Tuesday 15 February 2022

15 फरवरी को तारापुर शहीद दिवस का आयोजन किया जाएगा: सीएम नीतीश

मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ में देना तुम फेंक मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक...

             खैर, 90 साल बाद के बाद ही सही....

पटना.बिहार के मुंगेर के तारापुर में बने शहीद स्मारक में अमर शहीदों की मूर्ति का सीएम नीतीश कुमार ने अनावरण किया. मुख्यमंत्री ने 1, अणे मार्ग स्थित संकल्प से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से शहीद स्मारक तारापुर, मुंगेर में अमर शहीदों की मूर्ति का अनावरण किया. इसके साथ ही उन्होंने शहीद पार्क और पुराना थाना परिसर में पार्क के विकास कार्य का भी लोकार्पण किया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को तारापुर के 34 बलिदानियों को सम्मान देते हुए वर्चुअल माध्यम से यहां शहीद पार्क का लोकार्पण किया.  इस पार्क में 15 फरवरी, 1932 के 13 ज्ञात और 21 अज्ञात बलिदानियों की वास्तविक और सांकेतिक प्रतिमाएं लगाई गई हैं. मूर्तियों के अनावरण के साथ ही सीएम नीतीश कुमार ने यहां हर साल 15 फरवरी को शहीद दिवस राजकीय समारोह के रूप में मनाने की घोषणा की है.

मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस रेडियो कार्यक्रम के जरिये देशवासियों को संबोधित किया, वह इसका 85वां संस्करण रहा. पीएम मोदी हर महीने के आखिरी रविवार को देशवासियों को इस रेडियो कार्यक्रम के जरिये संबोधित करते रहे हैं. इस बार 11 बजे की बजाय यह कार्यक्रम 11ः30 बजे से शुरू हुआ.राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनकी पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद पीएम मोदी ने ‘मन की बात‘ को संबोधित किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 31 जनवरी को मन की बात में तारापुर के शहीद की विशेष तौर पर चर्चा की गई थी. बिहार सरकार भवन निर्माण विभाग के माध्यम से बनाए गए शहीद स्मारक भवन को हटाकर नए स्वरूप के साथ शहीद स्मारक पार्क का निर्माण किया है. नए रूप में ब्रिटिश कालीन थाना भवन जिस पर 15 फरवरी 1932 को आजादी के दीवानों ने अपना सर्वस्व बलिदान देकर तारापुर को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर अंकित करा दिया था. उसको स्मारक का स्वरूप दिया जा रहा है.

15 फरवरी को तारापुर शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन तारापुर थाने पर तिरंगा फहराने के दौरान 34 क्रांतिकारियों ने अपने सीने पर गोली खाई थी. तारापुर में जलियांवाला बाग कांड के बाद दूसरा सबसे बड़ा नरसंहार हुआ था. पिछले कुछ सालों में लोगों ने इनके बलिदान को भुला दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात‘ कार्यक्रम में तारापुर शहीद दिवस का जिक्र कर दिया. इसके बाद से यह दिन चर्चा में आया. आइए, जानते हैं इस दिन पर शहीद क्रांतिकारियों की कहानी.

15 फरवरी 1932 को तारापुर अनुमंडल के जमुआ सुपौर से 400 से अधिक क्रांतिकारियों का धावक दल अंग्रेजों द्वारा स्थापित थाने पर तिरंगा फहराने का संकल्प लेकर घरों से निकल पड़ा. उनके हौसला अफजाई के लिए सड़क के दोनों ओर तारापुर संग्रामपुर, असरगंज, टेटियाबम्बर बंबर के लोग खड़े होकर भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारे लगा रहे थे.तेज कदम से धावक दल का जत्था तारापुर थाना की ओर बढ़ रहा था.तारापुर थाना के पास ही बने सरकारी भवन में तत्कालीन कलेक्टर और एसपी मौजूद थे. अंग्रेजी अफसरों ने जब देखा कि क्रांतिकारी तारापुर पर थाना पर चढ़ने लगे तो उन्होंने निहत्थे क्रांतिकारियों पर गोली चलवा दी. फिर क्या गोलियों की तरतराहट के बीच क्रांतिकारी कदम रुके नहीं, वे तिरंगा फहरा कर ही रुके.

