‘जान
देंगे जमीन
नहीं ’के
नारे के
साथ पायलट
प्रोजेक्ट नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज
से होने
वाले 245 गांव
के विस्थापन
के खिलाफ
चला आंदोलन
22-23 मार्च 2014 को सत्याग्रह
दिवस मनाते
हुए अपने
आंदोलन का
21वाँ वर्ष
पूरा करेगा। जतरा टाना भगत
के दिखाए
रास्ते पर
अमल करते
हुए झारखंड
में झारखंडी
प्रतिरोध की
संस्कृति में आगे बढ़ते जन
सत्याग्रह के माध्यम से झारखंड
ही नहीं
, देष एवं
वैष्विक स्तर
पर विस्थापन
विरोधी आंदोलनों
को नई
दिषा देने
का काम
इस आंदोलन
ने किया
है।आज की
तारीख में
यह आंदोलन सफल आंदोलनों की
श्रेणी में
षामिल है।परन्तु
आंदोलनकारी आज भी संघर्षरत हैं
और अपनी
लड़ाई के
लिए कमर
कस कर
किसी भी
कीमत पर
पायलट प्रोजेक्ट
को नहीं
बनने देना
चाहते हैं
और नही
उस क्षेत्र
में होने
वाले चांदमारी एवं गोलाबारी अभ्यास
को भी
नहीं होने
देना चाहते।स्पष्ट
तौर पर
कहा जा
सकता है
कि संभावित
विस्थापित क्षेत्र
के लोग
अब किसी
भी कीमत
पर सेना
की चहलकदमी
स्वीकार करने
को तैयार
नहीं। इसके
पीछे इनका
तर्क साफ
है कि
1956 से 1993 तक 37वर्षों में
सेना द्वारा
गोलाबारी अभ्यास
के दौरान
सेना के
जवानों द्वारा
अमानवीय,षर्मनाक
एवं दर्दनाक
व्यवहार जिसका
सर्वेक्षण केंद्रीय
जन संघर्ष
समिति जिसने
पूरे आदोलन
का नेतृत्व
किया, करा
लिया था
जो चौंकाने
वाले हैं।-
जनसंघर्ष
समिति का
दावा है
कि लोक
लाज के
कारण महिलाओं
से बलात्कार
के कई
केस जो
और भी
चौंकाने वाले
हो सकते
थे सामने
नहीं आ
पाये। इस
दौरान सेना
के जवानों
ने गरीब
आदिवासियों के घरों से मुर्गी
तक चुरा
कर खा
लिये जिसका
उल्लेख यहाँ
नहीं है।
आपको
ज्ञात होगा
कि 1956 से
ही भारतीय
सेना द्वारा
नेतरहाट के
पठार में
गोलाबारी का
अभ्यास चला
आ रहा
है। इस
गोला बारी
अभ्यास में
नेतरहाट पठार
के नेतरहाट,
चोरमुण्डा डुम्बरपाठ,अराहंस नैना नोवाटोली
हरमुण्डा टोली,
हुसमू और
पकरीपाठ के
क्षेत्रों में तोप एवं गोला
बारी अभ्यास
करती आ
रही है।1981-82
में सेना
ने भूमि
अधिग्रहण अधिनियम
के तहत
उपर्युक्त क्षेत्रों को हथियाने की
कोषिष की
थी।
स्थानीय जनता ,राजनीतिक नेताओं एवं
प्रषासकों के विरोध के कारण
भूमि अधिग्रहण
को तत्काल
स्थगित कर
दिया गया।
1992 में महुआडांड़ प्रखंड के
29 गाँवों को हड़पने के लिए
तत्कालीन बिहार
सरकार के
गृह विभाग
द्वारा अधिसूचना
पत्र 14-09-1992 को प्रकाषित किया जिसका
क्रम संख्या
1466 है। इस
पत्र में
पलामू
जिले के रेवेन्यू विभाग से
यह अनुरोध
किया गया
था कि
वो निम्नलिखित
बिन्दुओं पर
रिपोर्ट भेजे-
(1) सरकारी भूमि का विस्तृत विवरण
,(2)निजी भूमि
का ब्यौरा
(3)उन क्षेत्रों
की जनसंख्या
की जानकारी
।
इस दौरान
1992 के सितम्बर
महीने के
आस पास
सेना ने
नेतरहाट में
प्रवेष किया
और महुआडांड़,
साले और
बांसकरचा में
भी कदम
रखा इसने
सम्पूर्ण छेछारी
(महुआडांड़ प्रखंड व गारू प्रखंड
का दक्षिण
इलाका) का
हवाई तथा
जमीनी सर्वे
किया ।
इसके बाद
भी वहाँ
के सीधे
साधे जनता
को किसी
तरह से सेना के इस
वीभत्स खेल
का थोड़ा
भी संदेह
नहीं हुआ।
इस सर्वे
के बाद
सेना इस
भूमि अधिग्रहण
के मामले
पर गृह
मंत्रालय और
बिहार सरकार
के साथ
काम करना
प्रारंभ कर
दिया। इस
दौरान सेना
,गृह मंत्रालय
एवं पलामू
के प्रषासनिक
अधिकारियों के बीच पत्राचार
होने लगा। पत्राचार का यह
कार्य इतने
गोपनीय तरीके
से होने
लगा कि
इसकी भनक
तक प्रभावित
जनता को
नहीं थी।
इस समय
तत्कालीन कर्नल
एस.एन.ओझा के
दिनांक 5-7-1993 द्वारा लातेहार एस.डी.
