आगमनकाल में ईसाई समुदाय खुद की तैयारी में लग जाते हैं। भौतिक और धार्मिक तैयारी करते हैं। जिनती शक्ति उतना खर्च करते हैं। घर,मोहल्ला और चर्च को सुरूचि ढंग से सजाते हैं। फादर लोगों के द्वारा यह ध्यान रहता हैं कि आम आदमी पापस्वीकार करें और भावपूर्ण ढंग से धार्मिक अनुष्ठान में शिरकत करें।
पटना।
प्रत्येक व्यक्ति का जन्म
होता है। इसमें
ईसाई समुदाय के
भगवान ईसा मसीह
भी शामिल हैं।
24 दिसम्बर
की मध्यरात्रि में
ईसा मसीह का
जन्म हुआ। बालक
के रूप में
ईसा मसीह का
आगमन धरती पर
होगा। इसी के
इंतजारी में ईसाई
समुदाय है। ईसाई
समुदाय का आगमनकाल
1 दिसम्बर से 24 दिसंबर की
मध्यरात्रि तक है।
मध्यरात्रि यानी 25 दिसंबर से
ईसाई समुदाय बड़ा
दिन बनाने लगते
हैं। यानी खुश
जन्म पर्व मनाने
लगते हैं। इसे
क्रिसमस भी कहा
जाता है।
आगमनकाल
में ईसाई समुदाय
खुद की तैयारी
में लग जाते
हैं। भौतिक और
धार्मिक तैयारी करते हैं।
जिनती शक्ति उतना
खर्च करते हैं।
घर,मोहल्ला और
चर्च को सुरूचि
ढंग से सजाते
हैं। फादर लोगों
के द्वारा यह
ध्यान रहता हैं
कि आम आदमी
पापस्वीकार करें और
भावपूर्ण ढंग से
धार्मिक अनुष्ठान में शिरकत
करें।
बताते
चले कि राजाओं
के राजा ईसा
मसीह का जन्म
गोषाला में हुआ
था। एक साधरण
व्यक्ति जोसेफ और मरियम
के पुत्र हैं।
जोसेफ बढ़ई का
कार्य करते थे।
भगवान के ईश्वरीय
शक्ति से मरियम
के गर्भ में
बालक येसु आ
ठहरे। उनको साधारण
व्यक्ति की तरह
धरती पर जन्म
लेना था। भगवान
को जोसेफ और
मरियम ही उपयुक्त
लगे। उस समय
सराय में डेरा
नहीं मिलने के
कारण मां मरियम
को गोशाला में
ही राजाओं के
राजा को जन्म
देना पड़ा। जन्म
देने के बाद
चरनी में बालक
येसु को सुला
दी। इसी की
याद में खुश
जन्म पर्व मनाया
जाता है। यह
ईसाई समुदाय के
लिए महान पर्व
और बड़ा दिन
होता है।
आलोक
कुमार