गया। आम आदमी ने केन्द्रीय सरकार से सीधे तौर से कहना शुरू कर दिये हैं कि आपने वर्ष 2008 में राश्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई ) को लागू किया हैं। प्रारंभिक समय में स्मार्ट कार्ड के लिए 30 रू. लिया गया। इससे गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवार के 5 व्यक्तियों को इलाज किया जाता था। उन्हें अस्पताल में भर्त्ती करके इलाज किया जाता है। एक साल के अंदर 30 हजार रू.का बीमा होता है। वह कोई बीमा कम्पनी बीमा करते हैं। केन्द्र सरकार प्रीमियम देती है। अब जबकि 60 रू. में 64 केबी का स्मार्ट कार्ड निर्गत होगा। अब सरकार से मांग है कि 60 रू. में 64 केबी के स्मार्ट कार्ड से 6 सदस्यों को 60 हजार रू.तक का इलाज करवाया जाए।
पांच साल के अंदर ही सरकार रंग दिखाने लगीः केन्द्र सरकार ने स्मार्ट कार्ड की 30 रू. को बढ़ाकर सीधे दोेगुना कर 60 रू. कर दिया गया। स्मार्ट कार्ड की कीमत दोगुना कर देने से सीधे गरीबों की जेब में डकैती कर दी गयी है। अगर सरकार ने 30 रू. में 30 हजार रू. का इलाज करवाने की सुविधा दे रखी है। तो 60 रू. में 60 हजार रू. का इलाज करवाने की सुविधा में भी इजाफा कर देनी चाहिए थी।
सरकार के द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसारः गरीबी रेखा के नीचे वाले परिवार हैं। उनको स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध करायी जाए। केन्द्र सरकार ने बीमा कम्पनी के साथ समझौता कर रखी है। एक परिवार के 5 सदस्यों को स्मार्ट कार्ड 30 रू. में बनाना है। 30 रू. देकर स्मार्ट कार्डधारी को अस्पताल में भर्त्ती करके 30 हजार रू.तक का इलाज करना है। तीस हजार रू.में एक जन अथवा 4 अन्य पर खर्च किया जाता है। अब 30 रू.देकर स्मार्ट कार्ड नहीं बनेगा। इसकी कीमत दोगुना कर दी गयी है। अब गरीबों को ही स्मार्ट कार्ड के लिए 60 रू. देना पड़ेगा। भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के द्वारा जारी आदेश में कहा गया है कि स्मार्ट कार्ड बनाने में अधिक खर्च होता है। इसी कारण से कीमत में बढ़ोतरी की गयी है। अगर बढ़ी राशि को राज्य सरकार वहन करें तो को आपत्ति नहीं है। ना है।
बिहार के अंदर पैक्स के द्वारा एनजीओ को सहयोगः आरएसबीवाई के बारे में आम लोगों के बीच में जागरूकता प्रसार करें। पैक्स ने प्रगति ग्रामीण विकास समिति को भूमि अधिकार और स्वास्थ्य के मुद्दे पर कार्य करने के लिए सहयोग प्रदान किया है। प्रगति ग्रामीण विकास समिति
के परियोजना समन्वयक अनिमेश निरंजन का कहना है कि केन्द्र सरकार ने बीमा कम्पनियों के दबाव में आकर एक पक्षीय समझौता कर ली है। आप 30 रू. में स्मार्ट कार्ड बनाकर 30 हजार रू. का इलाज अस्पताल में करवा रहे थे। बीमा कम्पनियों का कहना है कि स्मार्ट कार्ड बनाने में अधिक खर्च करना पड़ता है। तब बीमा कम्पनी ने 60 रू. कर दिये । तब केन्द्र सरकार को चाहिए कि मंहगाई डायन को देखते हुए 60 हजार रू. बीमा कम्पनी इलाज के सिलसिले में खर्च करें। 5 के बदले में 6 सदस्यों को इलाज किया जाए। इस तरह 6 सदस्यों को 60 रू. में 60 हजार रू.में इलाज हो सकेगा। आरएसबीवाई के तहत निर्गत स्मार्ट कार्ड से केवल इन डोर मरीजों पर ही खर्च करने का प्रावधान किया गया है। परिवार के सदस्य मामूली रूप से बीमार पड़ते हैं तो उनको स्मार्ट कार्ड के द्वारा आउट डोर में चिकित्सों से परामर्श और दवा दारू की सुविधा नहीं दी जाती है। इसके कारण गांवघर में स्मार्ट कार्ड के प्रति लोगों का मोहभंग होने लगा है। बीमार होकर भर्त्ती नहीं होने की दिशा में 60 रू. में 64 केबी के स्मार्ट कार्ड बनवाकर क्या फायदा होगा? इस कार्ड को गतिशील बनाए रखने की दिशा में कदम उठाने की जरूरत है।
आलोक कुमार