मृतकों
के परिजनों को भी पूरी राशि नहीं मिली?
पटना। आखिर कबतक कोसी नदी के पूर्वी तटबंध पर हुए कटाव के कारणों और इनसे हुई भारी तबाही की रिपोर्ट आएगी। सवाल उठता है कि जांच आयोग किस प्रकार काम करता है, कि आजतक कोई रिपोर्ट ही नहीं दे सका। यह उसी की दास्तान है। कुसहा के समीप 18 अगस्त,2008 को कोसी नदी के पूर्वी तटबंध पर हुए कटाव के कारणों और इनसे हुई भारी तबाही को जांचने के लिए 10 सितंबर,
2008 को पटना उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश राजेश बालिया की अध्यक्षता में जांच आयोग बना। इसका चार बार एक्सटेंशन (अवधि विस्तार ) हुआ किन्तु अभी तक रिपोर्ट नहीं आई है। छह महीने में रिपोर्ट आ जानी थी।
आयोग का पहली बार अवधि विस्तार 9 मार्च,2010
तक के लिए हुआ। अवधि विस्तार इस शर्त के साथ किया गया था कि विस्तारित अवधि के अंतर्गत प्रतिवेदन निश्चित तौर पर सर्मपित कर दिया जाएगा। दूसरी बार अवधि विस्तार मार्च,2011
तक व तीसरी बार 30 सितम्बर,
2011 मे के लिए किया गया। आयोग के लिए सरकार ने विभिन्न श्रेणी के 13 पद स्वीकृत किए थे किन्तु आयोग ने बाद में जिला जज स्तर के एक व अन्य तीन स्थायी पदों के सृजन का अनुरोध किया। इसके आधार पर गृह विशेष विभाग ने सितम्बर,
2011 में जिला जज के 1, स्टोनोग्राफर के 1, लिपिक व रीडर के 1 व आदेशपाल का एक पद स्वीकृत किया। आयोग का चौथा बार अवधि विस्तार 31 मार्च,2012
के लिए हुआ।
आज भी कोसी में है कोहराम
हिमालय पहाड़ से निकली सप्त कोसी के प्रलय से कोसीवासियों के बीच आज भी कोहराम मचा हुआ है। अपने परिजनों के खो जाने के गम से लोग हलकान हैं। इस सदभे से पारिवार के लोग उभर ही रहे थे। कि इस बीच केन्द्र और राज्य सरकार की दुरंगी घोषणा के शिकार हो गये । प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष से प्रति मृतक के परिजन को मो0
1,00,000 एक लाख रूपये , आपदा प्रबंधन विभाग से प्रति मृतक के परिजनों को
1,00,000एक लाख रूपये और मुख्यमंत्री राहत कोष से प्रति मृतक के परिवार को मो0 50,000 पचास हजार रूपये की दर से राशि उपलब्ध कराने का एलान हुआ। केवल आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से एक लाख रू0 दिये गये। शेष प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष और मुख्यमंत्री राहत कोष लुभावने नारा प्रतीत हो गया।
इस समय प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष से फुट्टल कौड़ी भी परिजनों के घाव पर मलहम देने के लिए खर्च नहीं किया गया। सहायता कोष सफेद हाथी दीख रहा है। वही हाल मुख्य मंत्री राहत कोष का भी है। इससे सभी मृतकों के परिजनों को लाभान्वित नहीं कराया गया जा रहा। इतना जरूर है कि इस संदर्भ में आज भी पत्राचार जारी है और सत्याग्रह भी किया जाता है। यह कहावत चरितार्थ होगा कि बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां सुभान अल्लाह। इतना तो कहा जा सकता है कि कोसी बाढ़ त्रासदी के दौरान केन्द्र ओैर राज्य सरकार के अलावे गैर सरकारी संस्थाएं भी राहत और पुनर्वास कार्य करने का दंभ भरते रहे । अब उनके दर्द में सहायक नहीं हैं। अब उनकी परेशानी अधिक चौड़ी करने में लगे हैं।