ओ. को
आदेष दिया
जिसकी एक-एक प्रति
महुआडांड़ के
प्रखंड विकास
पदाधिकारी एवं अंचल पदाधिकारी को
महुआडांड़ की
सूची में
दिए गए
आंकड़े
को सत्य प्रमाणित कर दो
दिनों के
अंदर लातेहार
के डी.सी.एल
आर के
पास अपनी
रिपोर्ट भेजने
का निर्देष
दिया।
सयांेगवष
इसी सूची
को गलती
से महुआडांड़
के अंचल
पदाधिकारी ने अंचल कार्यालय के
नोटिस बोर्ड
में
लगा दिया । जिसे यहाँ
की जनता
ने देख
लिया ।
फिर विस्थापन
के खतरे
की दस्तक
आग की
तरह पूरे
क्षेत्र में
फैल गई।
फिर अफवाह
फैला कि
26 जुलाई 1992 को प्रखंड कार्यालय में
सेना के
अधिकारियों ,प्रषासनिक पदाधिकारियों एवं आम
जनता के
बीच बैठक
होगी वहीं
इस बात
को तय
किया जायगा
कि यहाँ
सैनिक छावनी
बनेगी या
नहीं। 26 तारीख
को इस
क्षेत्र के
छात्र जो
राँची में
विभिन्न महाविद्यालयों
में अध्ययनरत व पलामू छात्र
संघ के
नाम पर
संगठितथे ।
विस्थापन की
भयावह स्थित
को भांपते
हुए
महुआडांड़ पहुँच गए। यहाँ की
स्थिति और
ही भयावह
थी। जिधर
नजर घुमाईए
जन सैलाब चीटियों
की तरह
रेंगते हुए
विभिन्न दिषाओं
से प्रखंड
मुख्यालय की
ओर आगे
बढ़ रहा
था। सबकी
आँखों मंे
विस्थापन का
डर एवं
सरकार के
प्रति आक्रोष साफ दिखाई दे
रहा था।
यदि मैं
सच कहूँ तो षायद ये
अतिष्योक्ति नहीं होगी कि इस
दिन
सही मायने में सेना के
आधिकारी एवं
प्रषासनिक अधिकारियों की खैर नहीं
थी। अप्रिय
घटना की
आष्ंाका से
भी इंकार
नहीं किया
जा सकता
था।
पलामू
छात्र संघ
का दल
उक्त बैठक
की जानकारी
लेने सीधे
अंचल कार्यालय
जा धमका
। काफी
जद्दोजहद एवं
छात्र षक्ति
के आगे
घुटने टेकते
हुए आखिरकार
अंचल पदाधिकारी
ने उक्त
पत्र छात्रों
को दे
दी। सबूत
अब जनता
के हाथ
में थी।
सेना के
अधिकारियों ,प्रषासनीक पदाधिकारियों एवं आम
जनता के
बीच बैठक
की बात
सच हो
या न
हो
इस बैठक के नाम पर
आए जन
सैलाब के
साथ बैठक
करते हुए
महुआडांड़ के
रामपुर बगीचे
से पलामू
छात्र संघ
ने विस्थापन
के खिलाफ
संघर्ष का
ऐलान किया।
बड़े बुर्जगों
का कहना
है कि
इसी दिन
से नेतरहाट
फील्ड फायरिंग
रेज के
खिलाफ आंदोलन
की षुरूआत
हुई। तब
से विस्थापन
के खिलाफ
चला आंदोलन
अब भी
जारी है।
इसी
बीच बिहार
सरकार द्वारा
तोपाभ्यास अधिसूचित क्षेत्र के निर्धारण
के लिए
जारी गजट
अधिसूचना पत्र
एस.ओ.
761 और 762 दिनांक 25.11.1991एवं एस.ओ.
