बिहार
राज्य आवास बोर्ड के मनमर्जी के खिलाफ सड़क पर
पटना
उच्च न्यायालय के आदेश का किया उल्लघंन
जो
मकान बन चुका है उसे नहीं तोड़ना है
पटना
सदर प्रखंडान्तर्गत बड़ी दीघा,छोटी दीघा,मखदुमपुर,बांसकोठी,रामजीचक आदि मोहल्लों में
रहने वालों के पास खेती योग्य जमीन थीं। इस जमीन को सरकार अधिग्रहण करना चाहती थी।
इसके लिए बिहार सरकार ने बिहार राज्य आवास बोर्ड का गठन किया। इसके माध्यम से सरकार
ने करीब 10ए25 एकड़ जमीन अधिग्रहण कर ली। इस अधिग्रहित जमीन पर दीघा क्षेत्र के लोग
खेती किया करते थे। यहां पर आलू,प्याज,मकई,धान,गेहूं आदि ऊपजाया जाता था। इसमें आज
के महादलित मुसहर समुदाय मजदूर की तरह मजदूरी किया करते थे। बोर्ड के द्वारा अधिग्रहण
कर लेने से इसके मजदूर बेकार हो गये। परिणामतः आज के महादलित मुसहर समुदाय वैकल्पिक
रोजगार के रूप में सब के सब महंुआ और मिठ्ठा का शराब बनाकर बेचते और पीते हैं। इसके
कारण महादलितों की अकाल मौत होती रहती है।
इस बीच बिहार राज्य आवास बोर्ड ने देहांतों में
जमीन रखने वाले नौकरशाहों को शहर में आशियाना हो के तहत कार्य प्रारंभ कर दिया। अखबारों
के माध्यम से विज्ञापन निकालकर नौकरशाहों और शहरी बाबूओं को ऑफर दिया कि आवेदन जमा
करें और बाद में जमीन की कीमत अदा कर दें। काफी संख्या में आवेदन प्राप्त हुआ। जमीन
की कीमत के अनुसार जमीन की मांग बढ़ गयी। इधर दीघा के किसानों ने जाती जमीन को बिक्री
करना शुरू कर दिये। इसके आलोक में सरकार ने पटना में जमीन रजिस्ट्री करने पर पाबंदी
लगा दी। तब किसानों ने कोलकता में जाकर जमीन की रजिस्ट्री कराने लगे। जब वहां पर बंद
कर दिया गया तो 100 साल के पंचनामा करवाने लगे। पंचनामा करवाने वाले लोगों के द्वारा
धड़ल्ले मकान निर्माण करवाना शुरू कर दिया गया। देखते ही देखते मकानों का जाल बिछ गया।
सरकार के द्वारा लोगों को बुनियादी जरूरतों को उपलब्ध करवाने लगी। आज सरकार के लिए
सिर दर्द बन गया है। इधर बिहार राज्य आवास बोर्ड के द्वारा दीघा की जमीन पर दादागिरी
जारी है। इसने नौकरशाहों को अधिग्रहित जमीन नहीं दे सकी। फिर इसने जिसकी जमीन अधिग्रहित
की है। उसको जमीन की कीमत और मुआवजा नहीं दिया गया है। बहरहाल बिहार राज्य आवास बोर्ड
की अकर्मण्यता के शिकार होकर परेशान हैं।
बिहार राज्य आवास बोर्ड के कारनामे से दीघा क्षेत्र में बवाल मचा हुआ है। यह सिलसिला 38 साल से जारी है। माननीय उच्च न्यायालय,पटना और सर्वोच्च न्यायालय,दिल्ली तक सफर कर जाने के बाद भी मसला सलटा नहीं। अब तो यह थमने का नाम भी नहीं ले रहा है। हां,राजनीतिज्ञ के दरबार में माथे टेके परन्तु सलटाने के बदले उलझाकर ही रख दिया गया। वहीं गणप्रतिनिधियों ने जोर लगाकर बिहार विधान सभा में विधान भी बनाये पर काम बना नहीं आया।
उन दिनों पटना विश्वविघालय छात्र संघ के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और सचिव सुशील कुमार मोदी हुआ करते थे। उसी समय 18 मार्च 1974 में छात्र संघर्ष यौवन में आकर राजधानी में बवाल काटा। उसके बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने छात्रों का नेतृत्व करने लगे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के द्वारा 5 जून 1974 को गांधी मैदान में संपूर्ण क्रांति का उद्घोषणा की थी। इसको सफल बनाने के लिए छात्र नेता लालू प्रसाद यादव दीघा थाना क्षेत्र के मखदुमपुर मोहल्ला में आये थे। यहां के किसानों ने अपनी समस्याओं को छात्र नेता को अवगत कराया। लालू प्रसाद यादव ने अपने स्टाइल में कहा कि जेल भरो अभियान में किसानों के बच्चों को जाना है। इसे सफल बनाना है। पटना विश्वविघालय छात्र संघ के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के कहने पर राजेश कुमार पासवान,ओमप्रकाश वर्मा,नंदलाल,
जौर्ज केरोबिन, नन्दकिशोर,
विजय कुमार,अमर,सूर्यप्रकाश आदि बक्सर कारा और भागलपुर कारा गये। मगर सरकार के द्वारा
पेंशन नहीं दी जा रही है। इसके बाद बिहार राज्य आवास बोर्ड के द्वारा दीघा के 10.25 एकड़ जमीन को अधिग्रहण के संदर्भ में बोले कि कांग्रेस सरकार को हटाकर जनता दल को शासन में लाना है। तब जाकर आपकी समस्याओं का समाधान कर दिया गया जाएगा। 38 साल गुजर रहा है। अब तो यह समस्या नासूर बनकर सामने आ गयी है। एक व्यक्ति की शहादत होने के बाद भी दीघा की भूमि अधिग्रहण से मुक्त नहीं हो सकी।
