Sunday 11 May 2014

पंचायत रोजगार सेवकों की सिर पर बर्खास्ती की लटकती तलवार




गया।यह कैसा सुशासन है ? यहां पर एक मंत्री पदोन्नत करने की बात करता है। तो दूसरे मंत्री बर्खास्त करने पर ही उतारू हैं। इसको लेकर पदोन्नत की आशा पालने वाले और बर्खास्तगी की तलवार सिर पर लटकते देखने वाले परेशान हैं। प्रभावितों को खाना निगलने और ही उगलते बन रहा है। यह परिस्थिति बिहार सरकार के दोनों मंत्रियों के द्वारा अलग - अगल परस्पर विरोधी बयान देने के बाद सामने आया है।
राजधानी में स्थित श्रीकृष्णा स्मारक सभागार में फरवरी , 2014 को बिहार सरकार के पंचायती राज मंत्री भीम सिंह ने राज्य के सभी पंचायत रोजगार सेवकों को पंचायत सचिव का प्रभाव देने की घोषणा किए थे। तो ग्रामीण विकास मंत्री नीतीश मिश्रा ने पंचायत रोजगार सेवक को बर्खास्त करने का आदेश निर्गत कर रहे हैं। इन दोनों मंत्रियों के कार्य व्यवहार से सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खामोश हैं।
कटिहार जिले के एक पंचायत रोजगार सेवक सुधांशु चौधरी ने सोशल नेटवर्किग फेसबुक सभी पंचायत रोजगार सेवकों को मनरेगा मित्रों को स्मरण करवाते हैं कि पंचायती राज मंत्री ने पंचायत सचिव का प्रभार देने का सब्जबाग दिखाया था। अब अगस्त , 2007 में बहाल पंचायत रोजगार सेवकों पर वज्रपात होने वाला है। उन्होंने सवाल उठाया है कि यह कौन सा न्याय के साथ बिकास हो रहा है ? हमलोगों ने किसी तरह की कोई गलती की है तब भी 7 साल की नौकरी करने के बाद मंत्री के बर्खास्ती करने का यह फरमान जारी कर दिया गया ? इस तरह के व्यवहार करके ये मंत्री बिहारी नवयुवकों के साथ कौन सा इंसाफ कर रहे हैं ? एक तरफ मुख्यमंत्री नीतीश जी बिहारी प्रतिभा का गुणगान करते थकते नहीं हैं , तो दूसरी तरफ बिहारी नवयुवकों के साथ कौन सा इंसाफ किया जा रहा है ?
बिहार के सभी जिलों के पंचायतों में पंचायत रोजगार सेवक को बहाल किया गया है। इनको मानदेय 5400 रू . देकर ही मान बढ़ाया जाता है। इनको केन्द्रीय सरकार की बहुआंकाक्षी मनरेगा में जोरदार कार्य करना है। इनके बल पर संपूर्ण देश में मनरेगा में पारदर्शिता के लिए प्रथम पुरस्कार मिला है। गा्रमीण विकास मंत्री नीतीश मिश्रा को स्मरण दिलाया कि आपके पिताश्री डा . जगरनाथ मिश्रा ने अपने कार्यकाल में बिहार के सभी कर्मचारियों का भविष्य बनाया गया जिसे आज भी लोग नहीं भूले नहीं हैं। आप अपने पिता जी के पदचिन्हों पर चलकर बिहार के नवयुवकों का भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। मनरेगा कर्मियों ने विपरित परस्थिति में भी बेहतरीन काम किया है।
मात्रः 12500 मानव दिवस नहीं हो सका तो इसके लिए पंचायत रोजगार सेवक ही किस तरह और कैसे दोषी हो गए ? मनरेगा के प्रावधान के अनुसार मनरेगा जॉबकार्डधारी काम की मांग करते हैं। अगर मानव दिवस सृजन हो सका और मनरेगा श्रमिकों को काम नहीं दिया जा सका। तो इसका दोष पंचायत रोजगार सेवक के माथे पर ही गढ़ दिया गया है। यह सबूत भी नहीं दे पा रहे है कि मनरेगा श्रमिक काम की मांग किए और काम उपलब्ध नहीं करवाया जा सका।   आजतक बिहार में किसी मनरेगा श्रमिक को बेरोजगारी भत्ता नहीं दिया गया है। तो आप किस आधार पर कहते हैं कि इसका दोषी पंचायत रोजगार सेवक ही है। हम लोगों ने जॉबकार्डधारियों के अनुसार गांवघर में प्रति श्रमिकों को 100 दिनों तक रोजगार दिलवाने के लिए गांवघर में योजना तैयार कर रखा है।
Alok Kumar



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