नाजरेथ हॉस्पीटल को बंद कर दिया गया

हां,बिहार सरकार के
द्वारा
मान्यता
प्राप्त
गैर
सरकारी
संस्था
नाजरेथ
हॉस्पीटल
है। इस हॉस्पीटल को एससीएन सिस्टरों के द्वारा संचालित किया जाता है। एससीएन संस्था को अमेरिका में स्थापना की गयी थी। 13 साल पहले एससीएन सिस्टरों और ऑस्टीया में
मदर अन्ना
मरिया डेंगल
के द्वारा
एमएमएसएस सिस्टरों
के साथ समझौता की गयी। दोनों सिस्टरों के समाज आपस में कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल का प्रबंधन करेंगे। इसी समझौता के तहत कुर्जी होली फैमिली हॉस्पीटल संचालित है।

पवित्र
धर्मग्रंथ
बाइबिल
में
लिखे
दृष्तांत
पर
खुद
और
अन्य
को
चलवाने
वाले
ही इस समय राह
भटक
गये
हैं।
नाजरेज
हॉस्पीटल
की
प्रशासिका
के
द्वारा
रहम
की
आश
में
बर्खास्त
कर्मचारी
हॉस्पीटल
के
मुख्य
मार्ग
के
सामने
धरना
पर
बैठे
हैं।
सिर
पटकपटक
कर्मचारी
सिस्टर
प्रशासिका
से
आग्रह
कर
रहे
हैं
कि
हॉस्पीटल
को
खोले
और
बर्खास्त
कर्मचारियों
को
काम
पर
रखें।
उसके
बाद
बकाये
राशि
को
तुरंत
भुगतान
कर
दें।
परन्तु
चर्च
की
मोटी
दीवारों
के
अंदर
रहने
वालों
पर
किसी
तरह
का
प्रभाव
नहीं
पड़
रहा
है।
एक
बार
कह
दिया
वह
रामबाण
साबित
करने
पर
तुल
गये
हैं।
बर्बादी की
कहानी 30 जून
2012 को लिखी गयी।
1 जुलाई को
48 कर्मचारियों की सूची
बनायी गयी।
2 जुलाई को
नाजरेथ हॉस्पीटल
बंद करने
की घोषणा
की गयी।
3 जुलाई को
मिषन नाजरेथ
मजदूर यूनियन
के कोषाध्यक्ष
ने बर्बादी
की कहानी
वाला पत्र
प्राप्त किया।
देखते-देखते
हॉस्पीटल के
बंद होने
के 7 माह
गुजर गये।
सीधे अंधेर
नगरी में
पहंुचाने वाली
हॉस्पीटल की
प्रशासिका सिस्टर
उषा के
साथ बातचीत
नहीं शुरू
की गयी
है। अब
मामला उप
श्रमायुक्त कार्यालय
से हस्तान्तरण
होकर श्रमायुक्त
कार्यालय में
पहुंच गया
है। अब
श्रमायुक्त के
पाले में
गेंद है।
मिशन नाजरेथ
मजदूर यूनियन
के कोषाध्यक्ष
मारकुस हेम्ब्रम
को जो
पत्र प्राप्त
हुआ है
कि उसमें
हॉस्पीटल के
उत्थान और
पतन की
कहानी लिखी
गयी है।
1948 में 25 बेड वाले नाजरेथ
हॉस्पीटल को
खोला गया।
90 किलोमीटर के दायरे
में किसी
तरह स्वास्थ्य
सुविधा नहीं
रहने के
कारण 1965में
बेड की
संख्या 150 कर
दी गयी।
यक्ष्मा और
कुष्ठ रोगियों
की देखभाल
और सेवा
करने,मातृ-शिशुओं के
लिए क्लिनिक,अनाथ बच्चों
की देखभाल
और सेवा
और टीकाकरण
की व्यवस्था
करनी थी।
1984 में जाकर 250 बेड
की संख्या
कर दी
गयी।
पत्र में
उल्लेख किया
गया है
कि 1948 से
1985 तक गौरवमय वर्ष
रहा है।
इसके बाद
जिक्र किया
गया है
कि 1980 से
गिरावट आनी
शुरू हो
गयी। 1985 में
कई क्लिनिक
खोले गये
और कई
उपकरण लाये
गये। 1998-2007 में
हॉस्पीटल में
थ्री ‘एम’
को यूज
किया गया।
मनी,मेटेरियल
और मेैन
पॉवर को
बढ़ाया गया।
दो चिकित्सकों
डा0श्रीमती
शेट्टी और
डा0 डिक्रूस
के अवकाश
ग्रहण करने
के बहाना
बनाकर 50 बेड
को कम
करने और
नर्सिग स्कूल
बंद करने
की अनुशंसा
की गयी।
इसके बाद
यह बताया
गया कि
हॉस्पीटल डेविट
में चली
गयी। यूनियन
की मांग
जोर पकड़ने
लगी। इतने
गिनाने के
बाद सरकारी
सुविधाओं का
जिक्र किया
गया। अब
लोग सरकारी
सुविधाओं को
लेते हैं।
मोकामावासियों ने
दिल खोलकर
भूदान किये।
इसके बाद
गैर सरकारी
संस्था नाजरेथ
हॉस्पीटल का
परिधि 300 एकड़
का हो
गया। मोदनगाछी,
मोकामा में
नाजरेथ हॉस्पीटल
का उद्घाटन
1948 में किया गया।
64 साल के बाद
हॉस्पीटल को
2 जुलाई 2012 को
बंद कर
दिया गया। हॉस्पीटल
की प्रशासिका
सिस्टर उषा
ने 48 कर्मचारियों
को नौकरी
से निकालकर
अंधेरे में
ढकेल दीं।
इस गैर
कानूनी कार्रवाई
करने से
एक ही
झटके में
कर्मचारी सड़क
पर आ
गये। ओपीडी
में ही
ऐटक से
संबंधित मिशन
नाजरेथ मजदूर
यूनियन के
बैनर तले
बर्खास्त 48 कर्मचारी
धरना देना
शुरू कर
दिये। जो
आज भी
जारी हैं।
ईसाई धर्म
स्वीकारने वाले
और यहां
के गाड़ी
चालक दानिएल
रोजारियों ने
चालाकी से
मिशन में
रहकर मिशन
नाजरेथ मजदूर
यूनियन गठित
कर पाने
में सफल
हुए थे।
इसके कुछ
दिनों के
बाद मिशनरी
प्रशासकों ने
चालक को
दूध में
पड़े मक्खी
की तरह
नौकरी से
बाहर कर
दिये। किये
थे।

महिला कर्मी
मोनिका हेम्ब्रम
ने 38 साल,
टेरेसा केरोबिन
ने 32 साल,
सावित्री कुमारी
29 साल,तपोथी मंराडी
ने 28 साल,मार्था टुडू
ने 28 साल,राम विलास
पासवान ने
28 साल, मारकुस मंराडी
ने 28 साल,
राजू राउत
ने 28 साल,रोहन दास
28 साल तक कार्य
किये।

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