तब आठ-आठ आंसू बहाने को बाध्य हो जाएंगे
अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में ही अपना ‘रक्षण’ समझते हैं महादलित मुसहर समुदाय
बिहार से झारखंड का बंटवारा 15 नवम्बर 2000 हुआ था। तब इसने 12 साल पूरा कर लिया है। अब 13 साल में प्रवेश कर गया है। विभाजन के बाद जो अनुसूचित जनजाति बिहार में ठहर गये हैं उनकी स्थिति का जायजा आलोक कुमार ने लिया है। पेश है विशेष रिपोर्ट।
बिहार से झारखंड का बंटवारा 12 साल पहले यानी 15 नवम्बर 2000 को हो गया है। । जो बिहार में ठहर गये हैं उनका विकास लगभग ठप्पहो गया है। अब तो
बिहार में अनुसूचित
जनजाति के मिलने
वाले आठ प्रतिशत
आरक्षण में ही
डकैती करने का
प्रयास किया जा
रहा है।
इस पर डा0 टी.निशांत ने कहा कि मुसहर-भुईयां जाति के लोगों में इतनी सौम्यता, सहनशीलता तथा विवेकी हैं कि लाचारी, बेवसी, गरीबी की चक्की में पीसकर जीवन व्यत्तित करने के बावजूद भी मुसहर समुदाय के लोग भीख नहीं मांगते हैं और न ही चोरी किया करते हैं। अत्महत्या नहीं करते हैं। मुसहर-भुईयां समाज की इतनी सारी खाशियत हैं जो इस समाज का धरोहर के रूप में मौजूद है। vkxs कहा कि मुसहर-भुईयां समाज मूल रूप से आदिवासी हैं और इनको आदिवासी की श्रेणी में रख कर उनका सर्वांगीण विकास किया जाना चाहिए।। इसमें सुर में सुर मिलाया दिया राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग के उपाध्यक्ष ललित भगत और कहा कि मुसहर-भुईयां जाति एवं अन्य अनुसूचित जनजातियों में काफी समानता है। इसलिए इस समाज को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाना चाहिए। इस समय बिहार में अनुसूचित जाति और जनजाति विभाग के मंत्री जीतनराम मांझी हैं। जो खुद महादलित मुसहर समुदाय से आते हैं। अगर मंत्री जी के द्वारा इस संदर्भ में किसी तरह की कार्रवाई की गयी तो आठ-आठ आंसू बहाने को अनुसूचित जनजाति बाध्य हो जाएगें।
बिहार से झारखंड का बंटवारा 12 साल पूरा हो है। इस बंटवारे से इधर और उधर के लोग परेशान और बेहाल हैं। जहां झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता रही। यहां पर कई मुख्यमंत्री आये और चले गये। वहीं बिहार में राजनीतिक स्थिरता के लिए कई तरह के हथकंडा अपनाये गये। लालू-राबड़ी शासनकाल में सामाजिक न्याय तो नीतीश कुमार के शासनकाल में सुशासन का नारा बुलंद किया जा रहा है। बहरहाल,बिहार में अनुसूचित जनजाति की संख्या 7
लाख 58 हजार 351 की है। जो राजीतिकज्ञों के बदसलुकी के शिकार हो गये हैं। बाकी जो बच गया वह महादलित मुसहर समुदाय के नेता हथियाने की फिराक में हैं। गांव के जंगलों में अनुसूचित
जनजाति और गांव के किनारे महादलित मुसहर समुदाय रहने को बाध्य हैं। इन दोनों जातियों का विकास करने की जरूरत है। जब बिहार से गांव के जंगलों में अनुसूचित
जनजाति और गांव के किनारे महादलित मुसहर समुदाय रहते हैं। अनुसूचित जनजाति बहुल्य क्षेत्रों का बंटवारा हो गया है। अब अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में ही अनुसूचित जाति अपना रक्षण समझ रहे हैं। इसी लिए मुसहर समुदाय के नेताओं की ओर से आवाज उठनी शुरू हो गयी है कि मुसहर समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करों।
बिहार में हाशिए पर आदिवासी
जिला जनसंख्या जिला जनसंख्या
पश्चिम चम्पारण 44912 बेगुसराय 1505
पूर्वी चम्पारण 4812 खगड़िया 322
शिवहर 64 भागलपुर 55545
सीतामढ़ी 1786 बांका 75070
मधुबनी 1260 मुगेर 18060
सुपौल 5219 लखीसराय 5635
अररिया 29423 शेखपुरा 211
किशनगंज 47116 नालंदा 970
पुर्णिया 111947 पटना 9236
कटिहार 140418 भेाजपुर 8337
मधेपुरा 9295 बक्सर 8428
सहरसा 4642 कैमूर 35662
दरभंगा 841 रोहतास 25663
मुजफ्फरपुर 3472 जहानाबाद 1313
गोपालगंज 6157 औरंगाबाद 1640
सीवान 13822 गया 2945
सारण 6667 नवादा 2158
वैशाली 3068 जमुई 67357
समस्तीपुर 3362 टोटल
758351
अभी
