आईएवाई के तहत 1 अप्रैल, 2004 से पूर्व वाले होंगे लाभान्वित
सरकार नौकरशाह नहीं ले रहे हैं दिलचस्पी
गया। सुशासन सरकार ने इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) के तहत अधूरा मकान बनाने वालों को तोहफा दिया गया है। मगर सरकार ने 1 अप्रैल,2004 का लक्ष्मण रेखा खींच दी है। इस लक्ष्मण रेखा के पूर्व जिन्हों ने किसी कारण से आईएवाई की राशि से मकान अधूरा बना रखे हैं उनको ही लाभान्वित करने का फैसला किया है। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा ने सभी 38 जिलों के जिला समाहर्ताओं को पत्र लिखा है। इसमें सरकार के नौकरशाह दिलचस्पी नहीं लेते दिख रहे हैं।
आगामी आम चुनाव के मद्दे नजर केन्द्र सरकार ने इंदिरा आवास योजना की राशि में उछाल ला दी है। इसके तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 75 हजार और सामान्य क्षेत्र में 70 हजार रूपए दिये जा रहे है। इसे 1 अप्रैल,2013 से लागू कर दिया है। वहीं राज्य सरकार ने नहले पर दहला मारकर ने भी इंदिरा आवास योजना के तहत अधूरा मकान बनाने वाले लोगों को पूरा मकान बनाने के लिए राशि देने की घोषणा कर दी गयी है। इसके अनुसार 1 अप्रैल,2004 के पूर्व अधूरा मकान बनाने वालों को लाभान्वित कराया जाएगा। अगर सब कुछ ठीक रहा तो आईएवाई के लाभान्वितों घर का सपना पूर्ण हो जाएगा। अपने-अपने डीएम के समक्ष आवेदन दे सकते हैं।
यह सोचने के लिए जरूरी है कि आखिर आईएवाई के तहत निर्गत राशि से मकान क्यों नहीं बन पाया? इसका जवाब आएगा कि आईएवाई में दलालों के सीधे प्रवेश है। जो काम करवाने के बदले में काम का दाम वसूलते हैं। पहले कम से अधिक होकर 5 हजार रूपए तक बढ़ गया। अब वह 10 हजार रूपए हो गया है। जब से केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने 11 अक्तूबर 2012 को आगरा में घोषणा कर दी थी। इंदिरा आवास योजना के तहत नक्सल प्रभावित क्षेत्र में 75 हजार और सामान्य क्षेत्र के लिए 70 हजार रूपए दिए जाएंगे। उसी समय दलाली के भाव में उछाल आ गया है। 5 से सीधे 10 हजार रूपए हो गया है।
अभी एक सर्वें के अनुसार जहानाबाद जिले के जहानाबाद सदर प्रखंड के सिकरिया ग्राम पंचायत के रसलपुर गांव में 55 महादलित मुसहर रहते हैं। यहां पर कुल 45 परिवारों को इंदिरा आवास योजना के तहत मकान निर्माण करवाने हेतु राशि निर्गत की गयी। केवल 2 महादलित ही मकान की छत निर्माण करने में सफल हो गए। कुल 43 महादलितों का मकान अधूरा ही रह गया। दलालों के साथ ईंट,बालू, सीमेंट,छड, आदि की कीमत बढ़ा दी जाती है। कुशल कारीगर भी मजदूरी में खासा इजाफा कर देते हैं। समानों को खरीदकर घर ले जाने में गाड़ी खर्च भी अधिक करनी पड़ती है। महादलित मुसहरों का घर गांव के किनारे दक्षिण दिशा में रहती है। काफी दूरी रहने से मामला गड़बड़ हो जाता है। इस समय भी यहीं हालात हो सकती है। इसमें सरकार को हस्तक्षेप करके की जरूरत है।