Friday 11 March 2016

बदहाली के दलदल में कुर्जी बिन्द टोली के लोग


तकदीर और तस्वीर बदलती नहीं

आढ़त 
vk<+rपटना। मालगुुलजारी पर खेती करने वाले किसान फसलों की मूल्य भी निर्धारित नहीं कर सकते हैं। गरीबी का दंश झेलने वाले कुर्जी बिन्द टोली के लोग कड़ी मेहनत करते हैं। भूमिहीन बिन्द लोग मालगुलजारी पर खेत लेते हैं। पटना और सोनपुर दियारा क्षेत्र में 5 हजार रू0 से अधिक की राशि देकर बीघा भर खेत लेते हैं। 

बिन्द समुदाय के लोग लेते है आढ़त लगाने वालों से ऋणः कुर्जी बिन्द टोला में रहने वाले देवलगन महतो कहते हैं कि हमलोग मालगुलजारी पर खेत लेकर खेती करते हैं। आढ़त लगाने वालों से लेते हैं ऋण। जिससे ऋण लेते हैं उसी के पास जाकर फसल बेचते हैं। अगर हमलोग ऋण वापस कर लेते हैं तब ही स्वतंत्र रूप से अन्य आढ़तियों के पास जाकर फसल बेच सकते हैं। 

खेत में टोकरीभर सब्जी लाते हैं और आढ़त में रख देतेः विपरित परिस्थियों में खेती करके फसल उपजाने वाले लोग खेत में टोकरीभर सब्जी लाते है और आढ़त में रख देते हैं। जिनसे ऋण लिये हैं वहां पर अन्य लोग भी सब्जी लाते हैं। विभिन्न जगहों में आढ़त से सब्जी खरीदकर ले जाने वाले आते हैं। सब्जी बेचने वाले ही सब्जी का भाव निर्धारित करते हैं। इसमें आढ़तियां मोलजोल कर सब्जी का नीलाम करते हैं। जब सब्जी बेचने वाले नीलाम राशि लेने पर सहमत हो जाते हैं। तब सब्जी से भरी टोकरी की वजन ली जाती है। वजन लेते समय ही आढ़तियों के लोग टोकरी में से सब्जी निकाल लेते है। तब जाकर वजन होता है। 

सब्जी की कीमत के बाद 8 प्रतिशत और दाम देना पड़ता हैः सब्जी खरीदने वालों से आठ प्रतिशत लेने और टोकरी से निकाली सब्जी ही आढ़तियों को फायदा होता है। रामलगन महतो कहते हैं कि गोपाल यादव ने 10 हजार रू0 सब्जी खरीदने वालों से सब्जी बेचे। तो वह 10 हजार रू0 सब्जीभर कर लाने वालों को दे देते हैं। उसके बाद 10 हजार रू0 में ही आठ प्रतिशत 1250 रू0 आढ़तियां ले लेते है। इस तरह सब्जी खरीदार सब्जी की वास्तविक मूल्य 10 हजार रू0 में 1250 रू0 अतिरिक्त देना पड़ता है। इसका मतलब 11250 रू0 हो जाता है। उसके बाद सब्जी खरीदार अधिक मुनाफा लेकर मूल्य निर्धारित करता है। जब जाकर उपभोक्ताओं को ऊंची कीमत दर पर सब्जी खरीदकर खाना पड़ता है। 

आलोक कुमार
मखदुमपुर बगीचा,दीघा घाट,पटना।

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