Sunday 22 May 2022

पुस्तक का नाम ‘ आध्यात्मिक झरोखा‘ रखा

 राजस्थान.अविला की संत तेरेसा ने एक आत्मा की अन्तर्यात्रा की कहानी लिखी, और उसका नाम THE SPIRITUAL WINDOWS दिया है, जिसका हिंदी अनुवाद है,‘ आध्यात्मिक दुर्ग‘.‘आध्यात्मिक दुर्ग‘ में आत्मा अपनी यात्रा बाहर से अन्तः की ओर करती है, जिसमें उसे अनेक दुर्गों का सामना करना पड़ता है, जिसमें उसे अनेक दुर्गों का सामना करना पड़ता है, ऊंची-नीची,लम्बी- चौड़ी ,अंधेरी घाटियों आदि के रूप में व्याख्यायित है.राजस्थान में स्थित संत जेवियर्स कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल हैं फादर रेमण्ड केरोबिन,फादर रेमण्ड केरोबिन आध्यात्मिक दुर्ग का लेखक हैं. पिछले दिनों आध्यात्मिक दुर्ग का विमोचनकिया गया.दिल्ली जेसुइट प्रोविंश के फादर प्रोविंशियल सुसैमनी एसजे द्वारा पुस्तक का विमोचन किया गया.

मैंने संत तेरेसा की इसी पुस्तक,‘ आध्यात्मिक दुर्ग‘ से प्रेरणा प्राप्त कर अपनी इस पुस्तक का नाम ‘ आध्यात्मिक झरोखा‘ रखा है. प्रस्तुत पुस्तक में ‘झरोखा‘ शब्द का अभिप्राय उन छोटी-बड़ी खिड़कियों से है, जिनके माध्यम से आत्मा/व्यक्ति अपने जीवन के परे विभिन्न घटनाओं पर एक नजर डालता है, तथा उनसे अपने भावी जीवन के लिए कुछ सीख लेता है.ये झरोखा इस पुस्तक में विभिन्न कहानियों,जीवनियों एवं घटनाओं के रूप में आए हैं.

प्रस्तुत पुस्तक लिखने के मेरे निम्नलिखित अभिप्राय है- यह पुस्तक..

1. वैसे लोगों के लिए है, जो अपनी व्यस्तता के बावजूद, कुछ समय निकाल कर कुछ रोचक एवं प्रेरणादायक कहानियां पढ़ कर अपने जीवन को सजाने-संवारने में विश्वास रखते है.

2. वैसे शिक्षक-शिक्षिकाओं के लिए है,जो जीवन में घटित घटनाओं को नीति-शिक्षा से जोड़ने में विश्वास रखते हैं.प्रस्तुत पुस्तक आपको चिंतन एवं एकांकी आदि तैयार कर प्रश्न पूछने के लिए प्रचूर मात्रा में सामग्री प्रदान करेगी.

3. वैसे धर्म सामाजिक समुदायों के लिए है, जो प्रति माह एक दिवसीय ‘रेकलेक्शन‘ अथवा प्रार्थना एवं मनन-चिंतन में समय बिताने में विश्वास रखते हैं. प्रस्तुत पुस्तक विभिन्न विषयों पर चिंतन एवं धर्मग्रंथ बाइबिल से उनके प्रेरणों के द्वारा काफी हद तक सहायक सिद्ध हो सकती है.

4. वैसे पुरोहितों के लिए है,जिनको प्रतिदिन और विशेषकर रविवारीय मिस्सा पूजा में प्रवचन अथवा उपदेश देने के लिए काफी समय इसकी तैयारी में लगाना पड़ता है. प्रस्तुत पुस्तक आपको चिंतक एवं धर्मग्रंथ बाइबिल से उनके प्रेरणों के द्वारा सहायक सिद्ध हो सकती है.

अंततः मैं फादर ड्यूरैक,ये.स.,फादर सुशील बिलुंग,ये.स. तथा सिस्टर बेला,ओ.एस.यू. के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं,जिन्होंने न सिर्फ इस पुस्तक की ‘ प्रूफ रीडिंग‘ की है,बल्कि अपने बहुमूल्य सुझावों से इसे आकर्षक तथा प्रेरणादायक बनाने में अहम भूमिका निभाई है.

मैं अपने प्रोविंशियल फादर जोस वड़ाशेरी,ये.स. के प्रति कृतज्ञ हूं,जिन्होंने मुझे इस पुस्तक को छापने की अनुमति दी है, तथा अपने सह्दय विचारों एवं सुझावों से लाभान्वित भी किया है.

पटना महाधर्मप्रांत के हमारे महाधर्माध्यक्ष विलियम डिसूजा,ये.स.के प्रति मैं कैसे धन्यवाद ज्ञापन करूं, समझ में नहीं आता है. उन्हीं की प्रेरणा एवं आशीर्वाद का फल है यह पुस्तक. उन्होंने कैथोलिक हिंदी साहित्य के लिए अपना योगदान देने के लिए मुझे हमेशा प्रोत्साहित किया है, तथा धर्मप्रांत की कलीसिया के आध्यात्मिक विकास के लिए प्रस्तुत पुस्तक को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया है. धन्यवाद शब्द यहां अति लघु जान पड़ता है. प्रस्तुत पुस्तक के लिए आपने बहुमूल्य संदेश लिखा है, तथा इस प्रकाशित करने की अनुमति दी है. यह मेरे लिए बहुत ही उत्साहवर्धक एवं प्रेरणादायक भी है.

मैं अपने सभी मित्रों एवं शुभचिंतकों को भी धन्यवाद देता हूं,जिन्होंने हमेशा मुझे प्रोत्साहित एवं क्रियाशील बने रहने में मेरी सहायता की है. आप सभी की प्रार्थनाओं एवं सहायता के कारण ही मेरी कलम कुछ लिखने को बाध्य हो जाती है.

आलोक कुमार  



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