पटना।आसान नहीं
है, किसी विकलांग को विकलांगता प्रमाण-पत्र
बनवाना। हालांकि,सरकार ने सरकारी हॉस्पिटलों में
प्रमाण-पत्र निर्गत करने का आदेश दे रखा है।तब यह सवाल उठता है कि आखिर क्यों नहीं
हैदर शौकत याहात की पुत्री शाहिन परवीन का प्रमाण-पत्र बन पा रहा है?
विकलांग
शाहिन परवीन (21 वर्ष) 2008 से अपाहिज बन गयी हैं। सीढ़ी पर से गिर जाने से शाहिन की रीढ़ की हड्डी टूट
गयी। इसका प्रभाव कमर से नीचे पड़ा। दोनों पैर चलायमान नहीं रहा। कंकड़बाग में इंभटर
बनाने वाले हैदर शौकत हायात ने अपाहिज पुत्री का इलाज करवाया। लाखों
रूपए पानी की तरह बहा देने के बाद भी शाहिन ठीक नहीं हो सकीं। जब 19 साल की शाहिन हो गयी,तब से
विकलांगता प्रमाण-पत्र बनवाने का प्रयास हो रहा है। इस बीच किसी तरह से शाहिन को
व्हील चेयर मिल गया। शाहिन की अम्मीजान मरियम खातून व्हील चेयर पर शाहिन को बैठाकर
हॉस्पिटलों की चक्कर लगाने लगी। पीएमसीएच और रेड क्रॉस सोसायटी के द्वार पर जाकर
दस्तक दी। पर प्रमाण-पत्र नहीं बना।
एक बार
फिर मां और बेटी बुधवार को प्रमाण-पत्र बनवाने के प्रयास में जुट गए। दीघा ग्राम
पंचायत अन्तर्गत आई.टी.आई. के सामने न्यू कॉलोनी से घर से निकली। अम्मीजान ने
शाहिन को व्हील चेयर पर बैठा दिया। व्हील चेयर से दीघा हॉल्ट पहुंचे। गर्दनीबाग
हॉस्पिटल जाने के लिए शहीद रेलगाड़ी पर बैठ गए। आर.ब्लॉक हॉल्ट पर उतरकर गर्दनीबाग
हॉस्पिटल में पहुंचे। 5 रू.देकर पर्चा बना लिए। क्रमांक 4302/05/08/2015 से चिकित्सक से दिखाया। मगर विकलांग प्रमाण-पत्र निर्गत नहीं
किया गया। गर्दनीबाग हॉस्पिटल में असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा
पदाधिकारी का कार्यालय है। मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी भी सहायक नहीं बन सके।
केवल
शाहिन परवीन ही प्रमाण-पत्र के लिए भटक नहीं रही हैं। मखदुमपुर बगीचा,शिवाजी नगर में रहने वाले विक्टर केरोबिन भी भटक रहे हैं।
जरूरी है कि जन प्रतिनिधि सहायता करके शारीरिक अक्षम लोगों को प्रमाण-पत्र बनवा
दें। इस तरह का प्रमाण-पत्र बन जाने के बाद निःशक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन की
सुविधा मिल पाती है। रेलवे टिकट में रियायत और नौकरी में आरक्षण भी मिल जाती है।
स्व रोजगार के लिए राशि भी विमुक्त की जाती है। अब देखना है कि कबतक दोनों शारीरिक
अक्षम लोगों को प्रमाण-पत्र बन पाता है?
आलोक
कुमार
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