अब अतिक्रमणकारियों से दो-दो हाथ करेंगे आयुक्त
पटना पश्चिम क्षेत्र के सामने सिर छुपाने की है परेशानी
पटना।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की
सरकार यातायात को
दुरूस्त करने के
लिए जगह-जगह
पिलर पर केन्द्रित
सड़क निर्माण करवाने
में दिलचस्पी ले
रही है। जो
वाजिब भी है।
वहीं काम के
जुगाड़ में शहर
में खाक छानने
वाले सड़क के
किनारे रहने को
बाध्य है। नदी,नहर,पुल,रेलवे लाइन आदि
के किनारे में
भी लोग रहते
हैं। बहुत दिनों
से रहते आ
रहे हैं। अब
विकास के नाम
पर गरीबों को
हटाने का प्रयास
होने लगा है।
अतिक्रमणकारियों को हटाने
का प्रयास सीओ,एसडीओ,डीएम और
अब कमिश्नर के
हाथ में आ
गया है। इन
नौकरशाहों की मार
गरीबों पर पड़ेगा।
वह शुरू हो
गया है।
दीघा-सोनपुर रेल
सह
सड़क
महासेतु-
दीघा-सोनपुर रेल सह
सड़क महासेतु को
हरहाल में मार्च
2015 तक तैयार कर देना
है। इसको लेकर
युद्धस्तर पर कार्यारंभ
है। सबसे बड़ी
दिक्कत है कि
परियोजना स्थल के
अधीन जमीन है
वह चाहे रैयती
हो अथवा सरकारी
जमीन पर कई
दशक से लोग
कुडंली मारकर बैठे हैं।
सबसे पहले उनको
हटाने में पूर्व
मध्य रेलवे के
अधिकारियों को परेशानी
हो रही है।
उनको हटाने में
के लिए राज्य
सरकार के नौकरशाह
भी सफल नहीं
हो पा रहे
हैं। नौकरशाह जब
दलबल के साथ
जेसीबी मशीन लेकर
जाते हैं तो
जनता जर्नादन के
कोपभाजन बन जाते
हैं। मजबूरी में
आगे बढ़ाये कदम
को पीछे खींच
लेते हैं। रूपसपुर
थाने के रूपसपुर
नहर के किनारे
रहने वाले लोग
और अभी दीघा
चौहट्टा में रैयती
जमीन के मालिक
जेसीबी मशीन को
बैरंग वापस करवाने
में सफल हो
गये हैं। ऐसी
स्थिति में प्रशासन
ने संयम से
काम लिया। अगर
प्रशासन टाइट होता
तो दोनों तरफ
से फाइट होना
निश्चित है। उस
समय माहौल मरने
और मारने तक
उतारू हो जाए
उससे इंकार नहीं
किया जा सकता
है। अब जनता
से पुलिस नहीं
खदेड़ाएं उसके लिए
प्रशासन ने कानून
का सहारा लेना
शुरू कर दिया
है। रूपसपुर थाने
के रूपसपुर नगह
के किनारे रहने
वालों को दानापुर
अंचल कार्यालय से
नोटिस जारी कर
दिया गया है।
परन्तु सीओ अमल
करवाने में असफल
हो गये हैं।
पहले पुनर्वास तब
विस्थापन
की
नीति
चले-
अभी
जिला प्रशासन के गन
पॉइन्ट पर टेसलाल
वर्मा नगर नामक
झोपड़पट्टी,दीघा बिन्द
टोली, नहर के
किनारे बसे गरीब,दीघा चौहट्टा
आदि क्षेत्र के
लोग हैं। इसके
अलावे एम्स से
दीघा पुल के
किनारे रहने वाले
गरीब लोगों को
उजड़ना तय है।
जिस स्थान पर
पाटलिपुत्र स्टेशन को बनाया
गया है। वहां
पर दूरदराज से
लोग आकर झोपड़ी
बनाकर रहते थे।
जब दीघा-सोनपुर
रेल पुल सह
