राजधानी के ही समीप है पश्चिमी उत्तरी मैनपुरा ग्राम पंचायत। फिलवक्त मैनपुरा ग्राम पंचायत के मुखिया निलेश कुमार हैं। पंचायत के मुखिया ने जिस संभावित भय के कारण शराब की दुकानों को बंद करवाने का आग्रह किए थे। कुर्जीवासी उससे बेहाल होने लगे हैं। अभी एक टेम्पों चालक बेहाल है। इसके कारण टेम्पों चालक राजेश चौधरी की जिंदगी में ब्रेक लग गयी है।
मैनपुरा ग्राम पंचायत के पूर्व मुखिया भाई धमेन्द्र की दुकान के पीछे राजेश चौधरी का घर है। वह किसी तरह से एक घर ढलवा सका है। उसी छत पर राजेश चौधरी बैठा रहता है। चलना-फिरना नहीं हो पाता है। बस समझ लीजिए कि टेम्पों चालक की जिंदगी में लग गयी ब्रेक। महादलित परिवार के घर में कोई कमाऊं व्यक्ति नहीं रहने के कारण विकास का रफ्तार थम गया। उम्र के ढलान के बाद भी बुजुर्ग महिला काम करने जाती हैं। पुत्र वधू भी जरूरत पड़ने पर मासूम बच्चे को साथ में लेकर काम करने जाती हैं। दोनों पटना दियारा क्षेत्र में खेत में काम करने जाती हैं। किसान मात्रः 50 रूपए देकर टरका देते हैं। महिलाओं की खुबसूरती को चार चांद लगाने वाले मांग टीका बेच दिया गया। अब किसानों ने बुजुर्ग महिला के माथे पर टीका लगा दिया है कि वह जल्दी-जल्दी पैसे की मांग करती हैं। उसी तरह घर की छत पर बैठकर राजेश चौधरी भी किसी मसीहा की तलाश करता है। जो नदी के मझधार में फंस गयी जिदंगी को किनारा ले दें।
खैर, कुर्जी निवासी महरूम राजेन्द्र चौधरी के पुत्र राजेश चौधरी को जानलेवा टी.बी.बीमारी हो गयी है। 27 वर्षीय राजेश को टेम्पों चालन विरासत से प्राप्त हुआ है। आरंभ में उनके पिता राजेन्द्र चौधरी वेंकौंस कम्पनी में कार्यरत थे। ठीक से वेतनादि नहीं मिलने के कारण वेंकौंस कम्पनी की नौकरी छोड़ने के बाद टेम्पों चलाने लगे। बाबू जी के हाथ और हुनर बेटा जी को प्राप्त हुआ। बेटा जी कमाते थे और गमाते भी थे। घर में खर्ची देने के बाद रकम को सीधे शराब भट्टी में लूटा आते। राजेश चौधरी धीरे-धीरे रोग की चपेट में आ गए। आज तीन साल से टी.बी.रोग से बेहाल हैं।
मजे की बात है कि परिवार वालों ने उसे टी.बी.रोग से निदान करवाने के लिए बेहतर जगह पर कदम बढ़ाए। कुर्जी के डा.सुनील कुमार के पास ले गए। दवा शुरू की गयी। यहां से दवा खाने के बाद ठीक हुआ तो दवा सेवन करना बंद कर दिया। कुछ माह के बाद पुनः बीमार पड़ा। अबकी बार कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास समिति में ले गए। यहां पर संचालित डॉट्स केन्द्र से दवा शुरू की गयी। यहां की दवाई खाने के बाद कुछ ठीक हुआ तो पुनः दवा खाना ही छोड़ दिया। इसके बाद अगमकुआं स्थित टी.बी.अस्पताल में गया। फिर वहीं बात हुई। फिर डाक्टर सुनील कुमार के क्लिनिक पर दस्तक दिया। इसके बाद पी.एम.सी.एच.चला गया। यहां से लौटने के बाद घर पर काफी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। इसके बाद दीघा हाट पर स्थित डाक्टर केशव के क्लिनिक में गया। अभी डाक्टर केशव के पास से दवा-दारू चल रहा है। इस तरह दवा खाओं और कुछ बेहतर होने के बाद दवा छोड़ दो और बीमार पड़ने के बाद फिर दवा शुरू करो। इस तरह एक बीमारी का इलाज बदल-बदलकर 6 जगहों से किया।
