मुख्यमंत्री
नीतीश कुमार के
द्वारा घोषित सेव द
गर्ल्स चाइल्ड ईयर -2013 में
लाडली बिटिया पर
फोकस
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
जी के कर्मभूमि,
विनोबा भावे जी
की भूदान भूमि,जय प्रकाश
जी की क्रांतिभूमि,
व गौतम बुद्ध
की ज्ञानभूमि बिहार
में वर्ष 1961 के
बाद लिंगानुपात घटता
ही चला गया
है। जो जनगणना
वर्ष 2011 में 916 हो गयी
है। इसके आलोक
में गैर सरकारी
संस्था एक्शन एड ने
गत वर्ष 2012 में
अप्रैल माह से
सूबे के 5 जिले
गया,पटना, वैशाली,मुजफ्फरपुर और दरभंगा
जिला में बिटिया
बचाओ, मानवता बचाओ
आरंभ किया है।
जो सफलतापूर्वक संचालित
है। इस चुनौतीपूर्ण
कार्य मात्र डेढ़
साल से ही
संचालित है। अब
जरा मगध प्रमंडल
को देखा जाए।
जहानाबाद जिला में
वर्ष 1901 की जनगणना
में 1037 थी जो
घटकर वर्ष 2011 की
जनगणना में 918 हो गयी।
औरंगाबाद जिला में
916, गया में 932 और नवादा
जिला में 936 हो
गयी।
जिला 1901 1911 1921 1931 1941 1951 1961 1971 1981 1991 2001 2011
जहानाबाद 1037 1035 1003 1001 1001 980 1004 956 955 919 928 918
औरंगाबाद 1037 1035 1003 1001 1001 991 1001 964 956 915 936 916
गया 1037 1035 1003 1001 1001 995 996 961 966 922 937 932
नवादा 1037 1035 1003 1001 1001 1040 1054 1017 1002 936 948 936
कन्या भ्रूण हत्या को
बढ़ाने वाले तथ्य
- आमतौर पर लोग
‘गरीबी’ को एक
बड़ा कारण मानते
हैं। कुछ से
लड़की के विवाह
में होने वाले
खर्च(दहेज) से
जोड़ते हैं। यह
समस्या सभी जाति
,धर्मों एवं सम्प्रदायों
में लगभग समान
है। ग्रामीण क्षेत्र
की स्थिति शहरों
से अच्छी है।
पढ़े-लिखे परिवारों
में कन्या भ्रूण
हत्या की घटनाएं
अनपढ़ अथवा कम
पढ़े-लिखे परिवारों
में अधिक है।
पिछले दो दशकों
में लगभग 1 करोड़
कन्या भ्रूण हत्याएं
हुई है। 6 बच्चों
में 1 बच्चे की
हत्या सिर्फ लड़की
होने के कारण
होती है।
अल्ट्रासाउंड और चिकित्सक
के ऊपर लगाम
लगाने का आदेश-
माननीय सर्वोच्च न्यायालय भी
सचेत है। एक
जनहित याचिका की
सुनवाई के बाद
केन्द्र सरकार को ठोस
कदम उठाने का
निर्देश दिया। केन्द्र सरकार
ने प्री- नैटल
डायग्नौस्टिक टेक्नीक एक्ट 1994 (पीसीपीएनडीटी
एक्ट 1994) बनाकर नकेल कंसने
का प्रयास किया।
बिहार में अबतक
125 मामला प्रकाश में आया
है। कानून के
तहत सिविल सर्जन
के द्वारा कार्रवाई
की जाती है।
इस कानून में
पुलिस को अधिकार
देने की मांग
की गयी है।
पुलिस तत्काल एफआईआर
करके कानून का
उल्लघंन करने वालों
पर नकेल कस
सकती है।
बिटिया का जन्मोत्सव
को संस्थागत मनाए-
सरकार के आदेश
