मोकामा। बिहार के प्रथम महाधर्माध्यक्ष बी.जे.ओस्ता के निधन से मर्माहत ईसाई समुदाय मोकामा की महारानी मां मरियम की नगरी में पहुंचे। एक जगह जुटने के कारण श्रद्धालुगण महाधर्माध्यक्ष के कृत्य और व्यक्तिव्य पर प्रकाश डालते रहे। उनके द्वारा पटना महाधर्मप्रांत के कार्यक्षेत्र में किये गये विकास और कल्याण के कार्य को लेकर चर्चा चलती रही।
इसके अलावे मुख्य तौर पर प्रत्येक साल मोकामा की महारानी मां मरियम के आदर में होने वाली तीर्थ यात्रा में श्रद्धालु शीर्ष झुकाते रहे। आखिर क्यों न मोकामा जाकर मां मरियम के सामने नस्तमस्तक होंगे? सालभर श्रद्धालु मां मरियम के आंचल समस्याओं को रखते हैं। श्रद्धालु मन्नत भी मानते हैं। मन माफिक मुराद पूर्ण होने पर तीर्थ यात्रा करने जाते हैं। आज तड़के से ही हजारों की संख्या में मोकामा नगरी श्रद्धालु पहुंचना शुरू कर दिये। सुबह से प्रार्थना सभा आयोजित की गयी। श्रद्धालु अपने समय के अनुसार प्रार्थना सभा में भाग लेते रहें। रोगग्रस्त लोगों के लिए विशेष प्रार्थना की गयी।
दोपहर में मोकामा की महारानी मां मरियम की झांकी निकली। मां मरियम की प्रतिमा को पालकी पर रखा जाता है। इसे कंधा लगाने वालों में हौड़ लग जाती है। सभी लोग चाहते हैं कि किसी तरह से पालकी को कंधा लगा सके। इसके पीछे हजारों की संख्या में श्रद्धालु झांकी के पीछे चलते और प्रार्थना करते आगे बढ़ते चले। मोकामा की महारानी के भव्य मंदिर के पास पहुंचकर धार्मिक अनुष्ठान अदा की गयी। धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होने वालों में बिहार के 38 जिले के अलावे पड़ोसी प्रदेश झारखंड और यूपी से ही लोग थे।
उल्लेखनीय है कि पश्चिमी मैनपुरा ग्राम पंचायत के पूर्व मुखिया भाई धर्मेंन्द के द्वारा 14 साल से श्रद्धालुओं को सुरक्षित ले जाने और ले आने की व्यवस्था की जाती है। सभी लोगों को बिना किराया के ही सुविधा उपलब्ध कराते हैं। मजहब नहीं सीखाता आपस में बैर रखना की तर्ज पर कार्य कर रहे हैं। मां मरियम के द्वार सभी लोगों के लिए खुला रहता है। यहां सिर्फ ईसाई धर्मावलम्बी ही नहीं जाते हैं। सभी धर्म के लोग जाते हैं। जो श्रद्धा से मां मरियम से उम्मीद करते हैं। उनको मां मरियम निराश नहीं करती हैं। अपने पुत्र येसु ख्रीस्त से कहकर सारी समस्याओं का समाधान करवा लेती हैं। मां-पुत्र के सहयोग से लोगों का कल्याण और विकास हो रहा है।
यहां पर आने वालों की सुविधा को ख्याल में रखकर खाने-पीने की दुकान खोल दी जाती है। लोग अपने इच्छा से भोजनादि करते हैं। धार्मिक कितातों एवं अन्य सामग्री की बिक्री की जाती है। एक तरह से पिकनिक स्पोट भी बन जाता है। कुल मिलाकर धार्मिकता ही भारी पड़ता है।
आलोक कुमार