इस दौरान 34 क्रांतिकारी शहीद हुए. हालांकि, स्थानीय समाजसेवी राहुल कुमार की मानें तो यहां 100 से अधिक क्रांतिकारी शहीद हुए थे, लेकिन गोलीबारी के तुरंत बाद अंग्रेजी अफसरों ने ट्रक और ट्रैक्टर में क्रांतिकारियों की लाशों को भर-भर कर सुलतानगंज घाट जाकर गंगा में बहा दिया था. कुछ शवों को छोड़ दिया गया. गिनती हुई तो 34 शव बरामद किए गए. तब से तारापुर थाने में 26 जनवरी और 15 अगस्त के दिन झंडा फहराने के अलावा 15 फरवरी को भी झंडा फहराया जाता है.इस दिन तारापुर शहीद दिवस के नाम से लोग मनाते हैं. तारापुर शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता था.

4 अप्रैल 1932 को कांग्रेस के अखिल भारतीय अधिवेशन में तारापुर के अमर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और यह प्रस्ताव पारित किया गया कि सम्पूर्ण भारत में प्रत्येक वर्ष 15 फरवरी को तारापुर शहीद दिवस का आयोजन किया जाएगा. 1932 से 1947 तक यह सिलसिला जारी भी रहा. लेकिन आजादी के बाद ही शहीदों की स्मृति पर इंतजार की परत चढ़नी शुरू हो गईं. इलाके के बुजुर्गों से पता चलता है कि बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह का ताल्लुक मुंगेर जिले से ही था, जिसके कारण पटना में 15 अगस्त 1947 को शहीद स्मारक की आधारशिला रखे जाने के बाद उम्मीद थी कि तारापुर की शहादत को सम्मान देने के लिए इस क्षेत्र में भी शहीद स्मारक बनेगा.लेकिन कोई सार्थक परिणाम नहीं दिखा.

साल 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने तारापुर थाना भवन के सामने शहीद स्मारक बनवाया गया. क्षेत्र के विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री रहे शकुनी चैधरी के प्रयासों से इस शहीद स्मारक के आगे तिराहे पर एक प्रतिमा स्थल का शिलान्यास और विधायक निधि की धनराशि से प्रतिमा स्तंभ का निर्माण संभव हो पाया.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से उम्मीद ज्यादा जगी है। यहां शहीद पार्क बनने और शहीद स्मारक भवन में शहीदों की प्रतिमा बनकर तैयार है. यह निर्माण कार्य भवन निर्माण विभाग करवाया है, जिसपर 1.46 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है.उधर, यहां के लोग केवल स्मारक बना देने से ही संतुष्ट नहीं है.वो चाहते हैं कि 15 फरवरी 1932 को हुए तारापुर गोलीकांड के शहीदों और शहादत की घटना को उचित सम्मान मिले. इस सिलसिले में भाजपा के पूर्व अध्यक्ष दिलीप कुमार रंजन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है.

वरिष्ठ समाजसेवी मनोज मिश्रा ने बताया कि 34 शहीदों में से 13 ज्ञात और 21 अज्ञात शहीद हुए थे. 13 अप्रैल 1919 में जलियांवाला बाग कांड के बाद भारत में दूसरा सबसे बड़ा अंग्रेजों का क्रूरतम नरसंहार मुंगेर के तारापुर में हुआ था. उन्होंने बताया कि 1984 में तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रशेखर सिंह ने शहीदों की याद में स्मारक का निर्माण कराया था, लेकिन पीएम मोदी द्वारा मन की बात में इस स्थान का जिक्र होने के बाद यहां शहीद पार्क बनाने का निर्णय लिया गया.

उन्होंने बताया कि 13 ज्ञात शहीदों के आदमकद प्रतिमा स्मारक पर लगाई गई है. साथ ही इस अज्ञात शहीदों के चित्र उकेरा गया है.स्मारक के पास ही बड़ा पार्क बनाया गया है. इसमें 12 बेंच बैठने के लिए लगाए गए हैं तो पार्क की दीवारों पर शहीदों की अमर गाथा चित्रों के रूप में प्रस्तुत की गई है. 


आलोक कुमार

 

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