राजनेताओं की प्रतिमाओं के साथ खिलवाड़ बंद हो
कटोरिया। बड़ा सवाल यह है कि आखिर हम क्या संदेश देना चाहते हैं? बिहार में राजनेताओं की प्रतिमाओं के साथ खिलवाड़ बंद हो। राजनेताओं के नाम से कैश अर्जित करने वाले एनजीओ होश में आ
जाए। देश के सामने राजनेताओं के बदरंग छवि पेश करना बंद हो।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि,आचार्या विनोबा भावे की भूदान भूमि, लोकनायक जयप्रकाश नारायण की क्रांति भूमि, महात्मा बुद्ध की ज्ञान भूमि, भगवान महाबीर के दर्शन भूमि वाले बिहार में संविधान निर्माता बाबा साहब डा.भीमराव अम्बेडकर उपेक्षित स्थिति में हैं। आखिर प्रतिमा स्थापित करके गांव के ग्रामीण नागरिकों को क्या संदेश देना चाहते हैं? अपने आने वाले भविष्य को डा.अम्बेडकर को बदहाल की स्थिति में ही परोसना चाह रहे हैं? इस तरह की छवि पेश करने की छूट कदापि नहीं मिलनी चाहिए। सरकार को चाहिए कि गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से गांव-गांव में प्रतिमा लगाओं अभियान पर ब्रेक लगाये और बदरूप प्लास्टर वाली प्रतिमाओं के बदले संगमरमर वाली प्रतिमा लगायी जाए। यह सभी महापुरूषों की प्रतिमा के साथ लागू करनी चाहिए।
बांका जिले के चान्दन प्रखंड के धनुवसार पंचायत के महादलित लोहटनियां गांव में संविधान निर्माता डा.भीमराव अम्बेडकर उपेक्षित है। यहां पर डा. अम्बेडकर जी की प्रतिमा स्थापित की गयी है। आदमकद वाली प्रतिमा बदरंग होने लगी है। किसी तरह से प्रतिमा में प्लास्टर लगाकर ढांचा करने के कारण प्लास्टर झरने लगा है।
आजकल संसाधन देने वालों ने मुहिम चला रखा है। इसके तहत महादलित मोहल्लों में संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकर जी की प्रतिमा स्थापित की जाए। इसके तहत बिहार सरकार के द्वारा पंजीकृत गैर सरकारी संस्थाओं के द्वारा जोरशोर से प्रतिमा स्थापित की जाने लगी। इसमें एनजीओ वालों की हित निहित है। इसको साधने में लग गये हैं। इनको फंड मिलता है। फंड से मालामाल हो रहे हैं।
खैर, महादलित लोहटनियां गांव में डा. भीमराव अम्बेडकर बदहाल पड़े हुए हैं। उनके सत्य विचार भी हवा हवाई ही है। शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो वाले सत्य विचार दूर-दूर तक दिखायी नहीं पड़ रहा है। गनौरी रविदास ने बताया कि गांव के किनारे प्रतिमा स्थापित की गयी है। गांव के एक सज्जन ने एक कट्टा जमीन दी है। इसी पर बाबा साहब की प्रतिमा बना दी गयी है।
चिंगारी ग्रामीण विकास केन्द्र के प्रवक्ता रवि रौशन ने कहा कि हम लोग राजनेताओं के जन्म और मरण दिवस समारोह मनाते हैं तो उस गोलगोल बात करते हैं। उनके मूल्य और आदर्श को मानने का संकल्प किया जाता है। प्रतिमा पर मालार्पण करते हैं। दोनों दिनों के बाद भूल जाते हैं। इस तरह के क्रियाकलापों पर अंकुश लगाने का कार्य करने की जरूरत है।
आलोक
कुमार