84 दिनांक 28.03.1992 आम जनता
के हाथ
लगी। इन
अधिसूचना में
तोपाभ्यास के लिए जिन गाँवों
को अधिसूचित
किया गया
वह इस
प्रकार है।
-ः
दिनांक
10.12.1993 को 23 वीं आर्टिलरी
ब्रिगेड के
ब्रिगेडियर श्री आई जे कुमार
के संवाददाता
सम्मेलन के
हवाले से
समाचार पत्रों
में जिनमें
-हिन्दुस्तानटाइम्स,इण्डियन एक्सप्रेस,
आज, प्रभातखबर,
राँची एक्सप्रेस
आदि ने
रिपोर्ट प्रकाषित
किया ।
जिसके अनुसार
भारत सरकार
ने 1986 में
देष के
30 फायरिंग रेंजों को परिवर्तित कर
पायलट प्रोजेक्ट
के तहत
अधिसूचित कर
क्षेत्र को
आबादी विहीन
करने का
निर्णय लिया
था। इस
सूची में बिहार
के गया
जिले के
देवरी डुमरी
प्रखंड का
फायरिंग रेंज
था। बिहार
सरकार ने
1992 में गया
जिले के
देवरी डुमरी
प्रखंड स्थित
फायरिंग रेज
की जगह
पर नेतरहाट
फील्ड फायरिंग
रेज को
पायलट प्रोजेक्ट
में परिवर्तित
करने का
निर्णय लिया।
जिसके संदर्भ
में ब्रिगेडियर
आई. जे.
कुमार ने
बताया कि
उक्त क्षेत्र
में घरों
की संख्या
एवं ऐतिहासिक
स्मारकों के
मद्देनजर देवरी
डुमरी से
भूमि अधिग्रहण
के प्रस्ताव
को रद्द
करने का
निर्णय लिया।
तत्पष्चात,नेतरहाट के निकट एक
विषाल भूखंड
का चुनाव
उस मकसद
के लिए
राज्य सरकार
द्वारा किया
गया। ब्रिगेडियर
आगे कहते
हैं कि
उन्होंने सिर्फ
कम आबादी
वाले क्षेत्र
में केवल
188 वर्ग किलो
मीटर भूमि
की मांग
की थी।
लेकिन बिहार
सरकार ने
हमें इतना
बड़ा भूखंड
बतला दिया
जो हमारे
प्रस्ताव से
छः गुना
बड़ा है।
मुख्य
तोपाभ्यास क्षेत्र
के अलावा 23 वीं इन्फन्ट्री डिविजन
ने दो
अन्य कैम्पिंग
साईट के
प्रस्ताव रखे
हैं। उनमें
से प्रत्येक
का आकार
9 वर्ग कि.मी. है।
जिनमे से
पहला नेतरहाट
के निकट
एवं दूसरा
आदर नामक
स्थान पर
होगा।
ब्रिगेडियर
आई. जे
कुमार के
संवाददाता सम्मेलन के बाद यह
बात पूरी
तरह से
स्पष्ट हो
चुकी थी
कि इस
क्षेत्र में
स्थाई रूप
से फायरिंग
रंेज बनाने
की योजना
थी। जिसे
तत्कालीन भारत सरकार ,बिहार
सरकार एवं
झारखंड अलग
राज्य के
गठन के
बाद झारखंड
सरकार नकारती
रही है।
अब तो
असलियत सामने
था। बिना
समय गंवाये
यहाँ के
लोगों ने
एकत्र होकर
केन्द्रीय जन संघर्ष समिति के
बैनर तले
उलगुलान की
घोषणा कर
दी।
जनता का विरोध लगातार बढता
जा रहा
था ।
27. 10 .1993 को महुआडांड़ प्रखंड में 10 हजार
से भी
ज्यादा लोगों
ने बैठक
के बाद
राष्ट्रपति के नाम प्रखंड विकास
पदाधिकारी को स्मार पत्र सौंपा।इस
दौरान पलामू
व गुमला
में उपायुक्त
कार्यालय के
समक्ष प्रस्तावित
पायलट प्रोजेक्ट
नेतरहाट फील्ड
फायरिंग रेंज
के खिलाफ
जुलूस कर अपना विरोध प्रदर्षन
किया । इसी बीच विभिन्न
राजनैतिक दलों
द्वारा सैनिक
छावनी के
पक्ष में
बयान आये
जिसमें भा.ज.पा.
