इलाहाबाद जंक्शन पर ट्रेन पर चढ़ते ही शिवा को जीआरपी ने धड़ दबौचा
जबरन जेबी में हाथ डालकर दो सौ रूपए और मोबाइल उड़ा लिये
पटना। जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं, तो न्याय के लिए किधर जाएं? इसी तरह कुछ आदिवासी शिवा के साथ हुआ। झारखंड से पलायन करके उत्तर प्रदेश चला गया। वह अपने घर से एक ढेंकची,प्लेट और कम्बल लेकर चला था। इसी के सहारे महानायक अभिताभ बच्चन के जन्म स्थान इलाहाबाद चला गया।

सभी समानों को बोरा में कैद कर लिये। छोटा रसोई गैस के सिलेंडर को मकान मालिक को किराया के बदले में दे दिये। बड़ा सिलेंडर को बोरा में बंद कर दिये। अब एक कम्बल से दो कम्बन हो गया। दोनों दम्पति और अपने लाल के लिए कपड़े बनवाए। उसे भी बोरा में रख लिये। देखने में भारी भरकम लगने लगा। घर से निकलकर इलाहाबाद जंक्शन पहुंच गये। टिकट घर से टिकट कटाने शिवा चला गया। इलाहाबाद से पटना तक ही टिकट मिला। झारखंड तक टिकट लेने के लिए कलतक इंतजार करना पड़ता। सो पटना तक ही टिकट लिया गया।
टिकट कटाने के बाद हावड़ा जाने वाली रेल पर चढ़ने के पहले टिकट, पैसा और मोबाइल पॉकेट को संभालकर शिवा अपने पॉकेट में रख लिया। इसके बाद समान उठाकर जैसे ही ट्रेन पर चढ़ाना शुरू किया कि जीआरपी यमदूत बनकर सामने आ गया। यह यमदूत नहीं दिनदहारे डकैती करने वाला साबित हुआ।
शिवा ने बताया कि अवसर पर ‘शिव जी’ भी आकर नहीं बचा दिये। इलाहाबाद से पटना तक मां-बाप और लाल भूखे पटना जक्ंशन में आ गए। ट्रेन से उतरते ही आराम किया। उसके बाद झारखंड जाने की तैयारी करने लगा। उसनेएक ढेंकची,प्लेट और कढ़ाई को एक थैला में डाला दिया। बगल में समान बेचने वालों से पूछा कि यह बर्तन खरीदने वालों की दुकान कहां है? तब जाकर पता चला कि बेचारा शिवा के पास अठन्नी भी नहीं है। आसपास के लोगों ने हमदर्दी दिखाकर स्टेशन मास्टर के पास जाकर आपबीती बयान करने को कहा ताकि स्टेशन मास्टर रांची जाने के लिए टिकट बना दें।
बहुत देर तक इंतजार करने के बाद भी शिवा नहीं आया। उसके पटना से नालंदा चला गया। पटना रेलवे जंक्शन
से आलोक कुमार की रिपोर्ट।
आलोक कुमार