भारतीय
लोकतंत्र के पिछले
67 वर्ष का अनुभव
यह बताता है
कि सुपर हीरो
देश की समस्याओं
का समाधान नहीं
है बल्कि उसे
यहां की समस्याएं
बढ़ी ही है।
देश के आजादी
के समय नेतृत्वकर्ताओं
की भरमार थी
लेकिन पंडित जवाहरलाल
नेहरू एक सुपर
हीरो बनकर निकले।
उन्होंने देश की
समस्याओं को समझने
के चारो ओर
भ्रमण कर डिस्कॉभरी
ऑफ इंडिया नामक
पुस्तक भी लिखी
और विदेशों का
भ्रमण करने के
बाद वहां की
विकास नीतियों को
यहां लागू किया।
फलस्वरूप, समाज में
बडे़ पैमाने पर
आर्थिक असमानता बढ़ी। समाज
के कमजोर तबकों
के पास आजीविकास
के संसाधन थे
वे संसाधन हीन
होते गए और
देश का संसाधन
पूंजीपतियों के पास
केन्द्रित हो गया।
बावजूद इसके एक
समय ऐसा था
जब कहा जाता
था कि नेहरू
के बाद देश
का क्या होगा?
लेकिन फिर इसी
सुपर हीरो के
फर्मूला को आगे
बढ़ाते हुए इंदिरा
गांधी ने देश
का नेतृत्व संभाला।
एक
समय ऐसा आया
था जब भारत
देश में इंदिरा
गांधी से बड़ा
सुपर हीरो की
परिकल्पना भी नहीं
की जा सकती
थी? उन्होंने गरीबी
हटाओ का जबर्रदस्त
नारा दिया लेकिन
क्या हुआ? उनके
सामने बड़े-बड़े
कांग्रेसी नेता मुंह
खोलने की हिम्मत
नहीं जुटा पाते
थे। फलस्वरूप, यह
सुपर हीरो तानाशाही
में परिवर्तित हो
गया, जो स्वाभाविक
प्रक्रिया था। लेकिन
इंदिरा गांधी के खिलाफ
ही जयप्रकाश नारायण
के नेतृत्व में
आमजनता की गोलबंदी
ने उसे धाराशाही
कर दिया। जे.पी. आंदोलन
के समय ऐसा
स्थिति बन गया
था मानो लग
रहा था कि
देश में सबकुछ
बदल जायेगी। लेकिन
ठीक उसका उल्टा
हुआ। आज देश
में सबसे ज्यादा
भ्रष्ट नेताओं का तार
जे.पी. आंदोलन
से जुड़ी नहीं
है क्या? वहीं
देश में भ्रष्ट
एनजीओ का जाल
बिछानेवाले लोग भी
कौन है यह
किसी से छुपी
हुई है क्या?
इंदिरा गांधी के बाद
राजीव गांधी के
रूप में फिर
से देश को
सुपर हीरो मिला,
जिन्होंने पहली बार
जनता को बताया
कि केन्द्र सरकार
उनके लिए एक
रूपये भेजती है
लेकिन उनके पास
मात्र 15 पैसा ही
पहुंचता। आश्चार्य की बात
यह है कि
राजीव गांधी भी
इस समस्या का
समाधान नहीं निकल
सके और उनके
बेटे राहुल गांधी
को भी इसी
बात को दुहराना
पड़ रहा है।
बल्कि अब तो
हद यह हो
गई है कि
कोई भी एक
सरकारी योजना भ्रष्टाचार के
शिकार हुए बिना
नहीं बची है
और अरबों रूपये
खर्च करने के
बाद भी एक
भी सरकारी योजना
देश में नही
है जो पूर्णरूप
से सफल हो,
जिसपर इंफ और
बट न लगा
हो।
देश
का अगला तथाकथित
सुपर हीरो नरेन्द्र
मोदी तो कांग्रेस
भगाओ देश बचाओ,
कांग्रेस भारत छोड़ो
और कांग्रेस को
बीमारी का जड़
तक कहा है।
लेकिन हमें यह
समझना चाहिए कि
कांग्रेस पाटी के
अलावे देश में
जनता पार्टी के
नेता मोरारजी देशाई,
भाजपा नेता अटल
बिहारी बाजपेयी जैसे सुपर
हीरो के हाथों
में सत्ता की
चाभी दी गई
लेकिन क्या समस्याएं
छुमंतर हो गई
थी? जब नरेन्द्र
मोदी को देश
बचाने वाला एकमात्र
सुपर हीरो के
तौर पर पेश
किया जा रहा
है तो हमें
यह भी देखना
चाहिए कि गुजरात
राज्य जहां वे
पिछले 15 वर्षों से सरकार
चला रहे है
क्या वहां अब
कोई समस्या नहीं
है? गुजरात के
ग्रामीण इलाकों में शिक्षा,
स्वस्थ्य, पेयजल, भूखमरी और
गरीबी की जो
स्थिति है क्या
किसी से छुपी
हुई है? यह
सुपर हीरो वहां
की मूलभूत समस्याओं
को समाधान अपनी
जादू की छड़ी
से क्यों नही
कर रहा है?
