सितंबर माह में खेत में काम नहीं होता है,
इस समय भोजन के लाले पर जाता है, लोगों को भूखे भी सो जाना पड़ता
गेम
शो केबीसी में 25 लाख रूपये जीतने वाले मनोज कुमार का घर जमसौत मुसहरी में है। गेम शो में भाग लेने के बाद जमसौत मुसहरी का नाम रोशन हो गया है। इसके पहले इस मुसहरी में संत जेवियर उच्च विघालय के फादर फिलिप मंथरा के द्वारा महादलितों के साथ मिलकर कल्याण और विकास कार्य शुरू करने से मुसहरी की पहचान सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं के बीच में पहचान बना पाने में कामयाब हो सकी। इसके आलोक में आई0ए0एस0अधिकारी विजय राघवन के द्वारा मुसहरी में दूग्ध उत्पादन समिति गठित की गयी। मुसहरी की चारों ओर सोलर लाइट लगाये गये। इसके बाद नोट्रेडम एकेडमी की सिस्टर सुधा वर्गीस खुद मुसहरी में रहने लगी। साइकिल चलाकर मुसहरों की समस्याओं को दानापुर में आकर पदाधिकारियों के समक्ष रखती थीं। उन समस्याओं के निदान के लिए जनवकालत करती थीं। यहीं पर रहकर नारी गुंजन संस्था की स्थापना कर ली। आज इनके सहयोग नहीं मिलने से मुसहरी में कल्याण और विकास का कार्य ठप हो गया है।
दानापुर अनुमंडल से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर जमसौत ग्राम पंचायत है। इसी पंचायत में जमसौत मुसहरी हैं। यहां पर रहने वाली सिस्टर के प्रयास की बदौलत 2 फरवरी 2006 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राश्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का श्रीगणेश किये थे। इसी अवसर पर बिहार ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना भी शुरू की गयी। महादलितों के बीच में षानदार कार्य करने के पुरस्कार स्वरूप सिस्टर सुधा वर्गीस को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया। अभी बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के उपाध्यक्ष हैं। किसी के दबाव के कारण मुसहरी छोड़कर सिस्टर सुधा वर्गीस दानापुर में स्थित लालकोठी में रहने लगी हैं। वहां पर लड़कियों के लिए स्कूल चलाती हैं। यहां के महादलित मुसहर साइकिल वाली सिस्टर सुधा की खोज करते हैं। उनका मार्गदर्शन चाहते हैं। अब तो सप्ताह के एक दिन आने वाली हो गयी है।
इस गांव में रहने वाले फगुनी मांझी ने कहा कि जबतक सिस्टर सुधा वर्गीस मुसहरी में रहती थीं तो उनकी बायीं हाथ लालमती देवी और दाहिनी हाथ फगुनी मांझी थे। उनका कहना है कि यहां करीब 125 घर है। इस मुसहरी में करीब 376 लोग रहते हैं। प्रारंभ में 80 मकान निर्माण किया गया। वह सब जर्जर हो गया। इसके बाद जर्जर मकान के बदले में नया मकान निर्माण करने के लिए 2005-2006 से अबतक 100 मकान निर्माण हुआ है। इसमें 85 बनकर तैयार हो गया है और 15 अधूरा ही रह गया है। 25 लोगों के पास मकान ही नहीं है। जिनकी शादी हो गयी है और मां-बाप से अलग हो गये हैं। वे किसी तरह रात्रि पहर एक ही घर में समा जाते हैं। मइया,बाबू,बेटा-बहू और उनके बच्चे रहते हैं। प्रायः सभी लोगों के पास बीपीएल कार्ड है। मनरेगा का भी कार्ड है। परंन्तु रोजगार मिलता ही नहीं है। चूंकि जमसौत पंचायत में तीन मुसहरी है। सभी को खुश करो नीति के कारण रोजगार नहीं मिल पाता है। 90 साल की मुसहरी में सिर्फ 9 लोग ही मैट्रिक उर्त्तीण हैं। इसमें 3 लड़की भी हैं। सिर्फ लालमती देवी को ही सरकारी नौकरी है। यहां के मुसहर असमय यक्ष्मा रोग के कारण मौत के गाल में समा जाते हैं। अबतक 17 लोगों की मौत यक्ष्मा रोग से हो गयी है। शारीरिक श्रम करने वाले जरूर थोड़ा-बहुत शराब पी ही जाते हैं । जमसौत मुसहरी में पूर्ण शराब बंदी है ।
फगुनी मांझी ने कहा कि हम मुसहरों के लिए सितंबर माह बहुत ही खराब होता है। सितंबर माह में खेत में काम नहीं होता है। इस समय भोजन के लाले पर जाता है।लोगों को भूखे भी सो जाना पड़ता है। मछली,केकड़ा,घोंघा,सितुआ आदि की तलाश में निकलने लगते हैं। नौजवान पलायन कर जाते हैं। कोई 20 से 25 लोग पलायन कर जाते हैं। वर्ष 2012 में पलायन करके चेनई गये थे। अक्तूबर-नवम्बर में काम मिलने लगता है। इस दौरान नवम्बर में खेत में चूहा भी मिलने लगता है।
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