Friday 16 May 2014

हां,हां, आप विक्रांत से सबक ले सकते हैं!


पटना। जी हां, यक्ष्मा यानी टी.बी.बीमारी जानलेवा नहीं रह गया है। हां, केवल समय पर टी.बी.रोग की पहचान हो जाएं। आजकल सुशासन सरकार की जनता दरबार की तरह स्वास्थ्य केन्द्रों पर दवा उपलब्ध है। आपको स्वास्थ्य केन्द्र में जाना है। वहां पर नाम रजिस्टर करवाना है। बलगम और एक्स-रे जांच करने के जांचोपरांत दवा की उपलब्धता करा दी जाएगी।दवा देने वाले स्वास्थ्यकर्मी के मार्गदर्शन में दवा को ग्रहण करना है। हां, ध्यान रहे कि जबतक चिकित्सक अथवा स्वास्थ्यकर्मी दवा सेवन करने की मनाही नहीं करते,तबतक नियमित दवा सेवन करना ही करना है। ऐसा करने से जानलेवा टी.बी.बीमारी का खौफ रसातल में चला जाएगा।
आप आप ध्यान से पढ़े। पटना नगर निगम अन्तर्गत वार्ड नम्बर 1 में शबरी कॉलोनी है। इसे दीघा मुसहरी भी कहा जाता है। इसी मुसहरी में विक्रांत कुमार का घर है। वह लम्बे समय तक ग्लैंड टी.बी.से बेहाल था। ग्लैंड टी.बी.का प्रसार गले से उतरकर छाती तक पसर गया था। वह घांव के कारण वस्त्र नहीं पहन सकता था। घांव को जमाने से छुपाने के लिए चादर लपेटकर रहता था। वह कई बार ग्लैंड टी.बी.की दवाई खाए और कुछ ठीक होने के बाद दवा को ही परित्याग कर देता। इसके कारण दवा देने वाले और उसके परिजन परेशान हो गए थे। अन्ततः भगवान ने विक्रांत कुमार को सुबुद्धि दिए। वह नियमित दवा सेवन किया। आखिरकार परिणाम सामने है। वह हाईटेक हो गया है। पॉकेट में मोबाइल रखा है। मोबाइल को इयर फोन से जोड़कर आधुनिक गानों से लुफ्त उठाते रहता है।
महादलित मुसहर समुदाय के लोग दीघा मुसहरी में रहते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि हम गरीबी में जन्म लेते हैं और बुढ़ापा देखे बिना ही जवान में ही मर जाते हैं। हमलोग जन प्रतिनिधियों की तकदीर और तस्वीर बनाते हैं। परन्तु खुद की तकदीर और तस्वीर नहीं बना पाते हैं। रोजगार के अभाव में महिलाएं महुंआ और मिठ्ठा की शराब बनाती हैं।बच्चे रद्दी कागज आदि चुनने जाते हैं। नौजवान ठेका पर जमकर काम करते हैं। मेहनती काम करने के नाम पर शराब डकारते हैं। इसी श्रेणी में विक्रांत कुमार के मां और बाप हैं। जो शराबखोर हैं। विक्रांत पर ध्यान ही नहीं देते हैं। विक्रांत भी रद्दी कागज आदि चुनकर खुद खाता है और मां-बाप को भी खिलाता है।
कुर्जी होली फैमिली अस्पताल के सामुदायिक स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास केन्द्र के द्वारा मुसहरी में सामाजिक कार्य किया जाता था। उसी समय विक्रात की दशा देखकर दवा दी गयी। वहां पर खाता था और छोड़ देता था। इसके कारण केन्द्र के स्वास्थ्यकर्मी विक्रांत से खफा हो जाते। टी.बी.की दवा नियमित सेवन नहीं करने से टी.बी.के जीवाणु शक्तिशाली होते चले जाते हैं। फिर से दवा चालू करते वक्त हाई डोज चलाना पड़ता है। जो शरीर के वजन और उम्र के अनुसार ही दिया जाता है।
खैर, अब विक्रांत के शरीर से दुःख भाग गया है। अब वह साहब की तरह शर्ट-पैंट पहनकर घुमफिर सक रहा है। उसमें अब नयापन आ गया है। यूं कहे कि न्यू लाइफ मिल गया है। अब मां-बाप शादी की तैयारी करने में जुट गए हैं।
आलोक कुमार

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