गरीबी ने हिन्दु होने के बाद भी दफन करने को बाध्य कर दिया
महादलित महिला की मौत यक्ष्मा बीमारी हुई
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा मुसहर समुदाय को महादलित घोषित किया था। आज भी मुसहर परिवार के घोर अर्थाभाव से जूझ रहे हैं। इसका नंगा नाच दिखा।अब भी बढ़ते और चमकते बिहार में महादलित मुसहर समुदाय के लोगों की मौत यक्ष्मा बीमारी से हो रही है। दानापुर अनुमंडल से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर जमसौत ग्राम पंचायत है। इसी पंचायत में जमसौत मुसहरी हैं। जमसौत मुसहरी में रहने वाले जनकधारी मांझी का कहना है कि वह कई साल से यक्ष्मा बीमारी से बेहाल थीं।
जब कभी बीमारी से परेशान हो जाती थी तब जाकर हाल पर दवा खरीदकर खाती थीं। इसके कारण सामान्य दवा से यक्ष्मा बीमारी ठीक नहीं हो पा रही थी। जमकर किसी चिकित्सक से परामर्श लेकर दवा नहीं खायी। यह सब इस लिए हुआ कि हम मजदूरों के पास अर्थाभाव रहता था। हुआ यह कि जमसौत मुसहरी में रहने वाले जनकधारी मांझी की पत्नी जेठही देवी (65 साल) की मौत यक्ष्मा बीमारी से हो गयी। वह कई वशों से यक्ष्मा बीमारी से जूझ रही थीं। जब अस्वस्थ होती थीं तो दवा खरीदकर खाकर ठीक होते ही दवा को नमस्कार कर दवा खाना ही छोड़ देती थीं। यह सब इस लिये होता था कि जनकधारी मांझी के पास पैसा नहीं था कि वह नियमित दवा सेवन कर सके।
खैर, गरीबी जो न कराये। जीते जी जमसौत ग्राम पंचायत की मुखिया ने इंदिरा गांधी सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना से लाभान्वित नहीं करायी। उसी तरह मरने के बाद कबीर अत्येष्ठि योजना के द्वारा भी परिवार को लाभान्वित नहीं कराया गया। इसका नतीजा सामने आया। हिन्दु धर्मावलम्बी होने के बाद भी गरीब जेठही देवी के परिवार वालों ने दफन कर दिये। जिस प्रकार अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई धर्मावलम्बी मरते हैं।
जमसौत मुसहरी के महादलितों ने अंतिम रस्म अदायगी करने के लिए शव को अर्थी में रखकर आगे की ओर बढ़ने लगे। शव यात्रा में शामिल होने वाले सभी राम नाम सत्य हैं का नारा बुलंद करते जा रहे थे। शव यात्रा में शामिल होने वाले शव को दफन करने के लिए गड्ढा खोदने के लिए कुदाल और खंती लेकर चल रहे थे। वहीं मृतक के पति जनकधारी मांझी अपनी पत्नी के कपड़ों को बांधकर मोटरी बना लिया था। दो किलोमीटर चलने के बाद शव यात्रा खत्म हो गयी। सिकन्दरपुर मुसहरी के सामने नहर के चाट में शव दफन करने के लिए गड्ढा खोदा जाने लगा। काफी मशक्कत करने के बाद पांच फुट गड्ढा खोदा जा सका। जो तस्वीर में स्पष्ट दिख रही है। मुसहरी से लायी गयी मोटरी को नहर में फेंक दी गयी।
शव को गड्ढा में उतारने के पहले जनकधारी मांझी ने अपनी पत्नी को मुख्याग्नि दिये। हिन्दु धर्मरीति को निभाने के बाद शव को गड्ढा में रखा गया। इसके बाद शरीर को सुरक्षित रखने के लिए अर्थी की लकड़ी को निकाल कर मृतक के शरीर के पास लगाया गया और उसके बाद पानी से गीली मिट्ठी को अच्छी तरह से रखा गया ताकि सियार और कुत्ता मृतक के शरीर को बाहर न निकाल सके। इसके बाद गड्ढा को मिट्टी से भर दिया जाता है। इस तरह हिन्दु होने के बाद जेठही देवी को दफन कर दिया गया।
यह सवाल जमसौत ग्राम पंचायत की मुखिया बेदामी देवी के सामने उछाला जा सकता है। आखिर जिंदगी में इंदिरा गांधी सामाजिक सुरक्षा पेंशन और मर जाने के बाद कबीर अत्येष्ठि योजना की राशि देने में हाथ क्यों खींच लिये? गांवघर में शव को जलाने के लिए चिरागी जमीन रहती थी। जिसे बाद में लोगों ने अपने खेत में मिला लिया है। अब काफी दूरी तय करके गंगा किनारे शव को जलाने के लिए लाते हैं। आजकल बांसघाट,दीघा,दानापुर आदि जगहों पर शव जलाया जाता है। वहीं अंतिम क्रिया में शामिल होने वाले फगुनी मांझी नामक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि हम लोग गरीबी के कारण ही मृत परिजनों का दफन किया करते हैं। इसके लिए मुसहर समुदाय ने जगह-जगह पर गैर मजरूआ भूमि पर शव गाढ़ने के लिए कब्रिस्तान बना लिये हैं। यहां पर जमसौत मुसहरी,सिकन्दरपुर और खगड़ी(नरगदा) मुसहरी के मृतक परिजनों को दफनाने की जगह रखी गयी है। यहां पर पांच एकड़ जमीन थी। जिसे किसानों ने हड़पों अभियान के हड़प लिये हैं। उन्होंने कहा कि कोथवा मुसहरी, चुल्हाई चक आदि मुसहरी के लोगों के लिए कोथवा मुसहरी से आगे टाड़ी पर कब्रिस्तान है। इस पर बिल्डरों की बुरी नजर लग गयी है। सामाजिक कार्यकर्ता ने याद दिलाया कि जगदेव पथ में भी मुसहरों की कब्रिस्तान पर कब्जा करने के लिए बिल्डर बेताब थे। इसका पुरजोर विरोध मुसहरों के द्वारा करने से बिल्डरों के मनसूबे पर पानी फिर गया था। फिर भी बिल्डरों की गोली से एक मुसहरनी की मौत हो गयी। उन्होंने सरकार से मांग की है कि सरकार मुसहरों की कब्रिस्तानों को चिन्हित करके कब्रिस्तानों की चारदीवारी कराएं,जिस प्रकार अल्पसंख्यक मुस्लिम और ईसाई समुदाय की कब्रिस्तानों की चारदीवारी करा दी जाती है।
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