीं बनता है। यह देखे विदेशी मोबाइल को शान बढ़ाने वाले समझ बैठे हैं। आम से खास लोगों के पास मोबाइल है। मोबाइल को शान से पॉकेट में निकालकर वार्ता करने लगते हैं। इस देशी मेम साहब को देख लीजिए। 2 माह के कुकुर को सीने से सटाकर रखी हैं। पूछने से कहती हैं यू नो जर्मनी के कुकुर है। कोई साथी दिये हैं। बहुत ही लगाव हो गया है। हां,हां विदेशी कुकुर जो ठहरा।

आलोक कुमार