Friday, 18 January 2013

Barkha Lakra,Ranchi


आदिवासी बालाओं के साथ प्रताड़ना का अन्तरल सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता
-बरखा लकड़ा-
स्वतंत्र पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकत्री

समाज में स्त्रियों की स्वतंत्रता का लगातार अपहरण किया जा रहा है। इन्हें  चंद सिक्कों के लिए अपनी धरती को छोड़कर बड़े शहरों में जाकरदाई के रूप में काम करने देह व्यापार जैसे घिनौने काम करने के लिए मजबूर कर दिया जाता हैं। जबकि इस बात को झूठलाया नहीं जा सकता हैं, कि ‘‘महिलाएं वस्तुतः समाज और राष्ट्र का निर्माण करती हैं। इतिहास साक्षी हैं कि अनेक महापुरूषों के निर्माण में महिला की विशेषकर उनकी माताओं की प्रमुख भूमिका रही है। महिला की अन्तर्निहित एवं अतिप्रिय व्यक्ति को लक्ष्य कर के आज से लगभग ढ़ाई हजार वर्ष पूर्व यूरोप के आदि दार्शनिक अरस्तु ने यह महत्वपूर्ण कथन में कहा था, कि-’’महिला की उन्नति या अवन्नति पर ही राष्ट्र की उन्नति या अवनति आधारित है।

आज हम 21 वीं सदी की दहलीज पर कदम रख चुके हैं। हम झारखंडवासियों का चिर-प्रतीक्षित स्वप्न 15 नवम्बर 2000 को साकार हो गया। झारखंड हर दृष्टि से सदियों से समृद्ध रहा हैं, पर यहां एक अहम सवाल खड़ा होता हैं;- ‘कि क्यों इस समृद्ध झारखंड की धरती में महिलाओं को महानगरों की ओर रूख करना पड़ रहा हैं, खासकर के झारखंड निर्माण होने के बाद से ज्यादा? इस सवाल का जवाब शायद ही कोई बड़े ओहदे वाला व्यक्ति देना चाहेगा। पर इस सवाल का जवाब वो हर लड़की के पास होगा। जोकि अपनी स्कूल जाने की उम्र में अपने परिवार की भरण-पोषण, नन्हें भाई-बहनों की परवरिश के लिए रोजगार की तलाश में पलायन करती है।

यहां पलायन के कुछ गंभीर मामलों का जिक्र करना जरूरी होगा। 10 साल की रोशनी को उसके एक पड़ोसी ने बेच दिया था। करीब दो वर्षो तक रोशनी को दिल्ली के किसी डब्बू नामक व्यक्ति के घर में रखा गया था। इस दौरान उसके साथ मारपीट किया जाता था। भरपेट खाना नहीं दिया जाता था। एक दिन मौका पाकर वह वहां से भाग निकली तथा दिल्ली की सड़कों पर भटकती रही। इसी दौरान गस्त लगाती दिल्ली पुलिस ने उसको पकड़ लिया एवं उसका पता पूछकर उसके पिता को सौंप दिया। पर चामा मंजू की 12 साल की बेटी सावित्री को सुले गांव का एक दलाल लेकर जा चुका है। काफी खोजबीन करने के बाद भी अबतक उसका पता नहीं चला है।

इसी तरह गुमला की सीमा उरांव को उसकी एक पड़ोसी ठग कर दिल्ली ले गई कि उसको वहां अंग्रेजी की शिक्षा दी जायेगी और वह गांव वापस आकर अच्छी शिक्षिका बन जाएगी। सीमा 2010 में  मैट्रिक की परीक्षा 54 प्रतिशत अंक से पास की। पर सीमा को हसीन सपने दिखाकर दलाल ने दिल्ली के अशोक नगर के घुंघरू गली में बेच दिया। सीमा का मानसिक तथा शारीरिक शोषण खूब हुआ, जिसके चलते उसकी मानसिक संतुलन बिगड़ गई। इसी दौरान उसे अपने गांव के खेत में छोड़ दिया गया था। लेकिन बाद में काफी इलाज होने के बाद वह ठीक है। पर वह बीच-बीच में उस वाक्य को याद कर सिहर उठती है। जगरनाथपुर की मुन्ती को दिल्ली में दो साल के लिए कैद करके रखा गया था, जोकि काफी मशकक्त के बाद छुड़ा कर लाया गया। इन भोली-भाली लड़कियों को पूरा पैसा तो दूर आधे पैसा लेने के लिए भी काफी यातनाएं सहनी पड़ती जबकि इसकी पूरी मेहनत की कमाई होती।

पलायन एवं मानव तस्करी झारखंड में विकराल रूप ले रही है। अधिकतर पलायन का क्षेत्र गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, खूंटी, दुमका, पाकुड़ आदि जिले हैं। रोजी-रोटी की खोज में यहां से प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख 25 हजार लोग पलायन करते है। जिसमें 33 हजार लड़कियां शामिल है। जिसमें तो 10 से 11 प्रतिशत लड़कियां गुमनामी के अंधेरे में चली जाती हैं। मानव तस्करी से शिकार लड़कियों का इस्तेमाल घरेलू नौकर, वेश्यावृति, सेक्स टूरिज्म, पोर्नोग्राफी एंव अंगों का व्यापार इत्यादि शामिल किया जाता है। हर साल 70 प्रतिशत लड़कियां झारखण्ड से पलायन होती है जिसमें 18 वर्ष से कम होती हैं। नई दिल्ली स्थित सोसल इंस्टीच्यूट के अनुसार दिल्ली में कार्यरत 54.78 आदिवासी लड़कियां घरेलू कामगार के रूप में कार्यरत हैं। इन लड़कियों का जिलावार वर्गीकरण से पता चलता है कि सिमडेगा से 39.88 प्रतिशत, गुमला से 28.35 प्रतिशत, रांची से 23.98 प्रतिशत, लातेहार से 21.18 प्रतिशत, लोहरदगा से 0.31 प्रतिशत, पलामू से 3.74 प्रतिशत एंव सिंहभूम से 0.31 प्रतिशत लोग घरेलू कामगार के रूप में कार्यरत हैं। इसमें  सबसे ज्यादा चिंतनीय बात यह है कि 72.1 प्रतिशत लड़कियां अविवाहित ही रह जाती हैं।     

पलायन का मुख्य कारण विस्थापन है पर कुछ लड़कियां मेट्रो की चकाचौंध को देखकर आर्कषित होती तो कुछ लड़कियां -महिलाएं मजबूरी में पलायन करती हैं। और ज्यादातर पलायन मानव तस्करी ग्रामीण इलाके के आदिवासी दलित लड़कियां शिकार होती हैं। लड़कियों की तस्करी में सबसे ज्यादा दलालों की भूमिका होती है और कई मामलों में देखा गया है कि दलालों को स्थानीय पुलिस का संरक्षण प्राप्त था। फलस्वरूप, पुलिस को सूचना देने के बावजूद दलालों के ऊपर कोई कार्रवाई नहीं हुई। 

जहां तक ग्रामीण परिवेश में गैर-आदिवासी महिलाएं से आदिवासी महिलाएं ज्यादा स्वतंत्र होती हैं। आदिवासी महिलाएं काफी परिश्रमी होती हैं वे अपनी आर्थिक क्रिया-कलापों को निर्वाहन स्वंय करती हैं। वे खेतों में अपने परिवारों से मिलकर खेती-बारी करती हैं। दूसरी वे अपनी खेती-बारी से ही अजीविका एवं पढ़ाई-लिखाई करती हैं। विकास के नाम पर जिस तरह से उनकी जमीन को हड़प लिया गया और उन्हें अपने आजीविका के मुख्य संसाधन से बदखल होना पड़ा। झारखण्ड गठन के बाद रांची में उद्योगपति बड़े-बड़े अपार्टमेंट, शोपिंग मॉल खोल रहे हैं, जिसके लिए आदिवासियों की जमीन को गैर-कानूनी तरीके से छिना जा रहा है। जमीन का मालिक उसी शोपिंग मॉल में झाड़ू-पोछा लगाकर जीवन बसर कर रहे हैं और उनकी लड़कियां महानगरों की ओर आजीविका की उम्मीद में पलायन कर रहे हैं। आदिवासियों की जमीन को कौड़ी के भाव से खरीदकर, व्यापारी करोड़ों में कमा रहे हैं, लेकिन आदिवासियों को अपनी ही धरती से पलायन होने को मजबूर हैं।