के श्री
ष्ष्याम नारायण
दूबे ने
राष्ट्रहित के नाम पर इस
परियोजना का
समर्थन किया
तो तमाम
दस्तावेज के
बावजूद कांग्रेस
के पूर्व
सांसद
षिव प्रसाद साहू ने इस
परियोजना को
झुठलाने का
प्रयास किया
। इस
दौरान पलामू
छात्र संघ,
हीरा बरवे
छात्र संघ
एवं बनारी
विषुनपुर छात्र
संगठनों ने
दस्तावेज लेकर
गांव की
ओर कूच
कर वहाँ
प्रोजेक्ट की सही जानकारी लोगों
को दी
वहीं संगठन
को मजबूती
प्रदान करने
के लिए
सभी संगठन
को बनाने
में महत्वपूर्ण
भूमिका अदा
की।
इस बीच पटना में प्रभावित
क्षेत्र के
विद्यार्थी एकजुट होकर आंदोलन को
सहयोग दिया और दिल्ली में
रहने वाले यहाँ के मूल
से जुड़े
आदिवासी युवा
संघ ने
दिल्ली में
आंदोलन के
समर्थन में
मोरचा जारी
रखा।
इधर
जनता के
विरोध एवं
पलामू , गुमला
के उपायुक्तों
को लगातार
स्मार पत्र
देने के
बावजूद
तत्कालीन बिहार सरकार के समय
सेना के
द्वारा
23 मार्च से 27 मार्च 1994 को उक्त
क्षेत्र में
गोलाबारी अभ्यास
के लिए
नोटिस जारी
कर दिया
। इस
नोटिस ने
आग में
घी डालने
का काम
किया
आम जनता का आक्रोष और
ही तेज
हो गया
। इस
समय में
केंद्रीय जन
संघर्ष समिति
ने संयम
से कार्य
करते हुए
सत्याग्रह के माध्यम से सेना
द्वारा किये
जाने वाले
गोलाभ्यास को रोकने का निर्णय
लिया ।
तय हुआ
कि जोकीपोखर
(टुटुवापानी) के पास सत्याग्रह कर
सेना को
आगे जाने
से रोका
जाए। जिसका
प्रभावित क्षेत्र
की जनता
ने पूर्ण
रूप से
सहयोग किया
। सत्याग्रह
स्थल में
करीब एक
लाख की
भीड़ सेना
को गोलाबारी
अभ्यास करने
से रोकने
के लिए
जमा हुई।
आखिरकार इस
भीड़ जिसमें
बच्चे , बूढ़े,
महिलाएं व
युवा षामिल
थे 23 मार्च
1994 को सेना
की गाड़ी
को आगे
बढ़ने से
रोक दिया।
जिसमें महिलाओं
ने अहम
भूमिका निभाई
। सेना
वापस लौट
गई संघर्ष
आगे बढ़ता
गया। तभी
से हर
साल
22 एवं 23 मार्च को
केन्द्रीय जन संघर्ष समिति ने
सत्याग्रह के माध्यम से संघर्ष
को जारी
रखा है।
समय
समय पर
सेना द्वारा
गोलाबारी अभ्यास
के लिए
नोटिस आता
रहा और
जनता हर
नोटिस के
खिलाफ में
जोकीपोखर (टुटुवापानी) के पास सत्याग्रह
कर सेना
को गोलाबारी
अभ्यास से
रोकने के
लिए जमा
होती रही।
हर बार
सेना को
जनता के
विरोध के
कारण अपना
अभ्यास रोकने
पर मजबूर
होना पड़ा
। इसके
बाद भी
बिहार सरकार
के द्वारा
जारी नेतरहाट
फील्ड फायरिंग
रेंज की
अधिसूचना संख्या
1005 दिनांक 2.11.1999 को अधिसूचित
क्षेत्र की
समय सीमा को बढ़ा कर
2022 तक कर
दी गई।
केन्द्रीय जन संघर्ष समिति ने
झारखंड सरकार
से सिर्फ
इतना ही
मांग किया
है कि
पायलट प्रोजेक्ट
नेतरहाट फील्ड
फायरिंग रेंज
एवं बिहार
सरकार द्वारा
जारी अधिसूचना
संख्या 1005 दिनांक 2.11.1999 को रद्द करे ।
आज
भी इस
क्षेत्र में
सेना की
गिद्ध सी
नजर जमाये
देख रही
है। जिसका
खुलासा 4 फरवरी
2014 को
स्थानीय दैनिक
भास्कर में ‘ नक्सलियों
के गढ़
में खुलेगा
सेना का
टेªनिंग
सेंटर ‘ षीर्षक
से छपे
समाचार
द्वारा ज्ञात हुआ है जिसमें
नक्सलियों के बहाने सेना के
लिए इस
क्षेत्र में
स्थान देने
की तैयारी
की जा
रही है।
परन्तु जनता
अब किसी
कीमत पर
न तो
पायलट प्रोजेक्ट
बनने देना
चाहती है
और न
ही सेना
के लिए
गोलाबारी अभ्यास
के लिए
स्थान ही। जान देंगे जमीन
नहीं का
नारा आज
भी इस
क्षेत्र की
जनता के
बीच ताकत
भरते हुए
संघर्ष की
राह को
आगे बढा़ता
रहता है।
जेरोम
जेराल्ड कुजूर
( पलामू
छात्र संघ
के पूर्व
अध्यक्ष एवं
नेतरहाट आंदोलन
के सिपाही हैं )
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