एक बार फिर आशा कार्यकर्ताओं को
हाथ
लगी
निराशा
स्वास्थ्य विभाग
के
द्वारा
आशा
कार्यकर्ताओं
को
बहाल
किया
जाता
है।
गांव
की
बेटी
नहीं
परन्तु
गांव
की
बहु
आशा
कार्यकर्ता
बन
सकती
हैं।
खासकर
आशा
कार्यकर्ताओं
का
कार्य
हैं
कि
कोई
मां
रूठे
नहीं
और
कोई
बच्चा
छूटे
नहीं
की
तर्ज
पर
बच्चों
को
टीकाकरण
करा
दें।
यह
कार्यकर्ता
बच्चों
को
घर
से
बाहर
निकाल
हेतु
उत्प्रेरक
का
कार्य
करती
हैं।
इसके
एवज
में
गिनती
के
अनुसार
ही
राशि
भुगतान
की
जाती
है।
प्रारंभ
में
नकद
भुगतान
किया
जाता
था।
31 मार्च
2012 तक
नकद
भुगतान
किया
गया।
इसके
बाद
अपै्रल
2012 से
चेक
के
माध्यम
से
भुगतान
करने
की
बात
कहकर
राशि
भुगतान
को
लम्बित
कर
दिया
गया
है।
सूबे में 80 हजार आशा कार्यकर्ता हैं।
इनको
सरकार
के
द्वारा
बहाल
की
जाती
है।
फिलवक्त
इन
कार्यकर्ताओं
को
किसी
तरह
की
वेतनादि
अथवा
मानदेय
भुगतान
नहीं
किया
जाता
है।
किसी
गर्भवर्ती
महिलाओं
को
गांवघर
से
ले
जाकर
संस्थागत
प्रसव
प्राथमिक
स्वास्थ्य
केन्द्र/अनुमंडल
अस्पतल
आदि
में
करवाने
के
एवज
में
3 सौ
रूपये
भुगतान
किया
जाता
है।
इनके
द्वारा
5 से
10 बच्चों
का
टीकाकरण
करवाने
के
एवज
में
50 रूपये
दिया
जाता
है।
11 से
15 होने
पर
1 सौ
रूपये,
16 से
20 होने
पर
150 और
21 से
ऊपर
होने
पर
2 सौ
रूपये
दिये
जाते
हैं।
बंध्याकरण
ऑपरेशन
करवाने
को
इच्छुक
महिलाओं
को
प्राथमिक
स्वास्थ्य
केन्द्र/अनुमंडल
अस्पताल
ले
जाने
पर
150 रूपये
दिया
जाता
है।
पांच
दिवसीय
पोलियो
खुराक
पिलाने
के
एवज
में
प्रत्येक
दिन
75 रूपये
दिये
जाते
हैं।
विटामिन
‘ए’
की
खुराक
पिलाने
में
योगदान
करने
पर
50 रूपये
प्रतिदिन
दिया
जाता
है।
इस तरह की आकाशवृति के
चलते
आशा
कार्यकर्ता
परेशान
हैं।
उनका
स्पष्ट
कहना
है
कि
एक
तरह
से
हम
लोग
सरकार
के
पास
बेगारी
करते
हैं।
कल्याणकारी
राज्य
में
बेगारी
कार्य
करवाना
अपराध
है।
मगर
सरकार
के
द्वारा
खुलेआम
बेगारी
करवाया
जाता
है।
इसके
खिलाफ
सामाजिक
कार्यकर्ता
अथवा
मानवाधिकार
कार्यकर्ता
आवास
बुलंद
नहीं
करते
हैं।
अगर
हम
आशा
कार्यकर्ताओं
की
ओर
से
आवाज
बुलंद
की
जाती
है
तो
राज्य
के
स्वास्थ्य
मंत्री
अश्वनी
कुमार
चौबे
के
द्वारा
खास
तवज्जों
नहीं
दिया
जाता
है।
आज
आशा
कार्यकर्ताओं
ने
स्वास्थ्य
मंत्री
के
समक्ष
मानदेय
देने
की
मांग
को
लेकर
प्रदर्शन
किये।
मानवाधिकार
संगठनों को चाहिए कि सरकार को मजबूर कर दें ताकि सरकार आशा कार्यकर्ताओं को मानदेय देना आरंभ कर दें।
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