सड़क परियोजना की
शुरूआत हुई तो
रेल प्रशासन ने
झोपड़पट्टी के लोगों
से आग्रह किया
कि दीघा नहर
के किनारे झोपड़ी
खड़ा कर रहे।
देखते देखते सैकड़ों
की संख्या में
झोपड़ी लग गयी
है। तब कल्याणकारी
सरकार ने झोपड़पट्टी
में रहने वालों
को बुनियादी सुविधाएं
उपलब्ध कराने लगी। परिचय
पत्र, मतदाता सूची
में नामदर्ज ,बीपीएल
कार्ड, राशन कार्ड,
आंगनबाड़ी केन्द्र, राजकीय मध्य
विघालय आदि सुविधा
उपलब्ध करा दी
गयी। सभी तरह
का साधन उपलब्ध
कराने से लोग
संगठित हो गये।
रेल प्रशासन और
सरकार के ऊपर
दबाव डालने के
लिए वर्ष 2007 में
दानापुर अंचल कार्यालय
के सामने 9 माह
तक सत्याग्रह किया
गया। दर्जनों लोग
लगातार अंचल कार्यालय
के सामने धरना
पर बैठे। इस
बीच तेतरी देवी
नामक सत्याग्रही की
मौत धरना स्थल
पर हो गयी।
उनकी शहादत काम नहीं
आयी। आज भी
लोगों को विस्थापन
के पहले पुनर्वास
करने की व्यवस्था
नहीं की जा
रही है। टेसलाल
वर्मा विस्थापन मोर्चा
के अध्यक्ष सुनील
कुमार ने कहा
कि सत्याग्रह से
हारने के बाद
पटना उच्च न्यायालय
में लोकहित याचिका
दायर की गयी।
माननीय न्यायालय ने सरकार
से आवश्यक कदम
उठाने का निर्देश दिया। जिसे पालन
नहीं किया गया।
इसको लेकर लोग
आक्रोशित हैं। इनका
कहना है कि
जबतक सरकार के
द्वारा पुनर्वास नहीं किया
जाता है। तबतक
टस से मस
नहीं होने वाले
हैं। बहरहाल आगामी
दो महीने के
भीतर पाटलिपुत्र स्टे शन
से ट्रेनों का
परिचालन शुरू होने
में संषय की
स्थिति बन गयी
है।
जब महिलाओं ने
जेसीबी
मशीन
को
बैरंग
वापस
करा
दी-
जब
महिलाओं ने जेसीबी
मशीन को बैरंग
वापस कराने में
सफल हो गयी।
पुनर्वास संघर्ष मोर्चा की
ईकाई, हरिदासपुर के
बैनर तले जेसीबी
मशीन को आगे
बढ़ने नहीं दिया।
गत 21 अप्रैल को
एक शख्स ने
टेम्पों पर बैठकर
लगातार घोषणा करते चला
जा रहा था
कि जो लोग
रूपसपुर नहर से
खगौल रेवले गुमटी
तक सड़क और
नहर के किनारे
रहते हैं। आप
लोग अपना घर
तोड़ लें। अगर
ऐसा नहीं करते
हैं तो जिला
प्रशासन के द्वारा
जबरन जेसीबी मषीन
से घर को
ध्वस्त कर दिया
जाएगा। इस
तुर्गलकी ऐलान से
अभिमन्यु नगर, चुल्लाई
चक, हरिदासपुर, प्रेम
नगर आदि क्षेत्र
में रहने वाले
गरीब लोगों के
बीच में हड़कम्प
मच गया। प्रभावित
विजय दास ने
बताया कि कोई
सात सौ की
संख्या में घर
है। इसकी जनसंख्या
करीब 3678 है। हम
लोग गरीबी रेखा
के नीचे जीवन
बसर करते हैं।
इसी लिए सरकार
ने इन्दिरा आवास
योजना के तहत घर
निर्माण करा दी
है। यहां पर
दो स्कूल, दो
सामुदायिक भवन, एक
मंदिर, एक बालवाड़ी
केन्द्र पर बुलडोजर
चलना निष्चित है।
प्रायः सभी लोगों
