Sunday 26 January 2014

अखबारों के फेर में बुरे फंसे पाठक


पटना बिहार में अंग्रेजी अखबारों के आगमन पर हंगामा नहीं मचाया जाता है। मगर हिन्दी अखबार के आगमन पर काफी बवाल मचाया जाता है। इस लिए यह सब होता है ताकि हिन्दी जुबान वाले पर दबदबा कायम कर सके। अभी सूबे में नम्बर 1 अखबार बनने को लेकर दावा प्रति दावा हिन्दुस्तान और दैनिक जागरण वाले कर रहे हैं। अभी-अभी बिहार में कदम रखने वाले दैनिक भास्कर मौन है।
राजधानी पटना में अखबार की कीमत कमः अभी समूचे बिहार की प्रतिनिधित्व करने वाली अखबार नहीं है। जिले-जिले की अखबार बन गयी है। संपूर्ण अखबार का मतबल सभी जिलों में एक समान अखबार से है। अभी तो अखबार गया, भागलपुर,मुजफ्फरपुर और पटना से प्रकाशित करायी जाती है। बिहार के अखबार तो क्षेत्रीय अखबार बनकर रह गयी है। दैनिक भास्कर ने अखबार की अधिक कीमत अधिक होने की बात उठायी थी। तो सभी अखबार के मालिकों ने अखबार की कीमत ढाई रू. कर दिये। पटना में ही अखबार की कीमत में कमी की गयी है। शेष सभी जिलों में पूर्ववत कीमत ही वसूली जा रही है। जहानाबाद जिले नागेन्द्र कुमार, भोजपुर जिले की सिंधु सिन्हा, गया जिले के अनिल पासवान,दरभंगा जिले के वीके सिंह आदि ने कहा कि अखबारों की कीमत 4 से 5 रू. तक वसूली जाती है।
लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ पत्रकारिता सब्जी दुकान परः आज राष्ट्र 65 वें गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। विधायिका,कार्यपालिका और न्यायपालिका के बाद पत्रकारिता को चतुर्थ स्तंभ कहा जाता है। चारों बेहतर ढंग से कार्य कर रहे हैं। वर्तमान समय में आम आदमी की अहमियत बढ़ गयी है। सभी लोग आम लोगों के पास ही जाना पंसद कर रहे हैं। एक आम आदमी सब्जी के साथ अखबार भी बेचना शुरू कर दिया है। अखबार की कीमत घटने के कारण अगर को थैला नहीं लाते हैं। तो अखबार में ही समान लपेटकर देने लगता है। यह दुकान दीघा थानान्तर्गत रामजीचक मोहल्ला में स्थित है। दुकानदार अखबार पढ़ते हैं। आसपास के लोग भी अखबार पढ़ लेते हैं। इसके बाद अखबार को हॅाकर वापस भी कर देते हैं।
आलोक कुमार