रांची: प्रत्येक साल विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त को मनाया जाता है. इसे पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दिसंबर 1994 में प्राथमिक बैठक के दिन घोषित किया गया था.1982 में मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यकारी दल की आदिवासी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र की कार्यकारी पार्टी की पहली बैठक की गयी. ऐसा माना जाता है कि आदिवासी के कारण आज भी पर्यावरण और संस्कृति जिंदा है. इनके पसीने से आज भी कई बड़ी इमारतें चंद महीने में खड़ी हो जाती हैं. इन्हीं के अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करने के साथ ही उनके योगदानों को स्वीकार करने के लिए 9 अगस्त को पूरी दुनिया में आदिवासी दिवस मनाया जाएगा. इसमें उनकी लोक गाथाओं ,संस्कृति की हर जगह प्रस्तुति की जाती है.
आपको बता दें कि विभिन्न सरकारों और संगठनों द्वारा आदिवासियों के उत्थान के लिए लगातार कोशिश की जा रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक आज पूरी दुनिया में आदिवासियों की संख्या घटकर 37 करोड़ के आस पास हो गयी है. यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा की कहीं न कहीं मॉर्डन लोग ही आदिवासियों के अस्तित्व के पीछे पड़े हुए है क्योंकि हर साल न जाने कितने पेड़ और जंगलों को काटा जा रहा है इन पेड़ो को सिर्फ अपने फायदे के लिए काट कर हटाया जा रहा है. लोग अपने इस फायदे में यह भूल जाते हैं की हम आदिवासियों के घर यानी उनके जंगल का विनाश कर रहे है.
बता दें कि कोविड-19 के चलते 2021 में कोई थीम जारी नहीं की गयी. वर्ष 2020 की थीम को पुनः जारी कर दिया गया था. विश्व आदिवासी दिवस 2022 की थीम आर्थिक और सामाजिक मामलों का विभाग (डीईएसए) इस वर्ष के विषय पर ध्यान केंद्रित करते हुए, इस वर्ष की थीम “संरक्षण में स्वदेशी महिलाओं की भूमिका और पारंपरिक ज्ञान का प्रसारण ”है.
भारत के झारखंड राज्य में 26 फीसदी आबादी आदिवासी है. झारखंड में 32 आदिवासी जनजातियां रहती हैं, जिनमें बिरहोर, पहाड़िया, माल पहाड़िया, कोरबा, बिरजिया, असुर, सबर, खड़िया और बिरजिया जनजाति समूह हैं. देश की आजादी के समय
झारखंड में आदिवासी जनजाति के लोगों की संख्या 35 फीसदी के करीब थी, जो कि 2011 की जनगणना के अनुसार, 26 फीसदी रह गई है.
विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर रांची महाधर्मप्रांत के यूट्यूब चैनल के माध्यम से रांची महाधर्मप्रांत के महाधर्माध्यक्ष फेलिक्स टोप्पो येसु समाजी ने 9 अगस्त को अपने संदेश में कहा, ‘सभी आदिवासियों को अपनी ओर से शुभकामनाएं एवं जोहार देता हूँ. प्रत्येक आदिवासी को आदिवासी होने के नाते आत्म सम्मान और गौरव होना चाहिए. उन्हें इस बात का गर्व होना चाहिए कि वे आदिवासी हैं. इसके साथ साथ-साथ उन्हें अपने पुरखों को याद करना चाहिए. हम जो कुछ भी हैं हमारे पुरखों के बदौलत हैं. उन्होंने जंगल-झाड़, ऊँची-नीची जमीन को बहुत परिश्रम करके खेती-बारी के लायक बनाया और यहाँ की हरियाली को बनाये रखा. हम उनके कठिन परिश्रम के लिए उनको धन्यवाद देते हैं और उनका आदर सम्मान करते हैं.
आगे महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि हमारे पुरखों ने आदिवासियों की जो संस्कृति है उसे बनाए रखा. जैसे कि हम जानते हैं कि आदिवासियों में बहुत अच्छे मूल्य हैं, उनकी संस्कृति में सामुदायिक जीवन, आपसी प्रेम, एकता और सौहार्द है. जहाँ वे शादी-ब्याह और खेती बारी में भी एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करते और आनन्द मनाते हैं. जहाँ नाच-गान है. एक-दूसरे की सहायता है, एक दूसरे में समानता है. वे किसी को बड़ा-छोटा नहीं मानते हैं. और कोई भी निर्णय लेना हो तो वे मिलकर निर्णय लेते हैं. ये हमारी संस्कृति की अच्छी बातें हैं.
विश्व आदिवासी दिवस 2022 के लिए ट्विटर ने एक विशेष इमोजी (Emoji) एक्टिवेट किया है. 9 अगस्त से 13 सितंबर तक यह एक्टिव रहेगा. विश्व आदिवासी दिवस के लिए 9 खास हैशटैग तैयार किये गये हैं. इन हैशटैग का इस्तेमाल करते ही स्पेशल इमोजी एक्टिवेट हो जायेगा. ये हैशटैग्स इस प्रकार हैं: #WeAreIndigenous . #IndigenousDay . #IndigenousPeoplesDay . #UNDRIP . #SomosIndígenas . #PueblosIndígenas . #DíaPueblosIndígenas . #SoyIndígena . #autochtones .
इस बीच विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर केन्द्रीय सरना समिति एवं अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के तत्वाधान में केन्द्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष फूलचंद तिर्की के नेतृत्व में करमटोली, नगड़ाटोली, बोड़ेया, नामकुम, कांके, हटिया, ओरमंझी, बरियातू से सैकड़ों की संख्या में पारंपरिक वेशभूषा में ढोल, नगाड़ा, मांदर, तीर-धनुष के साथ महिला पुरुष अलबर्ट एक्का चौक से मोरहाबादी मैदान बापू वाटिका तक शोभा यात्रा के रूप में गये. बापू वाटिका के समक्ष पारंपरिक नृत्य संगीत का कार्यक्रम किया गया. मौके पर केंद्रीय सरना समिति के केंद्रीय अध्यक्ष फूलचंद तिर्की ने कहा कि 9 अगस्त को पूरे विश्व में आदिवासी अपनी परंपरा संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं एवं अपनी एकजुटता अपनी पहचान अपने अधिकार की आवाज बुलंद करते हैं. उन्होंने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर सरना कोड की मांग की गयी है. मौके पर केंद्रीय सरना समिति के महासचिव संजय तिर्की, अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद के अध्यक्ष सत्यनारायण लकड़ा, विमल कच्छप, बाना मुंडा, बिनय उरांव, महिला शाखा अध्यक्ष नीरा टोप्पो, नगिया टोप्पो, मीरा टोप्पो, प्रमोद एक्का, सहाय तिर्की, सुखवारो उरांव, अमर तिर्की, ज्योत्सना भगत, गुड्डी तिर्की, सीमा तिर्की, सोनी तिर्की, पंचम तिर्की, भुवनेश्वर लोहरा, सुशील उरांव, किशन लोहरा एवं अन्य शामिल थे.
आलोक कुमार
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