Wednesday 9 October 2013

लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के सभी आरोपी बरी



तड़ातड़ गोली के निशाने पर आये 58 लोगों के घरों में सन्नाटा

16 साल के अंदर भी पुलिस नहीं जुटा पायी साक्ष्य


जहानाबाद। इस जिले के मखदुमपुर रेलवे स्टेशन से महज 4 किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मणपुर  बाथे टोला है। यहीं पर 1 दिसम्बर,1997 की रात में खून की होली खेली गयी। 26 महिलाओं के साथ 58 दलित और महादलितों को मौत के घाट उतार दिया गया। 2 दिसम्बर को एफआईआर दर्ज किया गया। इस एफआईआर में 45 लोगों को आरोपी बनाया गया। इसमें 19 लोगों को छोड़ दिया। 7 अप्रैल,2010 को नीचली अदालत ने 26 को दोषी पाया। 16 को फांसी और 10 को आजीवन सजा सुना दी। आज 9 अक्तूबर,2013 को पटना उच्च न्यायालय ने सभी को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया। इस तरह 16 साल के बाद भी पुलिस साक्ष्य नहीं जुटा पायी।

कहा जाता है कि 1992 के बारा नरसंहार का बदला 1 दिसम्बर,1997 की रात 58 व्यक्तियों को मौत की नींद सुलाकर लिया गया। संपूर्ण प्रकरण को देखते हुए पटना उच्च न्यायालय ने आरोपियों को बरी कर दिया। इसके पहले भोजपुर में नरसंहार को अंजाम देने वाले व्यक्ति को भी बरी कर दिया गया था। इससे साबित होता है कि सरकारी मशीनरी दलित और महादलित विरोधी कार्य करके साक्ष्य को जुटा नहीं पाते हैं। इसका परिणाम सामने है। सरकार ने जस्टिस आमिर दास आयोग ने प्रकरण की जांच की थी। जो कारगर साबित नहीं हुआ। बाद में सरकार ने आयोग के जांच संबंधी क्रियाकलाप को विस्तार करके जांच ही क्लॉज कर दी थी।
अब सर्वोच्च न्यायालय को खुद ही संज्ञान लेकर नये सिरे से जांचकर आरोपियों को जेल के शिकंजे में बंद करने में सफल हो पायेगी। इसमें सरकार और न्यायापालिका के कार्य पर संदेह व्यक्त किया जा रहा है। चारों तरफ से प्रतिक्रिया आने लगी है। अब देखना है कि जिन 58 परिवार के लोग गोली के शिकार हुए थे। उनके निकलने वाली आंसुओं को पौछ पाता है।
                                                                      आलोक कुमार