Thursday 12 September 2013

पी-डी रेलवे खंड के दीघा हॉल्ट पर खुल्लेआम बिकता है महुआ दारू


दीघा थाना, रेलवे थाना और उत्पाद विभाग के थानेदार साहब हैं संदेह के घेरे में
आखिर वह कौन है गद्दार जो मोबाइल से पार्सिंग कर देता साहबों के मूवअर न्यूज
पटना। अगर भोजपुरी के निबंधकार और नाटककार लोहा सिंह जीवित रहते। तो अपनी कहानी में अवश्य ही इस दीघा रेलवे हॉल्ट के बारे में कहते मार बहरनी रे...... जी हां, बहरनी मारना ही चाहिए। पटना-दीघा रेलवे खंड के दीघा हॉल्ट पर खुल्लेआम महुआ दारू की दुकाने सजायी जाती है। बारम्बार खाकी वर्दीधारी और सादे लिवास में रहने वाले पुलिस दीघा मुसहरी आती हैं और कुछ जगहों पर लाठी भांजकर खौफ पैदा करके चली जाती है। उसके करवट बदलते ही पुनः दारू की दुकाने सज जाती है।
दीघा थाना, रेलवे थाना और उत्पाद विभाग के अधीन है दीघा मुसहरीः
दीघा मुसहरी दीघा थाना क्षेत्र के अधीन है। पी-डी रेलखंड के दीघा हॉल्ट के कारण रेलवे थाना के भी अधीन है। उसी तरह उत्पाद विभाग के थाना के भी अंदर में है। इस तरह तीन थानेदार साहब के रहते दीघा मुसहरी में सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक नॉन स्टोप दारू बिकता ही रहता है। यहां पर सरकारी डाई डे का भी पालन नहीं किया जाता है। सिर्फ आहट आने के बाद ही बिकी को ब्रेक दे दिया जाता है।
आखिर कौन है वह गद्दार जो साहबों की गतिविधि पर नजर रखकर इतला कर देता हैः
आखिर वह कौन खबरिया है जो साहब की गाड़ी की हरकत पर नजर रखता है। गाड़ी मुड़ते ही मोबाइल से दारू बेचने वालों को खबर कर देता है। मोबाइल से खबर मिलते ही तत्काल दारू बेचना बंद करके स्थल से नौ दो ग्यारह हो जाते हैं। इसके कारण कोई भी धंधेबाज पकड़ में नहीं पाता है। केवल खिसियानी बिल्ली की तरह डेंकची और बाल्टी को इधर-उधर फेंक कर गुस्सा शांत कर लिया जाता है।
दूधारू गाय को छेड़छाड करना ही मकसदः
महुआ दारू बचने वाले धंधेबाज हरेक महीना दक्षिणा पहुंचाते हैं। मोबाइल बॉय से लेकर थानेदार तक को दक्षिणा पहुंचा दिया जाता है। अगर तीनों थाने के थानेदार संवेदनशील हो जाए तो एक दिन के अंदर दारू बेचना और दारू बनाना बंद हो जाए। शिविर लगाकर बैठ जाने के बाद कौन माई के लाल दारू बेच और बना लेगा। मगर साहबा लोग चाहते ही नहीं है। ऊपरी दबाव आने पर समय-समय पर बंदरघुड़की जमा देते हैं।
दीघा हॉल्ट पर दारू बेचने और बनाने से वातावरण दुर्गंधमय हो जाता हैः
इस ओर आवाजाही करने वाले लोग नाक पर रूमाल रखकर जाते हैं। दीघा हॉल्ट पर दारू बेचने और महुआ दारू बनाने से वातावरण दुर्गंधमय हो गया है। जब महुआ सड़ जाता है और इसका इस्तेमाल कर लेने के बाद रेलवे लाइन पर ही महुआ को फेंक दिया जाता है। इसके कारण दुर्गंध प्रसार होने लगता है। इसके अलावे पी-डी रेलगाड़ी पर सफर करके यात्री आते हैं। दीघा हॉल्ट में दारू पीते हैं और उसी ट्रेन से फिर वापस घर चले जाते हैं। यहां पर 15 मिनट तक गाड़ी रूकती है।  इस ओर प्रशासन को ध्यान देने की जरूरत है।
आलोक कुमार