यह जरूर है कि बिहार राज्य आवाज बोर्ड के द्वारा दीघा की जमीन का अधिग्रहण की गयी है। इस अधिग्रहरण को माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी वैध करार दिया है। अपने आदेष में न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि जिनकी जमीन को अधिग्रहण की गयी है उनको जमीन की कीमत जल्द से जल्द भुगतान कर दी जाए। परन्तु बिहार राज्य आवास बोर्ड ने जमीन की कीमत काफी कम आंका है। और तो और किसानों की जमीन की कीमत देने में अक्षम साबित हुआ है। अब यह सवाल उठता है कि किसानों की जमीन को अधिग्रहण करने किसानों को कम कीमत देकर और ऊंची कीमत लेकर जमीन बिक्री करना जायज है। वहीं बिहार विधान सभा और राजनीतिज्ञों ने व्यवस्था दी है कि जिन लोगों का मकान बन गया है उन लोगों का मकान नहीं तोड़ा जाएगा। यहां भी सवाल उठता है कि एक के आशियाना ध्वस्त करके दूसरे को आशियाना देना कितना न्यायसंगत है। दीघा की जमीन में काफी पेंज है जिसे बिहार राज्य आवास बोर्ड ने दूर नहीं कर सका है।
रेणु कुमारी का कहना है कि हम लोगों ने किसानों से जमीन खरीदी है। तिनका जोड़-जोड़कर आशियाना बनाया गया है। सरकार ने यहां पर न्यूनतम आवश्यकता के अनुसार पानी,बिजली,सड़क,शोचालय आदि की व्यवस्था की है। एपीएल और बीपीएल कार्ड मुहैया कराया गया है। इस जमीन और घर पर मेरा अधिकार है किस हस्ति से बिहार राज्य आवास बोर्ड के द्वारा बुलडोजर चलाकर निर्मित घर को तोड़ा जा रहा है। यह तो खुल्लमखुल्ला मानवाधिकार का हनन हो रहा है। दीपक कुमार दुबे ने कहा कि पांच कट्टा जमीन की चारदीवारी की गयी है। पेयजल की व्यवस्था की गयी है। पाइप दौड़ाया गया है। इसे तोड़ दिया गया है। इसी तरह डीएन पाण्डेय,विष्णुकांत झा आदि का मकान ध्वस्त कर दिया गया है। कोई एक दर्जन लोगों के घरों को नुकसान पहुंचाया गया है।
इसके विरूद्ध में दीघा आवासीय कॉलोनी के लोग सड़क पर उतर गये। जिनके मकानों को क्षतिग्रस्त पहुंचाया गया और उनके समर्थन में उतर कर दीघा-आशियाना रोड को राजीव नगर पुल के पास जाम कर दिया। देखते ही देखते जनांदोलन में तब्दील हो गया। दोपहर बाद से ही लोग टायर-ट्यूब जलाकर विरोध करने लगे। इस विरोध को देखते हुए आवागमन ठप हो गया। टेम्पो चालन बंद हो गया। लोगों को काफी मुश्किल होने लगी। दीघा मोड़ से टेम्पों आकर राजीव नगर थाना के पास और आशियाना मोड़ से आकर राजीव नगर पुल के पास रोक दी जाती है। आवाजाही करने वालों को अधिक राशि देकर सफर तय करना पड़ रहा है।
सैकड़ों की संख्या में पुरूष और महिलाएं सड़क के किनारे धरना पर बैठ गये हैं। धरनार्थियों का कहना है कि मकानों को तोड़ने वालों ने महिलाओं और बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किये। अश्लील बातों को वर्शा की तरह बरसाये। रीता देवी ने कहा कि ऐसा लग रहा कि सब के सब अमानुष बन गये थे।
धरना पर बैठे लोगों की मांग है कि राजीव नगर थाना में ही बिहार राज्य आवास बोर्ड का शिविर लगाया गया है। इसे तुरंत हटा ले जाएं। जिन अधिकारियों के इशारे पर तथा जिनके द्वारा घृणित कार्य किया गया है उन लोगों पर तत्काल एफआईआर दर्ज करके गिरफ्तार किया जाएं और नौकरी से निलम्बित कर दी जाएं। जिनका घर तोड़ा और नुकसान पहुंचाया गया है सभी लोगों को पर्याप्त मुआवजा दिया जाएं।
वहीं अन्य लोगों का कहना है कि पाटलिपुत्र स्टेशन बन रहा है। उसी स्टेशन को लोगों को पहुंचाने के लिए 90 फुट की सड़क बननी है। इस 90 फुट की सड़क के बीच में आने वाले मकानों को ही तोड़ा जा रहा था। तब यहां भी सवाल है कि जब सड़क निर्माण के लिए जमीन ली जा रही थी तो सड़क के बीच में आने वाले लोगों के मकान मालिकों को किसी तरह का मुआवजा भुगतान नहीं किया गया। इससे यह साफ जाहिर होता है कि बिहार राज्य आवास बोर्ड ने सदैव दादागिरी करने पर ही उतारू है। लाठी के बल पर ही जमीन को कब्जा करने पर उतारू है।
आलोक कुमार
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