Sunday 26 March 2017

आखिर क्यों बारम्बार पदयात्रा करते हैं डा. राजगोपाल पी.व्ही.?

.

पटना। अभी-अभी प्रसिद्ध गांधीवादी पी.व्ही.राजगोपाल जी को ग्रामीण विकास, अहिंसा व शांति, बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास, भूमि सुधार आंदोलन के प्रति निस्वार्थ समर्पण रूपी कार्य को देखते हुए अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा तथा श्री गुरू गोविंद सिंह त्रिकोणमितीय विश्वविद्यालय गुरूग्राम के द्वारा डी.लिट. की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। 

एकता परिषद,बिहार के कार्यक्रम में आये थे
पटना जिले जिले के विक्रम प्रखण्ड मुख्यालय पर तीन दिवसीय युवा नेतृत्व शिविर 19 से 21 मार्च  तक आयोजित किया गया। इस शिविर में सूबे के 13 जिलों, झारखण्ड, मध्यप्रदेश व केरल के कोई 200 नवयुवक-नवयुवतियांे ने हिस्सा लिये। एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष  डा. राजगोपाल पी.व्ही. ने शिविर का नेतृत्व किया। मौके पर उन्होंने सामाजिक न्याय, समता व शांति स्थापित करने के लिए अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से सामाजिक बदलाव में युवाओं की भूमिका और नेतृत्व के लिए प्रशिक्षित किया। शिविर में श्रमदान, समूह परिचर्चा व प्रस्तुति, बौद्विक सत्र, सामूहिक खेलकूद, सामूहिक गान और रैली के लिए अलग-अलग सत्र आयोजित किये गये। बिहार में वंचित समुदाय दलित, महादलित और अनुसूचित जनजाति की भूमि संबध्ंाी समस्याओं और उसके समाधान पर व्यापक चर्चा हुई।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कर्मभूमि में गये
डा. राजगोपाल पी.व्ही. जी के नेतृत्व में सत्याग्रहियों का एक दल 22 मार्च को चम्पारण गया। 23 मार्च को सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान देशभर से आये वरिष्ठ गांधीजनों के द्वारा राजगोपाल जी को सत्याग्रह की पवित्र मिट्टी सौंपा गया। इस सत्याग्रह की पवित्र मिट्टी को लेकर सत्याग्रहियों का दल पूर्वी चम्पारण से लौटकर पटना जिले के नौबतपुर आये। इस पवित्र मिट्टी को लेकर 24 मार्च को सत्याग्रही पटना के लिए कूच करेंगे। इस पदयात्रा में बिहार के अलग-अलग हिस्सों से आये लगभग एक हजार सत्याग्रही भाग लेगें। इस आंदोलन में बिहार सहित अन्य राज्यों के भी भूमि अधिकार पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, 

बिहार विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने सत्याग्रहियों के साथ चले

बिहार विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने 24 मार्च को नौबतपुर लॉक में आयोजित सत्याग्रह पदयात्रा में आये लोगों को सफेद और हरा झंडा को हिलाकर रवाना किया। सबसे बड़ा सत्याग्रही बनकर उदय नारायण चौधरी 2 किलोमीटर पदयात्रा तय किये। नौबतपुर बाजार होते हुए पदयात्री चिरौरा में स्थित हाई स्कूल में रात्रि विश्राम किये। यह प्रथम पड़ाव रहा। पदयात्रा में आज बंधुआ मुक्ति मोर्चा और पूर्व राजसभा सदस्य तथा जद (यू) के वरिष्ठ नेता स्वामी अग्निवेश पहुॅंचकर सत्याग्रहियों की हौसला आफजाई की।स्वामी अग्निेवश चिरौरा पहुॅंचकर सभा को सम्बोधित किया और पदयात्रा की। सभा को सम्बोधित करते हुए उन्होने आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि पूरे देश में आवासीय भूमिहीनता एक बुरी अभिषाप साबित हो रही है। इससे छुटकारे के लिए आंदोलन जरूरी है और अपनी मांग को बुलंद करना होगा, यदि एक एकड़ की मांग करेंगे तो सरकार 10 डिसिमल पर तैयार होती है। इसलिए अपनी मांग को बढ़ाना होगा और दबाव बनाने के लिए आंदोलन को भी।यहां पर चिरौरा हाई स्कूल से सत्याग्रही 25 मार्च को आगे बढ़े और खगौल, फुलवारी होते हुए हड़ताली स्थल गर्दनीबाग पटना में पहुंचें। यहां पर महाधरना में शामिल हो गये।

