Wednesday 30 July 2014

जोसेफ एलियास के मसले पर परिवार, समाज और धर्म के लोग कटघरे में


पटना। इन दिनों ईसाई धर्मावलम्बी जोसेफ एलियास कष्ट में है। एक समय था। जब कुर्जी पल्ली के गिरजाघर के सामने मुख्य द्वार के पास आमरण अनशन पर जाकर बैठ गए। अपनी मांग को पूर्ण करवाने का माद्दा रखते थे। मांग पूरी हो गयी। दीघा-आशियाना रोड के सामने जमीन खरीदकर मकान बना दिया गया। उस जमीन को औलाद में बंटवारा कर देने से औलाद वाले सड़क पर आ गए। रोड पर आ जाने वाले जोसेफ एलियास के मसले पर परिवार, समाज और धर्म के लोग कटघरे में आ गए हैं।
अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के नेतृत्व करने वाले फादर और सिस्टर दोहरी भूमिका में हैं। प्रथम ईसाई धर्म को प्रचार और प्रसार करने वाले हैं। चर्च में बैठाकर ईसाइयों को पड़ोसी से प्रेम करना सीखाते हैं। अगर कोई भूखा है तो पहले भूखे को खाना खिलाने की नसीयत देते हैं। जो जोसेफ एलियास के मामले में खोखला साबित हो रहा है। जिस जगह पर जोसेफ एलियास ने आमरण अनशन किए थे। उसी कुर्जी पल्ली के गिरजाघर के सामने मुख्य द्वार के पास भूखे पड़े रहते हैं।कोई कुशलक्षेम भी पूछने वाले नहीं होते हैं।
फादर और सिस्टरों की द्वितीय भूमिका है कि केन्द्र और बिहार सरकार से गैर सरकारी संस्थाओं का पंजीयन कराकर रखते हैं। इसी संस्था के माध्यम से गरीबों का कल्याण और विकास करने की बात करते हैं। इसी संस्था के माध्यम से प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र से लेकर हॉस्पिटल निर्माण कर लेते हैं। इसी संस्था के माध्यम से आंगनबाड़ी केन्द्र से लेकर महाविघालय तक की पढ़ाई करवाने के पात्र बन जाते हैं। धर्म और समाज सेवा के दायरे में आने वाले जोसेफ एलियास की परिस्थिति दर्शाता है। ये लोग भी भारतीय नेताओं की तरह भाषण और आश्वासन देने में महारत हासिल कर लिए हैं। सरकार की आंखों में धूल झोंककर विभिन्न तरह के टैक्स में छूट प्राप्त करते जाते हैं। देशी-विदेशी-प्रदेशी धन के बल पर राजनैतिक शक्ति भी बढ़ाते चले जा रहे हैं। आज फादर और दूसरों से कोई क्षेत्र छूटा नहीं है। जहां वे पहुंच नहीं पाएं हो?
अब तो राजनीतिज्ञ भी फादर और सिस्टरों के पीछेलग्गू बन गए हैं। वहीं सत्ताधारी दल भी पीछे नहीं है। इनको खुश रखने के लिए अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष पद ऑफर कर देते हैं। पटना वीमेंस कॉलेज को महाविघालय घोषित करने का वादा दर वादा कर रहने लगे हैं। ऐसा समझा जाता है कि ईसाई समुदाय के ऊपर फादर और सिस्टरों का एकतरफा नियत्रंण हैं। इनके ही इशारे पर ईसाई समुदाय वोट के समय मतदान कर देगा। मगर यह भूल है कि फादर और सिस्टरों का ही चलता है। आज ईसाई समुदाय खुद्दार हो चला है। आज अधिकार लेने की बात करता है। ईसाई समुदाय में नेतृत्व करने की क्षमता है। एक से एक शिक्षित व्यक्ति पड़े हुए हैं। किसी आंदोलन में हिस्सादारी करने वाले भी हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में जेल जाने वाले भी हैं। बिहार प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के संयोजक पद पर भी काबिज हैं। वहीं सत्ताधारी जदयू के सक्रिय सदस्य भी है। ऐसे धरती पुत्रों को छोड़कर गैर बिहारी लोगों को पदासीन करके सम्मान दिया जाता है। यह सब स्कूलों में नामांकन करवाने में योगदान करने के एवज में घूस दिया जाता है।
इसी लिए जोसेफ एलियास सदृश्य वाले व्यक्ति को पूछने वाला नहीं मिलता है। इस समय परिवार के पुत्र का फर्ज बनता है कि उम्र के ढलान में आ जाने वाले पिता को संरक्षण प्रदान करें। इनको याद रखना चाहिए कि किस तरह मां-पिता ने बच्चों को पालकर बढ़ा किए हैं। जब तेवर जोरदार था। तब ठेला पर सब्जी रखकर अनौखी अदा पेश करके सब्जी बेचता था। विभिन्न मुहल्लों में घुमघुम कर सब्जी बेचते थे। इस रोजगार से दो जून की रोटी जुगाड़कर लेते थे। झारखंडी पत्नी ट्रीजा जोसेफ मजदूरी करके बाल-बच्चों को खड़ाकर पाने में सफलता अर्जित कर ली। एक लड़का चालक की हैसियत से कुर्जी होली फैमिली अस्पताल में और द्वितीय लड़का दिल्ली में कार्यरत हैं।
आज ऐसा प्रतीक हो रहा है कि अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय जिस चीज में खासियत रखती है। उसी में आज पिछड़ गयी हैं। वैसे तो नेतृत्व करने वाले पुरोहित चर्च में लम्बे और चौड़े भाषण देकर ही इतिश्री मान ले रहे हैं। आजकल राजनेताओं की तरह से भाषण देने वाले और ग्रहण करने वाले लोगों को लकवा मार दिया है। आज जोसेफ एलियास अनजान बन गया है। मुर्दों के पर्व 2 नवम्बर के पहले जानकार व्यक्ति जोसेफ एलियास हो जाता था। जो मृत परिजनों की कब्र को शानदार आकृति देने में सफल हो जाते थे।
आलोक कुमार

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