Thursday 1 May 2014

फिलवक्त मजदूर यूनियन और अस्पताल प्रबंधन के बीच लेबर कोर्ट में मामला जारी



मोकामा। आजादी के एक साल के बाद सन् 1948 में किया गया। 64 साल के सफर करने के बाद बड़े ही नाटकीय ढंग से अस्पताल को 2 जुलाई 2012 से बंद कर दिया गया। एक साथ ही एक ही झटके में 48 कर्मचारी सड़क पर आ गए। 3 जुलाई 2012 से ही गेट पर धरना कार्यक्रम जारी है। इन 20 माह के दौरान 3 मजदूरों की मौत भी हो गयी है। नाजरथ अस्पताल के जुल्मी प्रबंधन के द्वारा 3 कर्मचारी शहीद हो गए। आज भी शहीदों के परिवार बिलबिलाने को मजबूर हैं। अपने पतिदेव की तस्वीर लेकर आंसू बहा रही हैं। परोकारी संस्था के ढाल रखने वाले मिशनरी संस्थाओं पर सरकार के द्वारा नकेल नहीं कंसने से मिशनरियों का हौसल्ला सातवे आसमान तक पहुंच गया है।

    बर्बादी की कहानी 30 जून 2012 को लिखी गयी। 1 जुलाई को 48 कर्मचारियों की सूची बनायी गयी। 2 जुलाई को नाजरथ अस्पताल बंद करने की घोषणा की गयी। 3 जुलाई को मिशन नाजरथ मजदूर यूनियन के कोषाध्यक्ष ने बर्बादी की कहानी वाला पत्र प्राप्त किया। देखते-देखते अस्पताल के बंद होने के 20 माह गुजर गये। इस दौरान 3 साथी परलोक सिधार चुके। 8 जुलाई 2012 को छंटनीग्रस्त राजू राउत, 20 जून को सूसन किस्कू( सालोनी किस्कू) और 9 मार्च 2014 को रोहन दास की मौत हो गयी। इस ओर अस्पताल की प्रशासिका सिस्टर मूकदर्शक बन गयी हैं। इस पर मानवाधिकार आयोग को संज्ञान लेना चाहिए।

 20 माह से अस्पताल बंद है। अस्पताल बंद होने से केवल कर्मचारी ही बेहाल नहीं बल्कि आसपास के लोग भी हलकान हो गए हैं। अस्पताल के आसपास के दुकानदारों का तो बुरा हाल है। इनका आमदनी का जरिया ही बंद हो गया है। कुल मिलाकर  क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों को भी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि क्या करें और क्या न करें। फिलवक्त रोनकदार अस्पताल में सन्नाटा पसर गया है।
   ईसाई धर्म स्वीकारने वाले और यहां के गाड़ी चालक दानिएल रोजारियों ने चालाकी से मिशन में रहकर मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन गठित कर पाने में सफल हुए थे। इसके कुछ दिनों के बाद मिशनरी प्रशासकों ने चालक को दूध में पड़े मक्खी की तरह नौकरी से बाहर कर दिये। किये थे।
   मिशन नाजरेथ मजदूर यूनियन के कोषाध्यक्ष मारकुस हेम्ब्रम ने कहा कि हर दिन की तरह कर्मचारी काम करने जा रहे थे कि ओपीडी की सुपरवाइजर सिस्टर टेªसी ने कहा कि 2 जुलाई 2012 से नाजरथ अस्पताल बंद हो गया। आप लोग इस लिफाफा को स्वीकार कर ले। तब कर्मचारियों ने चट्टानी एकता दिखाते हुए सिस्टर के द्वारा दिया जा रहा लिफाफा को लेना मंजूर नहीं किये और ओपीडी में ही धरना पर बैठ गये। अनुमान के अनुसार कोषाध्यक्ष ने कहा कि ग्रेच्यूटी और जून माह का वेतनादि का चेक था। ओपीडी में 10 जुलाई तक धरना होने से ओपीडी बंद कर दिया गया। इसके बाद मुख्यद्वार को भी बंद करने से हारकर कर्मचारी मुख्यद्वार के बाहर धरना देना शुरू कर दिये।
  धरना स्थल पर महिला कर्मी मोनिका हेम्ब्रम ने 38 साल, टेरेसा केरोबिन ने 32 साल, सावित्री कुमारी 29 साल,तपोथी मंराडी ने 28 साल,मार्था टुडू ने 28 साल,राम विलास पासवान ने 28 साल, मारकुस मंराडी ने 28 साल, राजू राउत ने 28 साल,रोहन दास 28 साल तक कार्य किये। इनके अलावे मो0 चांदो,राजेन्द्र रजक, मो0गुलाम रसूल, टुनटुन राउत,देवेन्द्र चौधरी,अखिलेश्वर प्रसाद, अशोक कुमार,अभयकांत कुमार, राम मंडल,अजीत कुमार,दीपक कुमार, माइकल हेम्ब्रम, क्लारा कर्माकर,मटिल्डा सोरेन, कार्मेला बेक, विमला मुर्मू, आग्नेस टुडू,रोसालिया मुर्म, जसिन्ता राजू, होनोरा मुर्मू, क्रिस्टीना किस्कू, शांति मुर्म,सावित्री कुमारी,किरन कुमारी,सिसिलिया जोआकिम, सुजीना कुमारी ,लीली टोप्पनो, एलवीना एक्का,मार्सेला सोरेन, चुबी कुमारी,सुसन किस्कु (सालोनी किस्कू),कुंती देवी, वैशाखी राय,टरेसा मरांडी,मरिया गा्रेरेटी बास्की,संगीता मुर्मू,राजेष कुमार,लाजरूस मुर्मू, शैला लुसिया और मो0मुस्लिम को भी हटा दिया। सेन्टर सप्लाई में 38 साल से मोनिका हेम्ब्रम  ने कहा कि 38 साल काम करने के एवार्ड नौकरी से बाहर कर देना है। नर्सेज एड में काम करने वाली मार्था टूडु ने कहा कि 28 साल की सेवा को सिस्टर उषा ने चुटकी बजाकर समाप्त कर दी।


 अपने सहकर्मी की मौत से आक्रोशित अस्पताल कर्मियों ने 11 मार्च को नजारथ अस्पताल के गेट पर प्रदर्शन किया। इसके पहले 10 मार्च को दोपहर धरना सभा के दौरान रोहन दास की तबीयत अचानक बिगड़ गई।

  इलाज के अभाव में उसने देर रात दम तोड़ दिया। इससे नाराज अस्पताल कर्मियों ने अस्पताल प्रबंधन के अमानवीय व्यवहार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। विरोध प्रदर्शन में मजदूर यूनियनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी हिस्सा लिया। अस्पतालकर्मियों को काम पर वापस ले की मांग पर अड़े हैं। वहीं अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि यहां अब ज्यादा कर्मियों की जरूरत नहीं है। उनके बैंक खाते में सेवानिवृत्ति की राशि जमा करा दी गई है। फिलवक्त मजदूर यूनियन और अस्पताल प्रबंधन के बीच लेबर कोर्ट में भी केस चल रहा है। श्रम आयुक्त इसकी सुनवाई कर रहे हैं। गा्रमीणों का कहना है कि इन मजदूरों को न्याय नहीं मिला तो भूखे मर जाएंगे। सरकार और स्थानीय प्रशासन को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए। इस खुद मानवाधिकार आयोग को संज्ञान लेना चाहिए।

आलोक कुमार

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