या वह जानबूझकर
समस्याओं को बरकरार
रखना चाहता है?
हमें
यह भी समझना
होगा कि आप
पाटी के नेता
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली
की जनता से
चुनाव में जो
वादा किया है
क्या वे उसमें
सचमुच खरा उतरेंगे?
क्या वे प्रत्येक
परिवार को 700 लीटर पानी
मुफ्त में देंगे?
क्या वे बिजली
की दामों में
70 प्रतिशत कम करेंगे?
और अगर करेंगे
भी तो उसकी
भरपाई के लिए
कहां से अतिरिक्त
धन इक्टठा करेंगे?
ऐसे देखा जाये
तो अपने जमाने
में एन टी
रामाराव, जे जयललिता,
ममता बनर्जी, प्रफुल्ल
कुमार महंत, करूणानिधि,
मुलायम सिंह यादव,
लाल प्रसाद यादव,
बीजू पाटनायक और
नीतिश कुमार भी
सुपर हीरो के
तौर पर चर्चित
रहे लेकिन क्या
इनके शासनकाल में
उन राज्यों की
समस्याओं का समाधान
हो गया? भाजपा
जो एक समय
नीतिश कुमार को
बिहार का सुपर
हीरो के रूप
में पेश कर
रही थी आज
उनपर उंगलियां क्यों
उठा रही है?
इसी तरह पिछले
लोकसभा चुनाव तक ऐसा
महौल बनाया गया
था कि 2014 के
आम चुनाव के
लिए प्रधानमंत्री उम्मीदवार
एकमात्र राहुल गांधी ही
हैं लेकिन यूपीए-2
के शासन शैली
ने इस गुबारे
का हवा ही
निकाल दिया और
अब उसी शैली
में नरेन्द्र मोदी
को देश के
सामने प्रस्तुत किया
जा रहा है,
जिसकी कभी भी
हवा निकल सकती
है क्योंकि पहले
भी ऐसा हो
चुका है। 2004 के
आम चुनाव में
अटल बिहारी बाजपेयी
को देश एक
मात्र मसीहा के
रूप में दिखाया
गया था लेकिन
नतीजा क्या निकला?
भारत
की आजादी से
लेकर अबतक देश
में कई सुपर
हीरो पैदा हुए
और खत्म भी
हो गए, समास्याओं
के समाधान हेतु
खरबों रूपये खर्च
किये गये, भारत
के संविधान में
कई संशोधन किया
गया, नये-नये
कानूनी व नीतियां
लायी गयी और
राजनीति का स्वरूप
में भी बदलाव
आयी लेकिन समस्याएं
घटने के बजाये
बढ़ती ही जा
रही है। यह
इसलिए हो रहा
है क्योंकि भारत
का बहुसंख्यक लोग
ऐसा समाज का
प्रतिनिधित्व करने हैं
जो व्यक्तिवादी सोच
पर आधारित है
इसलिए सबकुछ एक
व्यक्ति के इर्द-गिर्द घुमती रहती
है और बहुसंख्यक
लोग अपना दयित्व
नहीं निभाते हैं।
इस तरह से
नयी-नयी समस्याएं
पैदा होती हैं
और मौजूदा समस्याएं
भी बढ़ती जाती
है और एक
बार फिर लोग
वहीं फिल्मी शैली
में सुपर हीरो
की खोज में
यह सोचकर जुट
जाते हैं कि
अब उनसे कुछ
नहीं हो सकता
है और उनके
पास एक ही
विकल्प है और
वह है सुपर
हीरो।
लेकिन
हमें यह समझाना
चाहिए कि भारतीय
लोकतंत्र का नेतृत्व
जबतक सामुहिक नहीं
होगा, सरकारी ओहदे
पर बैठे हुए
लोग ईमानदारी से
काम नहीं करेंगे
और मैंगो पीपुल
अपना जिम्मेवारी नहीं
निभायेंगे तबतक हम
कभी भी अपने
समस्याओं से निजाद
नहीं पायेंगे। भारतीय
लोकतंत्र को सक्षम
नेतृत्व चाहिए, जो सभी
को लेकर चले,
स्वयं का गुनगाण
करनेवाला सुपर हीरो
देश का कभी
भला नहीं कर
सकता है। आज
अगर लोकतंत्र सही
मायने में जिन्दा
है तो बस
इसलिए क्योंकि पिछले
छः दशकों से
लगातार ठगे जाने
के बावजूद यहां
के किसान, मजदूर,
आदिवासी, दलित और
गरीब लोग लगातार
इस उम्मीद में
अपना वोट देते
हैं कि एक
दिन उनके लिए
भी सूर्योदय होगा।
लेकिन क्या मैंगो
पीपुल के उम्मीद
से नेताओं को
कुछ लेना देना
भी है?
- ग्लैडसन
डुंगडुंग मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं।