अहिंसात्मक ढंग से कार्य एवं आंदोलन करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए गांवघर कब्रगाह बनते चला जा रहा है। एक ओर माओवादियों एवं नक्सलियों के निशाने पर तो दूसरी ओर पुलिस के हत्थे सामाजिक कार्यकर्ता चढ़ते जा रहे हैं। खबर है कि गया जिले के मोहनपुर प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ता कृष्ण कुमार मांझी को 19 दिसंबर 2012 को सादे लिवास में रहने वाले सीआरपीएफ ने धड़ धबोचा। माओवादियों के बिग बॉस करार करने के सिलसिल में उसे कई थानों का चक्कर लगाया गया। सीआरपीएफ के जवानों ने घर में तलाशी की और तलाशी के दरम्यान संभावित बिग बॉस के घर से चिड़िया मारने वाला गन बराबद हुआ। तब जाकर तीसरे दिन कार्यकर्ता को छोड़ दिया गया।
मुखबिरों के इशारे
पर निर्दोष को
फंसाकर माओवादी बनाने का
प्रयास विफल
खार्की वर्दी का
गरूर सामने आया
छापेमारी के दरम्यान
माओवादी के बिग
बॉस के घर
से चिड़िया मारने
वाला‘गन’बराबद
आलोक
कुमार
सत्य
और अहिंसा के
मार्ग पर चलकर
प्राकृतिक प्रदत संसाधन जल,जंगल,जमीन
के मुद्दे पर
कार्य करने के
लिए प्रसिद्ध गांधीवादी
विचारक पी0व्ही0राजगोपाल ने 1990 में
जन संगठन एकता
परिषद का निर्माण
किया है। राष्ट्रपिता
महात्मा गांधी के मंत्र
और राह पर
चलकर देश-प्रदेश
के सुदूर गांव
में कार्य किया
जाता है। जहां
माओवादी और पुलिस
से सामाजिक कार्यकर्ताओं
को दो-दो हाथ
करना पड़ता है।
गांवघर में माओवादियों
एवं नक्सलियों के
हिंसक के रास्ता
पर चलकर आम
लोगों का कल्याण
और विकास की
बात करते हैं।
गण के बल
पर तंत्र को
चुनौती देते हैं।
वहीं जन संगठन
एकता परिषद के
द्वारा गांधी,विनोबा,जयप्रकाश
और अम्बेडकर के
बताये मार्ग पर
चलकर अहिंसात्मक आंदोलन
कर आम लोगों
का कल्याण और
विकास की करते
हैं। सरकार से
सड़क से संसद
तक संवाद कर
आम लोगों की
समस्याओं का समाधान
करने की जन वकालत
करते हैं। इसी
को पुलिस नहीं
समझ सकती है
और नक्सलियों की
तरह ही जन
संगठन के कार्यकर्ताओं
के साथ दुर्व्यवहार
करने लगती है।
वहीं माओवादियों और
नक्सलियों के जानी
दुश्मन बन जाते
हैं कि हिंसक
के बदले अहिंसक
आंदोलन करने से
नाराज हो जाते
हैं और सत्ता
के पोषक करार
देते हैं और
इस तरह की
नौटंकी बंद करने
पर बल देते
हैं।
बंदूक
नहीं कुदाल चाहिए
हर हाथ को
काम चाहिए,बिन
महिला के सहयोग
से हर बदलाव
अधूरा आदि नारा
बुलंद करने वाले
सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस
और नक्सली परेशान
और हलकान करने
पर उतारू हैं।
आवासीय भूमिहीन महादलितों को
चार डिसमिल जमीन
देने और उस
जमीन पर इंदिरा
आवास योजना से
घर निर्माण कराने
की मांग को
लेकर सरकार और
नौकरशाहों से संवाद
करने वाले कार्यकर्ता
दहशत में जीने
को बाध्य हैं।
इस पर आप
यकीन नहीं करेंगे।
परन्तु यह सौ
फीसदी सही है।
गरीबों की बात
करने वाले सामाजिक
कार्यकर्ता नक्सली बन जा
रहे हैं। जो
जल,जंगल,जमीन
की चर्चा करते
हैं। उनको जमकर
ठोकाई कर दी
जाती है। इसके
आलोक में बढ़ते
बिहार की छवि
धीरे.धीरे बिगड़ते
ही चला जा
रहा है। अभी
हाल में ही
राष्ट्र के मुख्यधारा
से अलग-थलग
और समाज के
किनारे रह जाने
वाले महादलित मुसहर
समुदाय के सदस्य
सामाजिक कार्यकर्ता कृष्ण कुमार
मांझी (42 साल) को
सेंट्रल रिर्जव पुलिस फोर्स
(सीआरपीएफ) के अधिकारियों
और जवानों ने
तीन दिनों तक
जमकर धुनाई करते
रहे। हुआ
यह कि किसी
के इशारे पर
गया जिले के
मोहनपुर प्रखंड के एरकी
पंचायत के गजाधरपुर
गांव में रहने
वाले महादलित मुसहर
परिवार के कृष्ण
कुमार मांझी को
सीआरपीएफ ने गिरफ्तार
कर लिया। इनके
अलावे गांव के
शिक्षक राम रतन
को भी पकड़ा
गया। दोनों किसी
काम से 19 दिसंबर
2012 को गया कोर्ट
में गये थे।
दोनों के ऊपर
गया कोर्ट में
ट्रायल चल रहा
है। सामाजिक कार्यकर्ता
कृष्ण कुमार मांझी
ने कहा कि
उसे कई बार
झूठे मुकदमे में
फंसाकर माओवादी करार करने
का प्रयास किया
गया। लेकिन हर
बार बेदाग खरा
उतर रहा है।
उसके और माओवादियों
के बीच में
दूर-दूर तक
किसी तरह की
रिश्ता नहीं है।
सामाजिक कार्यकर्ता गिड़गिड़ाते हुए
कहते हैं कि
मैं एक गरीब
महादलित मुसहर समुदाय के
सदस्य हंू। लाचारी
के दलदल में
रहने के बाद
भी किसी तरह
से आई0ए0
पास किये हैं।
सरकारी लोकलुभावन नारा ‘आधी
रोटी खाएंगे फिर
भी स्कूल जाएंगे
’ की तर्ज पर
चलकर किसी तरह
से टीचर ट्रेनिंग
की भी परीक्षा
पास कर ली।
टीचर ट्रेनिंग का
प्रमाण-पत्र होने
के बाद भी
टीचर की नौकरी
नहीं मिल सकी।
कारण कि पैरवीपुत्र
नहीं थे। खैर,इस समय
गैर सरकारी संस्था
प्रगति ग्रामीण विकास समिति
में सेवारत हंू।
समिति के द्वारा
जो राशि हासिल
होती है। उसी
से परिवार वालों
का लालन-पालन
होता है। परिवार
में पत्नी कुन्ती
देवी और चार
बच्चे हैं। बच्चे
अध्ययन करने जाते
हैं।
राज्य सरकार की ओर
से एक एकड़
जमीन मिली है।
उसी जमीन पर
खेती करते हैं।
19 दिसंबर को सादे
लिवास में तैनात
सीआरपीएफ, गया की
पुलिसकर्मी हाथ पकड़
लिये। पकड़ने के
बाद सीधे रामपुर
थाना के बगल
में स्थित सीआरपीएफ
कैम्प में ले
गये। इसके बाद
आईटीआई कैम्प,गया ले
गये। यहां से
बोधगया थाना लिया
गया। इसके बाद
बाराचट्टी स्थित सीआरपीएफ कैम्प
लिया गया। फिर
बाराचट्टी थाना लिया
गया। वहीं उनके
घर में पुलिसिया
तांडव कराया गया।
तलाशी के दरम्यान
चिड़िया मारने वाले रायफल
को जब्त कर
खुश हो गये।
तीन दिनों तक
गोपनीय ढंग से
इधर-उधर घुमाने
के बाद सीआरपीएफ
हिम्मत नहीं जुटा
पायी कि श्री
मांझी को किसी
फर्जी मुठभेड़ में
मार नहीं गिराये।
वे इस समय
संपूर्ण प्रकरण को लेकर
मानसिक तनाव की
दौर से गुजर
रहे हैं। इस
बीच उसने बिहार
के मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार के समक्ष
गुहार पत्र भेजा
है। गुहार पत्र
में उल्लेख किया
गया है कि
किस प्रकार सीआरपीएफ
ने ग्रामीणों के
बीच में कल्याण
और विकास के
मुद्दे पर कार्यशील
शख्स को किसी
कथित गुप्तचरों के
इशारे में पड़कर
माओवादियों के बिग
बॉस बनाने का
प्रयास किया गया।
तीन दिनों के
बाद छोड़ा गया।
पटना जिले के
नौबतपुर गांव में
रहने वाले और
पालीगंज में कार्यरत
सामाजिक कार्यकर्ता बाबू लाल
चौहान ने कहा
कि उनके कार्यक्षेत्र
में महात्मा गांधी
नरेगा के तहत
कार्य करवाया गया
था। मगर मनरेगा
श्रमिकों को काम
करवाने के बाद
दाम नहीं दिया
गया। कई बार
गांवघर में बैठक
की गयी। उस
बैठक में मनरेगा
श्रमिक शिकायत करते रहे
कि उनको मजदूरी
नहीं दी जा
रही है। यह
निर्णय लिया गया
कि अपने क्षेत्र
के मनरेगा के
कार्यक्रम पदाधिकारी से कार्यालय
में मिलकर षिकायत
दर्ज किया जाए।
इस आशय की
जानकारी सामाजिक कार्यकर्ता बाबू
लाल चौहान ने
मोबाइल से कार्यक्रम
पदाधिकारी को दी।
अपने पूर्व के
मध्ुर रिश्ते के कारण
श्री चौहान ने
कहा कि आप
जरूर ही कार्यालय
में रहे और
मनेगाकर्मियों की शिकायत
दूर कर दें।
मगर बाबू लाल
चौहान मनेगाकर्मियों के
साथ कार्यक्रम पदाधिकारी
से मिलने नहीं
गये। कार्यालय में
जाने पर कार्यक्रम
पदाधिकारी को न
पाकर लोगों ने
कुर्सी को इधर
से उधर कर
दिये। बस कार्यक्रम
पदाधिकारी ने सामाजिक
कार्यकर्ता बाबू लाल
चौहान के ऊपर
मुकदमा ठोंक दिये।
उन पर धमकी
देने तथा कार्यालय
में तोड़फोड़ करवाने
के आरोप में
मुकदमा ठोंका गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता के खिलाफ
पालीगंज थाना में
मुकदमा ठोंक दिया।
इन्हें जमानत लेनी पड़ी।
सामाजिक कार्यकर्ता बाबू लाल
चौहान 18 जनवरी 2013 को दानापुर
व्यवहार न्यायालय के कोर्ट
में व्यक्तिगत रूप
से तारीख पर
मौजूद थे।
इसके पहले पटना
जिले के पालीगंज
में विट्टेश्वर सौरभ
और बाबू लाल
चौहान को नक्सलियों
ने धड़ पकड़कर
के जमकर धुनाई
कर दी। विट्टेश्वर
के हाथ और
पैर तोड़ दिये।
वहीं बाबू लाल
चौहान को भी
काफी पिटायी की
गयी। पश्चिम चम्पारण
जिले के प्रखंड
बगहा 1 में सामाजिक
कार्यकत्री संजू कुमारी
को बगहा थाना
की पुलिस ने
माओवादी होने के
संदेह में पकड़कर
हिरासत में धकेल
दिया। काफी बवाल
करने के बाद
पुलिस ने संजू
कुमारी को हिरासत
से छोड़ दिया
गया। भोजुपर जिले
के सहार प्रखंड
के सहार थाना
की पुलिस ने
प्रदीप कुमार को बुलाकर
कहा कि तुम
लोग बाहर से
आकर अराजकता पैदा
करते हो। न
जान और न
पहचान मैं तेरा
मेहमान बनकर कार्य
करते हो। नवादा
जिले के कार्यकर्ता
शिविर आयोजित न
करने के सवाल
पर शत्रुध्न कुमार
को नवादा पुलिस
ने जमकर हाथ
साफ किये। यहीं
पर एक दर्जन
विदेशियों को नवादा
पुलिस ने अपने
कब्जा में कर
लिया जब विदेष
एक्शन एड के
कार्यक्रम में शिरकत
करने आये थे।
पुलिस के द्वारा
विदेशियों को रोक
लेने के सवाल
पर बिहार से
लेकर दिल्ली तक
तापमान गरमाने के बाद
आखिरकार बिहार निकाला आदेश
को अमल करके
दिल्ली भेज दिया
गया। यहां पर
विदेशियों को माओवादियों
के साथ सांठगांठ
का आरोप लगाया
गया। वहीं जन
संगठन एकता परिषद
को माओेवादियों और
नक्सलियों का अग्रहणी
संगठन करार दिया
गया। प्रगति गा्मीण
विकास समिति के
दरभंगा जिले के
जिला समन्वयक वशिष्ट
कुमार सिंह को
थानाध्यक्ष पकड़कर कार्य क्षेत्र
में टहलकदमी करने
पर संदेह व्यक्त
कर भीतरी स्तर
पर जानकारी प्राप्त
करने के बाद
ही उनको जाने
दिया। अभी हाल
में गया जिले
के मोहनपुर प्रखंड
में कार्यरत कार्यकर्ता
कृष्णा कुमार मांझी को
तीन दिनों तक
पकड़कर नक्सली नेता
करार देने की
कोशिश की गयी।
घर और बाहर
में छानबीन करने
के बाद श्री
मांझी को सीआरपीएफ
पुलिस ने छोड़
दिया। तथाकथित नक्सली
नेता के घर
से चिड़ियां मारने
वाला बंदूक बराबद
हुआ।
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