Thursday 12 September 2013

बाजार से वालमेट स्कीन क्रीम खरीदकर लाते हैं और उसे लगाकर बन जाते कुष्ठ रोगी


दानकर्ताओं के समक्ष असली और नकली कुष्ठ रोगियों की पहचान करने की समस्या उत्पन्न
नकली को देखकर असली कुष्ठ रोगी मैदान छोड़ देते हैं
गया। ढोंगी बाबाओं की तरह ही ढोंगी कुष्ठ रोगी मार्केट में छाने लगे हैं। इनको आसानी से आजकल भीड़भाड़ वाले स्थानों में देखा जा सकता है। बाजार से वालमेट स्कीन क्रीम खरीदकर लाते हैं और अंगों में स्कीन क्रीम लगाकर क्रीममार कुष्ठ रोगी बन जाते हैं।
इन ढोंगी कुष्ठ रोगियों के शरीर के कुछ अंगों में पट्टी लपेट दी जाती हैं और वालमेट स्कीन क्रीम से घाव बना दिया जाता है। इसमें लाल रंग लगाया जाता है ताकि खून की तरह दिखे। इस तरह के खुले घाव को देखकर श्रद्धालुओं को सहज से ही कष्ट होने लगता है। इस ढोंगी कुष्ठ रोगी की तकलीफ को महसूस करके हम लोग जल्द ही दानकर्ता बन जाते हैं। सहज ढंग से पर्स खोलकर कुछ सिक्का कुष्ठ रोगी के सामने उछाल देते हैं। इतना करने से धर्म और पुण्य कमा लेते हैं। अब हम असली और नकली कुष्ठ रोगियों के रहस्य पर से पर्दा उठाने जा रहे हैं। आजकल बाबाओं की तरह ही नकली कुष्ठ रोगी बाजार में धड़ल्ले से पांव पसार लिये हैं। बाजार से वालमेट स्कीन क्रीम खरीदकर लाते हैं। स्कीन क्रीम को घंटों बैठकर शरीर के किसी अंग में लगाते हैं। उसके बाद पेशेवर कुष्ठ रोगी बनकर भीड़भाड़ वाले स्थान पर बैठकर दानकर्ताओं के भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं।
  जी हां, अब आप समझने लगे हैं। जिस प्रकार स्टेज शो करने के पहले मेकअप किया जाता है। उसी तरह का मेकअप नकली कुष्ठ रोगी भी करते हैं। तब जाकर किसी स्टेज शो में कलाकार हकीकत दृश्य प्रस्तुत कर पाते हैं। उनको कुछ हटकर दिखने के लिए मेकअप करना पड़ता है। साधारण- सी बात है कि उनको बेहतर दिखने के लिए घंटों बैठकर मेकअप में समय देना पड़ता है। इसके बाद ही मसला वास्तविकता में तब्दील हो जाता है। ठीक इसी तरह से कुष्ठ रोगी भी मेकअप किया करते हैं। भले ही वह वंदा कुदरती रूप से कुष्ठ रोगी हो। मगर जो बाजार से वालमेट नामक स्कीन क्रीम खरीदकर लाते हैं। उसे हाथ और पैर में लगाकर हकीकत में पेशेवर कुष्ठ रोगी बन जाते हैं।
 इस संदर्भ में जानकी देवी कहती हैं। गया जिले में कुष्ठ रोगियों का अस्पताल है। वहीं पर इलाज करवाकर ठीक हुई हैं। आज भी किसी कुष्ठ रोगी को देखकर और उनका नाम सुनकर अजब लगने लगता है। इसका कारण है यह रोग सामाजिक प्रतिष्ठा के खिलाफ है। इस रोग से बेहाल लोगों का अंग विकृत हो जाता है। यह हर्गिज नहीं कि सभी कुष्ठ रोगियों का अंग विकृत हो ही जाए। ऐसे लोगों का अंग विकृत होता है जो इस रोगी की पहचान हो जाने के पष्चात भी सामाजिक प्रतिष्ठा के ख्याल से कुष्ठ उप केन्द्र में जाकर एमडीटी दवा लेकर खाते नहीं हैं।  
उसने कहा कि अभी गया में दो मंजिला मकान बना लिये हैं। परिवार के लोग रहते हैं। जबतक मेरे पतिदेव दिलकेश्वर साव जीवित थे। तबतक पतिदेव ही ठेला ठेलते थे। एक सवाल के जवाब में कहा कि जहां पर नकली कुष्ठ रोगियों का सवाल है। उससे हम लोग झगड़ा नहीं करते हैं। उनके आगमन होते ही हम लोग अलग हट जाते हैं। कही और चले जाते हैं। यह सच है कि जानकारी के अभाव में माई-बाप धर्मी नकली कुष्ठ रोगी को ही दान करके आगे बढ़ जाते हैं। ऐसे लोग दिनभर 300 रूपए तक कमा लेते हैं। वहीं हम लोग वास्तविक कुदरती पीड़ित कुष्ठ रोगी 100 रूपए के नीचे ही कमा पाते हैं। दानकर्ताओं को असली और नकली कुष्ठ रोगियों की पहचान करने के बाद ही दान देना चाहिए।

आलोक कुमार