एक शिष्टमंडल महामहिम राज्यपाल रामनाथ कोविंद से मिला
सूबे के चम्पारण में वर्ष 1917 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के द्वारा किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए किया गया आंदोलन देश् का पहला सत्याग्रह था। जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार की शोषणवादी नील खेती की तीनकठिया व्यवस्था से किसानों को छुटकारा मिला। इस सत्याग्रह के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर देश्भर के तमाम संगठन और सरकार चम्पारण सत्याग्रह की सौंवी वर्षगांठ कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। इसी क्रम में गांधीवादी जनसंगठन एकता परिषद के द्वारा वासभूमि अधिकार के लिए सत्याग्रह पदयात्रा 24 से 25 मार्च, 2017 तक की गयी । इस तरह के सत्याग्रह से बिहार के 6 लाख आवासीय भूमिहीनों के अधिकार की आवाज उठाने का प्रयास है।

बिहार में भूमि से जुड़ी कुछ जानकारी
1. भूमि का असमान वितरण-बिहार में जमीन के मालिकाने वाले समुदाय के लगभग 96.5 फीसदी लोग सीमांत और छोटे किसान हैं, जिनके पास कुल जमीन का लगभग 66 फीसदी है। वहीं महज 3.5 फीसदी छोटे और मध्यम किसानों के पास लगभग 33 फीसदी जमीन है। इसमें भी बड़ी जोत वाले महज 0.1 फीसदी जमींदारों के पास 4.63 फीसदी जमीन का मालिकाना है। (एन.एस.एस.ओ. की सर्वेक्षण रिपोर्ट 191, 2003)
2. शारीरिक आकस्मिक श्रम से आय कमाने वाले श्रेणीवार भूमिहीन परिवारों की संख्या
राज्य व श्रेणीवार कुल ग्रामीण परिवार भूमिहीन परिवारों की संख्या जो शारीरिक आकस्मिक श्रम से आय कमाते हैं प्रतिशत
बिहार 17829066 9773733 54.82 %
अनुसूचित जाति 3019662 2304711 76.32 %
अनुसूचित जनजाति 286393 164219 57.34 %

महिला नेत्त्व 1735780 965069 55.60 %
दिव्यांग 1100712 562892 51.14%
बिहार के कुल एक करोड़ अठहत्तर लाख उनतीस हजार छियासठ परिवारों के 54 फीसदी परिवार सन्तान्नबे लाख तिहत्तर हजार सात सौ तैंतीस भूमिहीन हैं। जिसमें अनुसूचित जाति के 76 फीसदी, अनुसूचित जनजाति के 57 फीसदी हैं।
óोत- सामाजिक आर्थिक व जाति गणना, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार 2011
3. भूमिहीनता-राज्य के कुल 17829066 (एक करोड अठहत्तर लाख उनतीस हजार छाछठ) परिवारों में 65.58 फीसदी 11692246 (एक करोड़ सोलह लाख बयान्बे हजार दो सौ छियालीस) परिवार भूमिहीन हैं। संदर्भ-आर्थिक, सामाजिक व जाति सर्वेक्षण 2011।
4. शेष भूदान भूमि-बिहार भूदान यज्ञ कमेटी को 232139 दानपत्रों के माध्यम से 648593 एकड़ भूमि दान में मिली। इसमें 103485 एकड़ भूमि अभी भी अयोग्य भूमि में सम्पुष्ट भूमि श्रेणी के अंतर्गत शेष बची हुई हैं, जिसकों भूमिहीनों के बीच वितरित किया जाये।