के पास पहचान
पत्र भी है।
गुंगू
मांझी की पत्नी
हेमंती देवी कहती
हैं कि हम
लोग बीस साल
से अधिक दिनों
से सड़क और
नहर के किनारे
रहते आ रहे
हैं। पूर्व मध्य
रेलवे के द्वारा
गंगा नदी पर
गंगा सेतु निर्माण
करायी जा रही है।
उसी समय से
विस्थापन की तलवार
लटकने लगी है।
10 सालों से संषय
की स्थिति में
रहते आ रहे
हैं। इधर 5 वर्षो
से जोरशोर से
सिर्फ विस्थापित करने
का प्रयास हो
रहा है। जोर
जर्बदस्ती से रूपसपुर से
खगौल तक सड़क
चौड़ीकरण कर दी
गयी । अब
तो पूर्ण रूप
से हटाने का
प्रयास जारी है।
वर्तमान सड़क की
चौड़ाई से अब
ओर 20 फुट चौड़ी
सड़क निर्माण करने
की योजना है।
अगर ऐसा होता
है तो हम
700 गरीब परिवारों के सिर
पर छत छीन
ली जाएगी। रद्दी
कागज चुनकर जीर्विका
चलाने वाली हेमंती
देवी आगे कहती
है कि ‘ घरवा
टूटतई तो कहां
रहबई ? बगीचवा में गैर
मजरूआ जमीन हई,
वहीं जमीनवा पर
सरकार बसा देते
हल’। मंगलवार को तुर्गलकी
फरमान को अमलीजामा
पहनाने के लिए
जेसीबी मषीन लायी
गयी। मषीन को
देखते ही विस्थापन
की दंष झेलने
वाली महिलाएं बौखला
गयी। पहले पुनर्वास
करो, सड़क चौड़ीकरण
इसके बाद करो।
पुनर्वास संघर्श मोर्चा की
ईकाई, हरिदासपुर के
बैनर तले जेसीबी
मशीन को आगे
बढ़ने नहीं दिया।
जेसीबी मशीन को
बैरंग खदेड़ दिया।
इसके बाद अभिमन्यु
नगर, चुल्लाई चक,
हरिदासपुर, प्रेम नगर आदि
क्षेत्र की महिलाओं
की बैठक की
गयी। मुठ्ठी बांधकर
महिलाओं और अन्य
लोगों ने जमकर
नारा बुलंद
किये। आगे जमीन
पीछे वोट, नहीं
जमीन नहीं वोट,
हम अपना अधिकार
मांगते नहीं किसी
से भीख मांगते,
विस्थापितों को पुनर्वासित
करना होगा, आवाज
दो हम एक
हैं। बैठक को
संबोधित करने वालों
में रेखा देवी,
फूलापति देवी आदि
ने संबोधित किया।
इस असवर पर
प्रभावितों ने जान
देंगे और जमीन
नहीं देंगे को
लेकर सौगंध खाएं।
इस अवसर पर
प्रिया बिहार, के अभिताभ
भूषण
और अभिशेक कुमार झा, दलित
मुक्ति मिशन के
महेन्द्र कुमार रौषन और
रामप्रवेश राम, असंगठित क्षेत्र
कामगार संगठन के विजयकांत
सिन्हा, एकता परिषद
बिहार के नरेश
मांझी आदि संयुक्त
रूप से विस्थापन
की दंश झेलने
वालों के साथ
कंधे से कंधे
मिलाकर साथ रहने
का वादा किये।
इसके साथ मुख्यमंत्री
और जिलाधिकारी से
मांग की है
कि विस्थापन के
पहले पुनर्वास करने
की नीति को
लागू करके प्रभावितों
के साथ न्याय
करें।
अतिक्रमण और
पुल
के
अधिग्रहित
जमीन
पर
से
हटाने
का
कार्य
जोरशोर
से-
दीघा-सोनपुर रेल पुल
सह सड़क परियोजना
के अधिग्रहण कार्य
से प्रभावित परिवारों
को जिला प्रशासन
के समक्ष प्रदर्शन
करते हुए