से बेटिया जन्मोत्सव
को संस्थागत किया
जाये व उसके
आयोजन हेतु पंचायत
को प्राथमिक जिम्मेदारी
सौंपी जाये। सरकार
के आदेश से
लिंग चयन व
कन्या भ्रूण हत्या
के खिलाफ 15 अगस्त
व 2 अक्टूबर की
ग्राम सभाओं में
हर वर्ष पारित
किये जाये। सरकार
के द्वारा ज्यादा
से ज्यादा संख्या
में बुजुगों के
लिए वृद्धाश्रम संचालित
किये जायें ताकि
वृद्धावस्था में असुरक्षा
की समस्या का
सामाधान हो सके।
ज्यादा से ज्यादा
संख्या में बच्चों
के लिए पालनाघर
संचालित- सरकार के द्वारा
ज्यादा से ज्यादा
संख्या में बच्चों
के लिए पालनाघर
संचालित किये जाये
ताकि महिलाओं के
लिए रोजगार का
सृजन हो और
अधिक से अधिक
महिलाये घर के
बाहर आकर रोजगार
से जुड़ सके।
महिलाओं के लिए
50 प्रतिशत आरक्षण सभी नौकरियों,
सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों
व स्कूल-कॉलेज
के प्रवेश में
दिया जाए। सरकार
महिलाओं के सम्पति
के अधिकार को
सुनिश्चित करते हुए
दहेज के विरोध
में माहौल बनाए
व दहेज विरोधी
कानून को लागू
करें। विवाह के
अवसर पर माता-पिता अपने
सभी बच्चों (बेटियों
सहित) को सम्पति
का वसीयत दें
ताकि स्त्रीधन के
नाम पर भी
ससुराल वालों को दहेज
न दिया जाये।
सभी योजनाओं का जेण्डर
विश्लेषण कर पता
करे- सरकार महिलाओं
हेतु चला रही
सभी योजनाओं का
जेण्डर विश्लेषण कर पता
करे कि कौन-कौन सी
योजनाएं पितृसत्तात्मक सोच पर
आधारित हैं। वे
सभी योजनायें जिससे
लड़कियों के जन्म
पर जमा की
जा रही धनराशि
जो उनके 18 वर्ष
के होने पर
दी जाती है,
वे समाज में
यह संदेश देते
हैं कि लड़कियां
माता-पिता पर
बोझ हैं और
सरकार उनका बोझ
कम करने को
तत्पर हैं ये
योजनाएं लड़कियों को बोझ
मानने वाली मानसिकता
को चुनौती नहीं
देती। ये योजनाएं
लड़कियों की असीमित
क्षमताओं को बढ़ावा
न देते हुए
उनको अपमानित भी
करती है।
योजनाएं विवाहोन्मुखी न
बनाकर शिक्षा एवं
रोजगारोन्मुखी बनाई जाए
-बालिकाओं के लिए
योजनाएं विवाहोन्मुखी न बनाकर
शिक्षा एवं रोजगारोन्मुखी
बनाई जाए। अगर
धनराशि देनी ही
है तो उसको
उम्र से न
जोड़ते हुए शिक्षा
से जोड़ा जाये।
मैट्रिक,इन्टर,स्नातक एवं
स्नाकोत्तर चरणों पर किश्तों
में छात्रावृत्ति के
तौर पर दिया
जाये। तकनीकी व
व्यवसायोन्मुखी शिक्षा के लिए
लड़कियों को मुफ्त
शिक्षा या विशेष
छात्रावृत्ति दी जाये।
सरकार सामाजिक बुराइयों
का उन्मूलन अगर
नहीं कर सकती
है तो अपने
नागरिकों के लिये
सामाजिक कुरीतियों पर चलना
कठिनतम तो बना
सकती है। अपनी
नीतियों द्वारा सामाजिक बदलाव
को बढ़ावा भी
दे सकती है।
आलोक कुमार