बिहार के 37 जिलों मे रहे हैं। इनकी कुल जनसंख्या 7 लाख 58 हजार 351 हैं, जिसमें महिलाएं 3 लाख 65 हजार 237 तथा पुरूष
3 लाख 93 हजार 114 है। कुल
37 जिला में रहते हैं। सबसे अधिक आबादी कटिहार 140418 उसके बाद पुर्णिया में 111947 लाख रहते हैं। इस
समय
सबसे बुरी
हालात
में
झारखंड प्रदेश से पलायन होकर अपना
प्रदेश में आशियाना जमाने वाले बिरहोर अनुसूचित जनजाति
की है जो अब विलुफ्त होने के कगार में आ गये हैं। बिरहोर अनुसूचित जनजाति गया जिले के कटौतिया-केवाल में ठौर जमाये हुए हैं। अनुसूचित जनजाति जंगलों में रहने को बाध्य हैं। बिहार में
असुर, बेगा,
बंजारा, बाथुडी,
बेदिया, भूमिज,
बिंझिया, बिरहोर,
बिरजिया, चेरो,
चिक बराइक,
गौड़, गौराइत,
हो, करमाली,
खरिया, खरवार,
खोंड, किसान,कोरा, कोरवा,
लोहार,लोहरा,
महली, माल
पहाड़िया, मुंडा, उरांव,
परहैया, संथाल,
सोरिया पहाड़िया
और सावर
नामक 30 अधिसूचित
अनुसूचित जनजातियां
है।
सर्वविदित है कि केन्द्रीय सरकार ने देशवासियों को खासकर वनभूमि पर रहने वालों को वर्ष 2006 में वनाधिकार कानून का तोहफा दिया गया। देश के कई राज्यों में इस कानून के प्रावधान के तहत वनवासियों के नाम वनभूमि का स्वामीत्व प्रदान किया जा रहा है। मगर बिहार में ‘न’ के ही बराबर कार्य किया गया है। अनुसूचित जनजाति और अन्य परम्परागत
वनवासी, वन अधिकारों की मान्यता नियम 2006 को लागू किया गया है। महत्वपूर्ण बात यह
है कि इस कानून को जमीनी स्तर पर लागू करने
के लिए एकजूटता व सतर्कता की जरूरत है। जिससे की समय सीमा में वनभूमि पर कब्जे के अधिकार
को हासिल किया जा सके। इस महत्वपूर्ण अधिकार में अपनी भूमि और सामुदायिक भूमि पर कब्जे
के मालिकाना हक को प्राप्त करने के लिए एकजूट होकर प्रयास करना होगा। इस कानून के बारे
में व्यापक जन जागरूकता के लिए कई कार्यक्रम संगठन द्वारा किया जा रहा हैं जिससे वनभूमि
पर काबिज आदिवासी और परम्परागत समुदाय को हक हासिल हो सके और सम्मानपूर्ण काबिज जमीन
पर खेती करके आजीविका चला सके। 13 दिसंबर 2005 के पूर्व से काबिज सभी आदिवासियों को
वनभूमि के पट्टे मिलेंगे। बिहार में आदिवासियों को वनभूमि का पट्टा नहीं मिल रहा है।
वनभूमि पर रहने वालों पर वन विकास विभाग के द्वारा निरीह लोगों पर मुकदमा ठोंक दिया
जाता है। इस बाबत प्रशासन मूकदर्शक है। वहीं वनभूमि का चरित्र परिवर्तन करके वन विकास
विभाग की जमीन करार कर दी जाती है । लोग पसोपेष में पड़े हुए हैं। वहीं पश्चिम चम्पारण जिले के बगहा प्रखंड के टाइगर प्रोजेक्ट एरिया में रहने वालों को जमीन देने के बदले जेल में भेज दी जाती है। रेंजर के द्वारा टाइगर प्रोजेक्ट एरिया में खेती करने एवं पेड़-पौधों के नुकसान करने के आरोप लगाकर जेल के शिंकजे में भेज दी जाती है।
यहां पर रहने वालों को जाति प्रमाण-पत्र में काफी दिक्कत होती है। यहां जाता है कि बिहार में अनुसूचित जाति का उद्गम स्थल नहीं है। इसी लिए प्रमाण-पत्र बनाने की बात नहीं उत्पन्न होती है। अतः अनुसूचित जनजातियों को झारखंड की ओर रूख करना ही पड़ता है। उसी तरह माडा के तहत रोजगार करने के लिए साधन उपलब्ध करवाया जाता है। वह भी मंथरगति से उपलब्ध करायी जाती है।
अभी वाटर एड इंडिया के द्वारा प्रगति ग्रामीण विकास
समिति को सहायता दी जा रही है ताकि बिरहोर की घटती संख्या और उनके रहने वाले स्थानों
में मूलभूत सुविधा उपलब्ध करा सके। इधर वाटर एड इंडिया के प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर विजेन्द्र
कुमार के द्वारा जिलाधिकारी गया को आवश्यक कार्रवाई के लिए आवेदन पेश किया गया है।
इस संदर्भ में जिलाधिकारी कार्यालय से संतोषजनक कार्य करने का आश्वासन दिया गया है।
इसी तरह सीमित संसाधनों के बल पर निर्धनतम क्षेत्र सिविल सोसायटी के द्वारा पश्चिमी
चम्पारण, गया, अररिया, बांका, नालंदा,जहानाबाद,दरभंगा,कटिहार,भोजपुर आदि जिलों में
किया जा रहा है।
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