उन्हें बैरंग लौटने पर
विवश कर दिया।
दो दंडाधिकारियों के
साथ पुलिस बल
के जवान जेसीबी
मशीन समेत दीघा
घाट चौहट्टा पहुंच
परियोजना के अधिग्रहित
जमीनों पर बने
मकानों को तोड़ने
दोपहर में पहुंचे।
परन्तु प्रभावित परिवारों ने
जैसे ही अफसरों
एवं पुलिस बल
के जवानों को
देखा महिलाओं एवं
बच्चों समेत दर्जनों
परिवारों ने जेसीबी
को घेर लिया
और विरोध जताते
अधिकारियों को पीछे
हटने पर विवश
कर दिया। नेतृत्व
कर रहे दीघा
रेलपुल परियोजना पुनर्वास संघर्ष
मोर्चा के अध्यक्ष
लक्ष्मी चौधरी , उपाध्यक्ष प्रेम
किशोर यादव ने
बताया कि परियोजना
के तहत अधिग्रहित
46 मकानों के बाशिंदे
को पुनर्वासित किये
बिना निर्माण तोड़ने
की कोशिश है।
जमीन का मुआवजा
भी कम दिया जा
रहा है। किसी
भी विस्थापित परिवारों
को रेलवे ने
अब तक नौकरी
नहीं दी है। परियोजना
के शिलान्यास पर
विस्थापित परिवार के सदस्यों
को नौकरी , पुनवार्सित
करने और बाजार
भाव से जमीन
का मुआवजा देने
की घोषणा हुई
थी। बावजूद इसके
मकानों को तोड़ा
जाने लगा। प्रशासन
के तरफ से
मौजूद दंडाधिकारी अखिलेश्वर
कुमार ने बताया
कि अधिग्रहित जमीन
के मालिकों को
मुआवजे की 80 फीसदी रकम
दे दी गई
तक मकान तोड़ने
का काम शुरू
किया गया है।
प्रावधान का हवाला
देते हुए दंडाधिकारी
ने बताया कि
जमीन या नौकरी
एक ही लाभ
मिलेगा। उधर स्थिति
को भांपते हुए
पटना सदर एसडीओ
नैयर इकबाल भी
पहुंचे। सबसे पहले
उन्होंने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष
प्रेम किशोर व
जीपी यादव से
बातचीत कर मकान
तोड़ने के काम
में बाधा न पहुंचाने
की आग्रह किया।
पर मौजूद परिवारों
ने हंगामा करते
हुए पहले जमीन
या नौकरी फिर
मकान छोड़ने की
जिद पर डटे
रहे। बात नहीं
बनी और संघर्ष
कर रहे लोग
एसडीओ की सलाह
का विरोध करते
हुए हट गये।
शाम तक प्रशासन
की टीम को
भी यहां से
हटाना पड़ा।
क्या करना चाहिए
आयुक्त
महोदय
को-
सरकार
ने प्रमंडल आयुक्तों
को अतिक्रमणकारियों से
निपटने और मुकाबला
करने की जिम्मेवारी
थोप दिया है।
अब आयुक्त ही
अतिक्रमणकारियों से जूझते
नजर आएंगे। आयुक्त
महोदय को चाहिए
कि ऐसे लोगों
को विश्वास में
लें। पहले पुनर्वास
तब विस्थापन की
नीति पर चलें।
तब ही जाकर
गरीब लोगों से
पार पाया जा
सकेंगा। वैसे भी
खुद कल्याणकारी सरकार
ने कानून बना
रखी है कि
विस्थापन के पहले
पुनर्वास की व्यवस्था
हो। इसके लिए
गाइड लाइन भी
तैयार किया गया
है। इसको जरूर
आयुक्त महोदय को निभायाना
चाहिए। ताकि गरीब
और सरकार के
बीच में तनाव
न बनें। रक्त
के एक कतरा
बहाए ही गरीबों
से निपटा जा
सके।
आलोक कुमार