Wednesday 7 May 2014

कौन दिलवाएंगा न्याय नाजुक आंख पर कठोर मिट्टी का ढेला गिर जाने वाले महादलित को ?


मनरेगा ने एक व्यक्ति शिवलाल मांझी की आंख की रोशनी छीन ली। वह अपने घर के द्वार पर ही बैठा रहता है। जब कोई गहन रूप से वार्ता करता तो वह आपबीती बयान करता है। सुनकर आश्चर्य और दुख लगता है कि मनरेगा के प्रावधान के अनुसार लाभ नहीं पहुंचाया गया। 
केन्द्र सरकार के द्वारा अपने नागरिकों को विभिन्न तरह के अधिकार दिए हैं। सूचना का अधिकार 2005, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा 2005, वनाधिकार कानून 2006 और शिक्षा का अधिकार 2009 उल्लेखनीय है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 के तहत प्रावधान है कि ' काम से उपजी या काम के दौरान दुर्घटना से ' घायल होता / होती है उसे ' योजना के तहत स्वीकृत निःशुल्क चिकित्सा - उपचार का हक होगा ' अगर उसे अस्पताल में दाखिल होना पड़ता है तो उसे अस्पताल में रहने , उपचार , दवाओं का खर्च और दैनिक भत्ता पाने का हक होगा। यह दैनिक भत्ता उसकी ' मजदूरी दर से कम से कम आधा होगा। ' ऐसे ही प्रावधान उन बच्चों के लिए भी है जो उनके साथ कार्य स्थल पर आते हैं। दुर्घटनावश मृत्यु या स्थायी विकलांगता की सूरत में उसके परिवार को या उसे 25 हजार रूपए (' या केन्द्र सरकार द्वारा घोषित राशि ') देय होगी। मनरेगा में प्रावधान रहने के बाद भी मनरेगाकर्मी को अधिकार से वंचित कर दिया जाता है। जानकारी के अभाव में मनरेगाकर्मी अधिकार हक से लेने में पीछे रह जाते हैं। इसी श्रेणी में महादलित मुसहर समुदाय के शिवलाल मांझी भी हैं।
नक्सल प्रभावित जहानाबाद जिले के जहानाबाद सदर प्रखंड में सेवनन पंचायत है। इस समय सेवनन ग्राम पंचायत की मुखिया मंजू कुमारी सिन्हा हैं। इनके पंचायत में 10 गांव है। इन्हीं गांव में से सेवनन नामक गांव में सेवनन मुसहरी है। यहां पर 30 घरों में महादलित मुसहर रहते हैं। जनसंख्या 155 से अधिक ही है। एक जन भी मैट्रिक उर्त्तीण नहीं हैं। बीपीएल में शामिल हैं। जॉब कार्ड बना है। स्मार्ट कार्ड भी बना है। मगर नवीनीकरण नहीं किया गया है। यहीं पर स्व 0 जगलाल मांझी के पुत्र शिवलाल मांझी रहते हैं। बुजुर्ग हो गए हैं। फिर भी अन्य साथीगण के साथ दहारूड़चक से पतरीया तक पइ्रन उड़ाही का कार्य करने गए थे। इनका काम था कि टोकरी में मिट्टी भर जाने के बाद अन्य व्यक्ति के सिर पर टोकरी रखने में   सहायता करना। सहायता करना भारी पड़ गया। अपने साथी की टोकरी को सिर पर रख ही रहे थे कि दीघा के दूधिया पका मालदह आम पेड़ पर से टपक गया। उसी तरह एक कठोर मिट्टी का टुकड़ा शिवलाल मांझी की नाजूक आंख पर जा गिरी। गिरते ही बेहाल हो गए। कुछ साल पहले दोनों आंख की मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराए थे। असहनीय   पीड़ा होने लगा। दर्द से छपटाते रह गए। मनरेगा के प्रावधान के अनुसार कार्यस्थल पर ' सुरक्षित पेयजल , बच्चों की छाया , आराम करने का समय , छोटी - मोटी दुर्घटना और काम से जुड़े स्वास्थ्य खतरों के लिए सामग्री समेत प्राथमिक उपचार का डब्बा ( फर्स्ट एड बॉक्स ) का नामोनिशान नहीे था। कार्यस्थल पर किसी तरह की संुविधा मेट अथवा रोजगार सेवक के द्वारा नहीं पहुंचाने के कारण मायूष होकर घर गए। अगले दिन आंख लाल हो गयी। इसके साथ ही कठोर मिट्टी नरम आंख पर गिर जाने से आंख की रोशनी छू मंतर हो गयी। अब एक आंख का अंधा शिवलाल मांझी बन गए। बस दाहिनी आंख से ही शिवलाल मांझी दुनिया को देख पाते हैं।