जानकार लोगों का कहना है कि डॉट्स ट्रीटमेंट के तहत प्रावधान बनाया गया है कि टी.बी.मरीज को स्वास्थ्यकर्मी अथवा जानकार व्यक्ति के सामने ही नियमित दवा ढंग से दवा सेवन करानी है। सरकार ने जानलेवा टी.बी. को उन्मूलन करने की दिशा में कदम उठाए है। गांवघर में आशा कार्यकर्ताओं टी.बी.मरीजों को ढूढ़ कर निकालना और मरीज को चिकित्सक से दिखाने के बाद नियमित दवा खिलाने की जिम्मेवारी सौंपी गयी है। इसके लिए आशा कार्यकर्ताओं को राशि भी दी जाती है। आशा स्वास्थ्य प्रक्षेत्र के लिए रोल मॉडल है। स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में जो सुधार आया है,उसका काफी श्रेय आशा का है। इस के आलोक में स्वास्थ्य विभाग ने पैकेज दे रखा है। एक बंध्याकरण करवाने पर 150 रूपए, एक नसबंदी करवाने पर 200 रूपए, टीकाकरण सत्र के दौरान 21 बच्चों का एक टीकाकरण करवाने पर 200 रूपए,टी.बी.नियंत्रण (डॉट्स )के तहत प्रति रोगी 250 रूपए, कुष्ठ रोगी लाने पर 300 रूपए, मोतियाबिन्द ऑपरेशन करवाने पर 175रूपए, कालाजार रोगी को लाने पर 100 रूपए, गांवघर में सेनिटरी नैपकिन का वितरण करने पर 1 रू. (पैक ), किशोर के साथ बैठक करने पर 50 रूपए (बैठक ),मृत्यु निबंधन करवाने पर 50रूपए (प्रति निबंधन ) पोलियो टीकाकरणा 75 रूपए (प्रति दिन ) और आशा दिवस में भागीदारी करने पर 100 रूपए देय होगा। इसके अलावे आदर्श दंपति योजना के तहत परिवार नियोजन सुनिश्चित करवा देने पर आशा को 1000 रूपए प्रोत्साहन राशि मिलनी है। शादी के दो वर्ष बाद पहला जन्म सुनिश्चित कराने पर 500 और पहले बच्चे के जन्म में तीन वर्ष का अंतराल सुनिश्चित कराने पर 500 रूपए आशा को मिलना तय है। सुरक्षित प्रसव कराने के लिए आशा को गांवों में 600 रूपए और शहरों में 200 रूपए प्रोत्साहन राशि मिलती है।
टेम्पों चालक की पत्नी मंजू देवी और रोगग्रस्त की मां कौशल्या देवी परेशान हैं। मंजू देवी और राजेश चौधरी के दो संतान हैं। चांदनी कुमारी सात साल और कविता कुमारी तीन साल की हैं। चांदनी कुमारी पढ़ने जाती थीं। हालात खराब होने से पढ़ाई छुट गयी है। कौशल्या देवी कहती हैं कि पटना दियारा क्षेत्र के खेत में कार्य करने जाती हैं। मजदूरी में 80 रूपए देते हैं। नियमित मजदूरी नहीं मिलती है। इसी से किसी तरह से दो जून की रोटी जुगाड़ होती है। अभी 50 हजार रूपए कर्ज हो गया है। एक हजार रूपए का 100 रूपए व्याज देना पड़ता है। पुत्र की बीमारी के बारे में कहती हैं कि टी.बी. के कीटाणुओं ने बाये और दाये फेफड़ों पर कब्जा कर लिए थे। अभी दवा-दारू करने के बाद दाये फेफड़े में कीटाणु बरकरार हैं। लोग हाई प्रोटीन डायट देने पर जोर देते हैं। साहब जो जेवरात था उसे बेच दिया गया है। बस घर ही शेष है।
कुर्जी होली फैमिली हॉस्पिटल में पोषाहार का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी जुली कुमारी का कहना है कि हम अपने दैनिक आहार में प्रोटीन प्राप्त कर सकते हैं। दाल खाने से प्रोटीन प्राप्त हो सकता है। मैं जानती हूं कि इसके पास पर्याप्त रकम नहीं है। इसी से दाल आदि सेवन करके प्रोटीन को प्राप्त किया जा सकता है।
आलोक कुमार
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