5. भूमि दखल देहानी-बिहार में आपरेशन भूमि दखल देहानी के अंतर्गत आजादी के बाद से राज्य में अब तक 23,77,763 परिवारों को भूमि का पर्चा दिया गया था किंतु उसमें से मात्र 16,75,720 परिवार काबिज पाये गये जबकि 1,47,226 परिवारों को कब्जा नहीं मिला और 5,00,564 परिवारों के बारे में रिकार्ड और भूमि की जानकारी नहीं मिली। 

6. अभियान बसेरा-2014 में महादलित एवं सुयोग्य श्रेणी (अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/ पिछड़ा वर्ग अने.1 व अने.2) के वासभूमि रहित परिवारों का सर्वे कर निर्धारित समय सीमा के अंदर वास योग्य 5 डिसमिल वास भूमि प्रत्येक परिवार को उपलब्ध कराने के उद्देष्य से प्रारंभ किया गया ‘अभियान बसेरा’ के अंतर्गत 1,00,268 परिवारों को चिन्हित किया गया जिसमें 42,400 परिवारों को वास भूमि प्रदान की गयी और 57,868 परिवार शेष रह गये। जबकि बिहार में लगभग 6 लाख परिवार बिल्कुल आवासीय भूमिहीन हैं और इनको भूमि सुधार आयोग के द्वारा 10 डिसमिल भूमि देने की अनुसंषा की गयी है।
7. वनाधिकार मान्यता कानून के अंतर्गत कुल 8022 दावे दाखिल हुए जिसमें से मात्र 121 परिवारों को वनाधिकार दिया गया है।
8. वर्ष 2006 में बिहार में श्री डी.बध्ंाोपाध्याय की अध्यक्षता में गठित भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट 2009 के मुताबिक-

बंटाईदारों के हित में कानून बनाने की अनुसंशा की गई और कहा गया कि बटांईदार के उत्पादन खर्च वहन करने की स्थिति में बंटाइदारों को उत्पादन का 70 से 75 फीसदी हिस्सा और भूस्वामी के उत्पादन व्यय में सहयोगी बनने की हालत में बंटाईदारों को 60 फीसदी हिस्सा देने की सलाह दी गई।

सीलिंग कानून में सुधार की वकालत करते हुए कहा गया कि कृषि तथा गैर कृषि भूमि के बीच अंतर खत्म किया जाना चाहिए। इसने 5 सदस्यों वाले एक परिवार के लिए 15 एकड़ सीलिंग निर्धारित करने तथा 1950 से विद्यमान मठों, मंदिर, चर्च सहित तमाम धार्मिक संस्थानों के लिए भी 15 एकड़ की सीलिंग निर्धारित की। 15 एकड़ सीलिंग मानकर आयोग ने यह निष्कर्ष निकाला कि बिहार सरकार अनुमानित रूप से लगभग 20.95 लाख जमीन हासिल कर पाएगी। रिपोर्ट कहती है कि 2001 की जनगणना के आधार पर 2007 में गणना करने पर लगभग 56.55 लाख कृषि मजदूर थे। इनमें से 16.68 लाख लोग सबसे निचले पायदान पर हैं। यदि एक एकड़ के हिसाब से भी इनको जमीन दी जाए तो यह आंकड़ा 16.68 लाख एकड़ तक पहुंचता है। कोई समस्या पैदा होने की हालत में इसे एक एकड़ से घटाकर 0.66 एकड़ किया जा सकता है। इसके आधार पर लगभग 10.30 लाख एकड़ जमीन की जरूरत पड़ेगी।
पदयात्रा की मांग
1. गैर कृषि ग्रामीण आवासहीन परिवारों को वास के लिए भूमि- प्रदेश के 5.84 लाख गैर कृषि ग्रामीण आवासहीन परिवारों में प्रत्येक परिवार को महिला के नाम पर कम से कम 10 डिसमिल भूमि आवंटित करने की व्यवस्था करना।
2. शेष भूदान भूमि का आवंटन- बिहार भूदान यज्ञ कमेटी को 2,32,139 दानपत्रों के माध्यम से 6,48,593 एकड़ भूमि दान में मिली। इसमें 1,03,485 एकड़ भूमि अभी भी ‘अयोग्य भूमि में सम्पुष्ट भूमि श्रेणी‘ के अंतर्गत शेष बची हुई हैं, जिसकों ग्रामीण गरीब भूमिहीनों के बीच आंबटित करने की व्यवस्था करना। 
3. भूमि दखल देहानी- आजादी के बाद से राज्य में अब तक 23,77,763 परिवारों को भूमि का पर्चा दिया गया। बिहार में आपरेशन भूमि दखल देहानी के अंतर्गत चालू की गयी प्रक्रिया में उसमें से मात्र 16,75,720 परिवार काबिज पाये गये जबकि 1,47,226 परिवारों को कब्जा नहीं मिला और 5,00,564 परिवारों के बारे में रिकार्ड और भूमि की जानकारी नहीं मिली। कब्जा विहिन परिवारों का जमीन के कब्जे की व्यवस्था करना और गुम हुए रिकार्ड की जांच कराना।
4. भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट की अनुसंषा को लागू करना।
5. वनाधिकार मान्यता कानून का क्रियान्वयन- वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के अंतर्गत प्रदेश में 8022 दावे दाखिल किये गये जिसमें से मात्र 121 दावे को मान्य करते हुए वनअधिकार दिया गया। कई गावों में ठीक तरह से कार्य नहीं किया गया। इसलिए वनअधिकार मान्यता कानून की समीक्षा कर निरस्त किये गये दावों पर पुनर्विचार करना और प्रक्रिया को प्रभावी तरीके से लागू करने की व्यवस्था करना।

शिष्टमंडल का नेतृत्व पूर्व सांसद संजय पासवान ने किया। इनके साथ एकता परिषद के प्रदेश संयोजक वशिष्ठ सिंह, एकता परिषद के नेशनल एडवोकेटर अनिल कुमार गुप्ता आदि थे। महामहिम से मिलने के बाद एकता परिषद के प्रदेश संयोजक वशिष्ठ सिंह ने बताया कि हमलोगों ने मध्यप्रदेश की तरह आवासीय भूमिहीनों के लिए कालबद्ध कानून की तरह ही बिहार में भी आवास के लिए निष्चित समय सीमा के अंदर आवासीय भूमिहीनों को 10 डिसमिल जमीन दी जाए। 

राजस्व व भूमि सुधार मंत्री से मिले
सत्याग्रहियों का एक प्रतिनिधिमंडल राजस्व व भूमि सुधार विभाग के मंत्री श्री मदन मोहन झा से मुलाकात कर अपनी मांगो से अवगत कराया और चर्चा की। राजस्व मंत्री ने कहा कि सरकार कमजोर वर्ग की भूमि समस्याओं को लेकर ंिचंतित है इसलिए विगत दिनों राजस्व की धारा 45 बी को लेकर कार्यवाही की गयी। मांग पत्र में वास भूमि रहित परिवारों को 10 डिसिमल जमीन, भूदान की शेष बची जमीन का आबंटन करने, कमजोर वर्ग के लिए न्यूनतम आवासीय भूमि गारंटी कानून और वनअधिकार मान्यता कानून के प्रभावी अनुपालन करने, डी.बंधोपाध्याय कमेटी की रिपोर्ट की अनुसंशा को लागू कराने के मुद्दों को प्रमुख रूप शामिल किया गया। प्रतिनिधिमंडल में एकता परिषद के श्री प्रदीप प्रियदर्शी, श्री अनीस व अनिल गुप्ता शामिल थे। 