घर के पास ही एक आंख का अंधा बन गए शिवलाल मांझी बैठे रहते हैं। जब कोई मनरेगा के बारे में कहते हैं। तो समझ नहीं पाते हैं। उनको महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत मिट्टी काटने वाले काम के बारे पूछा जाता है। तो शिवलाल मांझी तिलमिला जाते हैं। मनरेगा के मैदान में मार खाने वाले मनरेगाकर्मी बहुत ही रहस्यमयी ढंग से आंख पर चढ़ाए चश्मे को उतारते हैं। दाहिनी आंख खुली है और बायीं आंख बंद है। बस सवाल की तरह ही बायीं आंख को दिखाकर कर कहने लगते हैं। बाबू , सेवनन पंचायत के सेवनन गांव में ही मनरेगा का कार्य हो रहा था। दहाउड़चक से पतरीया तक पइन उड़ाही का कार्य हो रहा था। इसकी प्राक्कलित राशि 5 लाख 46 हजार रूपए था। 3 जनवरी 2012 से कार्यारंभ हुआ। हमलोग
काम करने गए थे। जितना दिन काम किए मजदूरी मिल गया।
 आगे कहते हैं कि कुछ साल पहले ही मोतियांबिन्द का   ऑपरेशन करवाए थे। ऑपरेशन के बाद काला चश्मा पहनते। उसके बाद सामान्य चश्मा पहने लगे। चश्मा पहनकर दोनों आंखों से दुनिया को देख पा रहे थे। लोकलाज और बगल में ही काम के रहने के कारण से चश्मा पहन नहीं पहने और काम करने लगे। साहब , होनी और अनहोनी को कौन जानता है ? हर दिन कुशलता से काम कर रहे थे। उस दिन क्या हो गया ? टोकरी को सिर पर रखने के ही दरम्यान एक कठोर मिट्टी का टुकड़ा नाजूक आंख पर जा गिरी। बस सब तमाशा ही खत्म हो गया। कोई पूछने वाला ही नहीं है। मुखिया जी , रोजगार सेवक , कार्यक्रम पदाधिकारी आदि कोई नहीं आए। लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ के लोग भी नहीं आए। गैर सरकारी संस्थाओं के लोग आते हैं और अपनी मर्जी से पूछताछ करके चले जाते हैं। सभी मतलबी हैं। अभी सपत्निक दाने - दाने के मोहताज हैं। पूर्णिमा की चांद की तरह शिवलाल मांझी और उनकी पत्नी चांदमुनर देवी को सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि मिलती है। शुरू में दो सौ के बदले में तीन सौ रूपए मिल रहा है।
महादलित शिवलाल मांझी को परिवार रोजगार कार्ड निर्गत किया गया है। इसका नम्बर 9749 है। 4 मई 2008 को इश्यु किया गया है। जो 2008-09 से 2012-13 तक तक कार्यावधि का है। इस कार्ड को देखना से पता चला कि शिवलाल मांझी और उनकी पत्नी चांदमुनर देवी कार्य की हैं। मगर परिवार रोजगार कार्ड में अंकित ही नहीं किया गया है। संपूर्ण पेज खाली पड़ा हुआ है। इससे साबित होता है कि मनरेगा को मारने की तैयारी सेवनन पंचायत में हो रहा है। किसी भी तरह से मनरेगा के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा रहा है। इस संदर्भ में पैक्स के सहयोग से प्रगति ग्रामीण विकास समिति के जहानाबाद जिला समन्वयक नागेन्द्र कुमार का कहना है कि मनरेगा के प्रावधान के अनुसार सुविधाएं उपलब्ध नहीं करायी जारी है।
Alok Kumar


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