कोसी प्रमंडल के आयुक्त को दिनांक
03.08.09 को जन संगठन एकता परिषद ने सूचना का अधिकार के तहत जानकारी मांगी कि कोसी बाढ़ से हो गयी मौत के उपरांत सरकारी निर्मित प्रावधान और सरकारी कानूनों की जानकारी दें। मृतकों की सूची उपलब्ध कराये। स्पष्ट की गयी कि सरकारी आकड़ों के मुताबिक मरने वालों की संख्या 239
है? या इससे अधिक की मौत हुई है सच्चाई क्या है? मौत की संख्या मापने का पैमाना क्या था? लोगों के द्वारा थाना में प्राथमिकी दर्ज करने से, पोस्टमार्टम करने से, जन प्रतिनिधियों के द्वारा अधिकृत पत्र देने से। कितनों दिनों की तयसीमा निर्धारित की गयी थी। क्या आज भी एलान/ दावा किया जा सकता है? जो जानकारी मांगी गयी तो वह काफी चौकाने वाला तथ्य साबित हुआ । 18 अगस्त 2008 को सिर्फ 239
व्यक्तियांे की बाढ़ में डूबने से मौत हो गयी है। उसके संदर्भ में सूचना है कि केवल सहरसा जिला में 41 व्यक्तियों की मौत हुई और मधेपुरा में 272
व्यक्तियों की मौत हो गयी है। इस तरह 313 की अकाल मौत हो गयी है। यहां पर सुपौल जिले का आकड़ा अप्राप्त है। इन दो जिलेे में कुल 313लोगों की असामयिक मौत हो गयी है।
कोसी बाढ़
2008 में अधिकारिक तौर से मधेपुरा जिले में कुल 272
की मृत्यु हुई है। 181
मृतकों को सरकारी अनुदान प्राप्त हुआ है। शेष 91 मृतकों की प्रक्रिया में है। 16 माह के बाद भी निपटारा नहीं हो पाया है। सरकारी प्रावधान के अनुसार मृतक के आश्रितों को आपदा राहत मौत की संख्या का पैमाना के संबंध में उल्लेखनीय है कि मौत की संख्या का पता थाना में दर्ज की गई प्राथमिकी, पोस्टमार्टम रिर्पोट तथा अंचल अधिकारी द्वारा स्थलीय जांचोपरांत प्राप्त प्रतिवेदन के आधार पर प्रेषित किया जाता है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष से एक लाख रू0 , मुख्यमंत्री राहत कोष से पचास हजार रू0 तथा आपदा प्रबंधन विभाग से एक लाख रू0 का अनुग्रह अनुदान राशि के रूप में भुगतान किया जाता है। इस तरह प्रति मृतक को ढाई लाख रूपये का अनुग्रह अनुदान का भुगतान होना है। जो नहीं हो रहा है । सहरसा जिले में 41 व्यक्तियों के बीच 41,00,000 लाख रूपये का अनुदान वितरित किया गया है। इन लोगों को मुख्यमंत्री राहत कोष से पचास हजार रू0 तथा प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष से एक लाख रू0 का अनुग्रह अनुदान राशि के रूप में भुगतान नहीं किया जा रहा है। इस तरह मौत के अनुदान पर विराम लग गया है।
मधेपुरा जिले में 181
मृतक के परिजनों को अनुग्रह अनुदान का भुगतान किया गया है। आपदा प्रबंधन विभाग से 141
मृतकों के परिजनों को एक लाख रूपये प्राप्त कराये गया है। इस तरह 1,41,00,000.00 रूपये का अनुदान राशि वितरण किया गया। और मुख्यमंत्री राहत कोष से 40 मृतक के परिजनों को पचास हजार रूपये अनुदान राशि वितरण किया गया है। इस तरह 20,00,000.00
रूपये वितरण किया गया । कुल मिलाकर 1,61,00,000.00 रूपये वितरण किया गया।
संपूर्ण रिपोर्ट सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त प्रतिवेदन पर आधारित है।
आलोक कुमार