26 मार्च को उपवास में रहे सत्याग्रही
सत्याग्रह पदयात्रा में शिरकत करने वाले 24-25 मार्च को पांव-पांव चले। नौबतपुर से हड़ताली स्थल गर्दनीबाग आये। यहां पर 26 मार्च को उपवास में रहे। इस अहिंसक आंदोलन में भारी संख्या में महिलाओं ने हिस्सा लिये। पटना,जमुई,मुजफ्फरपुर,सहरसा,मधेपुरा,बांका,गया आदि जिलों से हजारों की संख्या में शामिल होकर आंदोलन को सशक्त बनाने में भूमिका अदा किये। 

आखिर क्यों बारम्बार पदयात्रा करते हैं डा. राजगोपाल पी.व्ही. ?
ये हैं डा.राजगोपाल पी.व्ही.। केरल में जन्म लिए हैं और कार्य क्षेत्र मध्य प्रदेश हैं । इनके द्वारा एकता परिषद नामक जनसंगठन बनाएं हैं ।जल ,जंगल और जमीन को मुद्दा बनाकर संस्थाओं को संगठित कर जन मुद्दों को गांधीवादी तरीके से समाधान करवाने में विश्वास करते हैं । इनके अहिंसक आंदोलन के दौरान नारा बुलंद होता है श्बंदूक नहीं कुदाल चाहिए हर हाथ को काम चाहिए ।

जनादेश 2007 में ग्वालियर से दिल्ली तक सत्याग्रही पदयात्री पांव-पांव चलने के भूमि अधिकार संबंधित राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति बनाने वाली कमिटी बनी। जन सत्याग्रह 2012 में ग्वालियर से दिल्ली जाने के दरम्यान आगरा में समझौता की गयी। तत्कालीक केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री ने राज्य के स्पष्ट नाम से एडवाइजरी जारी की। समय सीमा के अंदर कार्य अंजाम देना था। केंद्र में कांग्रेसी सरकार के शासनकाल में 2007 और 2012 में एकता परिषद के संस्थापक डा.राजगोपाल के नेतृत्व में 2007 में 25 हजार 2012 में 1 लाख की संख्या में सत्याग्रही पदयात्रा में शिरकत किये।

2007 में राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति कमेटी बनी। 2012 में राज्य के मुखय मंत्रियों के नाम एडवाइजरी जारी की गयी। ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार के द्वारा 20 मार्च 2013 को मुख्यमंत्री बिहार को भूमि सुधार के लिए भेजी गयी एडवाइजरी पर कार्यवाही करना। इस एडवाइजरी को लेकर बंद कमरे व कमरे के बाहर विमर्श जारी है। सूबे के नौकरशाह भी विमर्श में शामिल होकर एडवाइजरी को लागू करने की कोशिश करते हैं। इस नेताओं की तरह ही चले हैं । इसका असर जनसंगठन और जन आंदोलन पर पड़ता है।
सबसे बड़ा सत्याग्रही के रूप में बिहार विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी 2 किलोमीटर चले। इनके साथ डा. राजगोपाल पी.व्ही., अनीश , प्रदीप प्रियदर्शी, वशिष्ठ कुमार सिंह, अनिल कुमार गुप्ता, विजय कुमार, अनिल पासवान, उमेश कुमार,सिंधु सिन्हा,राकेश दीक्षित,जोसेफ,बाबूलाल चौहान, जगतभूषण, शत्रुध्न कुमार, विटेश्वर सौरभ, संजय कुमार,, अनिल पासवान,क्रांति देवी आदि चल रहे हैं। इसके अलावे पटना,गया,जमुई आदि जिले के हजारों की संख्या में सत्याग्रही भाग लिये।


आलोक कुमार




No comments: