Thursday, 24 January 2013

राष्ट्रीय गरिमा अभियान के तहत मैला मुक्ति भारत यात्रा 31 जनवरी को दिल्ली पहुंचेगी



राष्ट्रीय गरिमा अभियान के तहत मैला मुक्ति भारत   यात्रा 31 जनवरी को दिल्ली  पहुंचेगी

18 राज्यों के 200 जिलों में 10000 किलोमीटर की यात्रा की जा रही है


मेरी मां सिर पर मैला ढोती थीं। इसके कारण मेरे स्कूल की लड़कियां मुझसे घृणा करने लगी थीं। आज जब पूनम कुमारी की मां ने संस्था/संगठन के परामर्श करने के बाद मैला ढोना बंद कर दी हैं, तो उसके कारण पूनम कुमारी काफी खुश हो रही हैं।
जी हां, देश भर में मैला मुक्ति का अलख जगाने के लिए 30 नवम्बर 2012 से मध्य प्रदेश जिले के भोपाल से राष्ट्रीय गरिमा अभियान की मैला मुक्ति भारत यात्रा शुरू की गयी। यह यात्रा उत्तर प्रदेश एवं बिहार के विभिन्न इलाको में जाकर प्रचार-प्रसार करने के बाद सैकड़ों लोगो के बीच में पहुंचकर मैला ढोने की अमानवीय प्रथा से मुक्त होने की नसीहत दी।
 वर्षो पुरानी इस गुलामी से मुक्त होने का संदेश प्रसारित किया जा रहा है। स्पष्ट है कि मैला ढोने की प्रथा को दो दशक पहले कानून बनाकर प्रतिबंधित कर दिया गया है, किन्तु आज भी देश के कई हिस्सों में यह प्रथा जारी है। उल्लेखनीय हैं की देश के अन्य राज्यो की अपेक्षा बिहार में बड़ी संख्या में शुष्क शौचालय एंव मैला ढोने की प्रथा में सैकड़ों लोग मौजूद हैं। इसके कारण इनके बच्चे अपमानित के घुट पीने को बाध्य हो रहे हैं।
  मैला ढोने की प्रथा के जारी रहने से इस काम में लगे लोगों के मानव अधिकारों तथा विभिन्न संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हो रहा है। अतः राष्ट्रीय गरिमा अभियान के माध्यम से इस अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए पिछले एक दशक से प्रयास किया जा रहा है। इस प्रथा को समाप्त करने के अभियान के प्रयासों के चलते मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में 11000 से अधिक दलित महिलाओं को इस अमानवीय प्रथा से मुक्ति मिली हैं। किन्तु देश के कई हिस्सों में आज भी यह प्रथा प्रचलित है।
  उल्लेखनीय है कि जनगणना 2011 के आंकड़ो में भी यह बात स्पष्ट हुई है कि बिहार में मैला ढोने की अमानवीय प्रथा जारी है। बिहार में जनगणना 2011 के मुताबिक 13584 शुष्क शौचालय है। जिनकी सफाई मानव द्वारा की जाती है। 35009 शौचालय ऐसे जिनकी सफाई जानवर करते है एवं इतनी ही संख्या में ऐसे शौचालय भी मौजुद है जिनका मल नालियों में बहा दिया जाता है। परंतु राष्ट्रीय गरिमा अभियान का मानना है कि उक्त सभी शौचालयो में मैला ढोने की प्रथा जारी है एवं इनमें हजारो की तादाद में दलित समुदाय के लोगो के द्वारा मैला ढोने का कार्य किया जा रहा है। इस यात्रा के माध्यम से बिहार के विभिन्न जिलो में मैला ढोने की अमानवीय प्रथा की समाप्ति के लिए प्रयास किया जा रहा है।
  इस प्रथा के जारी रहने से भारत सरकार द्वारा बनाए गए ’’शुष्क शौचालय सन्ननिमार्ण (प्रतिशेघ) अधिनियम 1993’’ का तो उल्लंघन हो ही रहा है, साथ ही इस काम में लगे लोगों के मानव अधिकारों का उल्लंघन भी हो रहा है। इस यात्रा के माध्यम से राष्ट्रीय गरिमा अभियान द्वारा इस अमानवीय प्रथा में लगे लोगों को इस गुलामी से मुक्ति के लिए प्रयास किया जा रहा हैं
  30 नवम्बर 2012 से मध्य प्रदेश जिले के भोपाल से राष्ट्रीय गरिमा अभियान की मैला मुक्ति भारत यात्रा शुरू की गयी। यह यात्रा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड,  पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा सहित 18 राज्यों के 200 जिलों में मैला मुक्ति के आह्वान के साथ 10000 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए 31 जनवरी 2013 को देश की राजधानी दिल्ली में समाप्त होगी। इस बात की जानकारी मैला मुक्ति यात्रा के संयोजक आशिफ शेख, लाली बाई एवं राजेन्द्र सिंह ने दी है।


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