अभी ताजा उदहारण नगड़ी गांव का है, जहां राज्य सरकार विकास के नाम पर 227 एकड़ जमीन को बंदूक के बल पर आदिवासी रयैतों से छिनने का प्रयास कर रही है। झारखंड सरकार लगभग 341 करोड़ की जमीन को मात्रा 1.5 लाख रूपये देकर ग्रामीणों से छिनने का प्रयास कर रही है। साथ ही कांके के 35 गांवों को ग्रेटर रांची बनाने के लिए 28,000 एकड़ जमीन को चिन्हित किया गया है। इन रैयतों को पीढ़ी दर पीढ़ी आजीविका चलाने के लिए संसाधन उपलब्ध करायेगी जैसे ये लोग खेती कर सदियों से अपना जीवन निर्वाह करते रहे हैं? अगर इस जमीन को ग्रामीणों से छिना गया तो वे पलायन करने को मजबूर होंगे और वहां की लड़कियां एवं महिलाएं मानव व्यापार की शिकार होंगी।

झारखंड एक रत्नगर्भ धरती में से एक है। इस राज्य को बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा से भरपूर देश में एक अमीर राज्य का दर्जा प्राप्त है। देश में उपलब्ध खनिज संसाध्नों को 41 प्रतिशत झारखंड में पाया जाता है। राज्य के कुल क्षेत्रफल का 17 प्रतिशत क्षेत्र जंगल है। कुल खदानों को 95 प्रतिशत राज्य के अधीन काम करती है। फिर भी अखिर क्यों  ज्यादातर लोग खासकर लड़कियां एवं महिलाएं पलायन कर रही हैं? इसका जवाब सरकार एवं नौकरशाहों को टटोल के देखें तो क्या आज हम उन जरूरमंद महिलाओं के लिए कितनी जो अपनी गरीबी का बोझ निःसंदेह बच्चियों की पीठ पर बंधे बच्चों को देख सहज ही समझा जा सकता है। ये मासूम आखिर करें तो क्या? घर का काम पेट भर सके। झारखंड राजनीतिक नक्शे पर अंकित यह आदिवासी बहुल राज्य है शैक्षिक तथा आर्थिक दृष्टि से यहां महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं है।

महिला के विकास को देश तथा समाज के विकास की कुंजी माना जाता है। आज महिला नीति बनाने के तरह-तरह के  दावे किये जा रहे हैं। महिला सशक्तिकरण का उदाहरण जो कि हजारों में दो-तीन मिलेगी, महिलाओं के सर्वागीन विकास का जिसमें, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सम्मिलित हैं फिर भी इनमें बेरोजगारी की समस्या खड़ी है। हर महिला का सपना होती हैं कि वह अपने परिवार के बीच में रहकर ही जीवन यापन करे पर ये अपने सपने के ताने-बाने से निकलकर वास्तवित धरातल पर कदम रखकर मानव तस्करी का शिकार हो रही हैं। आज जरूरत हैं सामाजिक बदलाव की, दृष्टिकोण की ताकि महिलाओं की स्थिति, शैक्षिक स्तर, आर्थिक स्तर, सामाजिक तथा प्रशासनिक क्षेत्रों में विकसित वर्ग के समक्ष लाने की। हमें समाज की सम्पूर्ण सोच रवैये और पूर्वाग्रह, पूर्ण धरणाओं जिसके हम गुलाम है इसके प्रति बदलाव लाना होगा। नीति-निर्धारण से क्रियान्वयन तक विभिन्न पहलुओं पर ईमानदारी के साथ निष्ठापूर्वक अमल करके ही इस चुनौती का सामना करना संभव हो पायेगा।
 
   दूसरी ओर राजनीतिक दल के खादीधारियों के द्वारा सत्ता बनाने और सत्ता बचाने के खेल में लगे रहते हैं। झारखंड के 12 साल में 8 मुख्यमंत्री बने। सभी मुख्यमंत्री झारखंडी ही थे। जिन्होंने अपने बिरादरी के लिए कोई खास कार्य नहीं कर सके। इस समय भी झारखंड में अस्थिरता बरकरार है। अब देखना है कि लाट साहब के द्वारा गर्वनर रूल्स लागू किया जाता है अथवा राजनीतिज्ञों को ही मिलकर साझा सरकार बनाने का न्योता दे रहे हैं।

 
Keep it up Barkha ji.
 

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