Thursday 9 January 2014

जानवरों के सहारे जानवरों की जिन्दगी

  

दानापुर। चार साल पहले लाली देवी के पति करीबन मांझी की मौत हो गयी थी। वहीं एक साल पहले कौशल्या देवी के पति जुगेन्द्र मांझी की मौत हो गयी। दोनों पति की मौत हो जाने से लाचार हो गयी हैं। नये सिरे से जीवन जीने के लिए बकरी पालन शुरू कर दिये। इधर बकरी चढ़ती है। उधर दोनों खुद जानवरों के गोबर उठाने चली जाती हैं। जहां जहां जानवर घुमकर घास घास खाती है। वहां वहां दोनों पहुंचकर गोबर उठाती रहती हैं। इसका मतलब बकरी पालन और जानवरों के गोबर के सहारे जानवरों की जिन्दगी बीता रही हैं। आजीविका के साधन के रूप में सयाने होने पर बकरी बेचकर आमदनी कमाना और गोबर उठाने के बाद गोईंठा बनाकर बेचना ही हैं। गोईंठा जलावन के रूप में इस्तेमाल करती हैं। अधिक गोईंठा होने पर बेच भी देती हैं। एक रू. में एक गंडा गोईंठा बिकता है। एक गंडा में 4 गोईंठा होता है।
दानापुर प्रखंडान्तर्गत ग्राम पंचायतों में मुखिया जी लोगों के मनमर्जी चल रहा है। यहां कबीर अत्येष्टि योजना को बेहतर ढंग से क्रियान्वित नहीं करने की खबर है। कौथवां ग्राम पंचायत के कौथवां मुसहरी की लाली देवी और कौशल्या देवी नामक विधवा ने बताया कि लाली देवी के पति करीमन मांझी की मौत के बाद कबीर अत्येष्टि योजना से लाभान्वित नहीं कराया गया। वहीं कौशल्या देवी के पति जुगेन्द्र मांझी की मौत के बाद योजना की 15 सौ रू.की राशि मिल गयी। इसके बाद परिवार लाभ योजना और लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन से महरूम कर दिया गया।
दोनों ने दानापुर अनुमंडल के अनुमंडल पदाधिकारी राहुल कुमार और दानापुर प्रखंड की बी.डी..डा. शोभा अग्रवाल से आग्रह किये हैं कि आप लोग आकर कौथवां मुसहरी की हालत देखे। जो सरकार के द्वारा मकान बनाया गया है। वह जर्जर हो चला है। निर्मित छत अबतब में गिरने को उतारू है। महादलित मुसहर समुदाय किसी तरह से जिन्दा बच रहे हैं। यहां पर विकास की रोशनी फैंलाने की जरूरत है। अधिकांश मुसहर सामाजिक सुरक्षा पेंशन और अन्य योजनाओं से महरूम हो रहे हैं। जो जमीन पर रहते हैं। उस जमीन का मालिकाहक देने के लिए वासगीत पर्चा निर्गत करने की भी जरूरी है।
आलोक कुमार