मानपुर। अब अच्छे दिन भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करके लाने का प्रयास शुरू दिया गया है। अब भूमिधारकों के 70 प्रतिशत लोगों की सहमति को कम करके 50 प्रतिशत लोगों की सहमति कर देने पर मोदी सरकार अमादा है। कलतक विपक्षी भूमिका अदा करने वाले सत्तासीन हो जाने के बाद सूर बदलकर सहमति की मुहर लगाने को कटिबद्ध हैं।

नेताओं की राजनीति है कि अथवा वास्तविकता से कोई तालमेलः इस संदर्भ में गांधीवादी विचारक एवं एकता परिषद के संस्थापक अध्यक्ष पी.व्ही.राजगोपाल जी का कहना है कि जब
2012 में ऐतिहासिक जन सत्याग्रह पदयात्रा की गयी। उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि भाजपा नेताओं ने मेरा साथ और समर्थन दे रहे हैं। मेरी मांग के साथ सहमत हैं। ऐतिहासिक लांग मार्च में पैदल चलें। अब देखना है कि सरकार भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करने जा रही है। तो कितने सांसद (भारतीय जनता पार्टी) के भीतर से बाहर होकर विपक्ष की तरह विरोध कर रहे हैं!तक पता चला कि यह नेताओं की राजनीति है कि अथवा वास्तविकता से कोई तालमेल है। मेरे हिसाब से,
100 प्रतिशत सहमति होनी चाहिए। उस सहमति को अब सरकार कमजोर करने की कोशिश कर रही है।यह बहुमत 'हां' कहलाने में पैसा सत्ता और बाहुबल के साथ बहुमत प्राप्त कर सकते हैं क्योंकि एक बड़ा परिवर्तन होने जा रहा है कहना चाहिए कि शक्तिशाली लोग, शराब और पैसे का उपयोग करके बहुमत प्राप्त कर लेंगे।
पहले पब्लिक डोमेन लाओं: प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को ग्रामीण विकास मंत्रालय,का प्रस्तुत एक नोट में स्पष्ट किया गया है। भूमि अधिग्रहण कानून के तहत 70 प्रतिशत प्रभावित लोगों की सहमति अनिवार्य है। इस तरह की सहमति और प्रावधानों को कमजोर करने की साजिश शुरू है। भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन की एक श्रृंखला का सुझाव दिया है। 70 से पीपीपी परियोजनाओं के लिए 50 प्रतिशत करने के लिए अनिवार्य सहमति को कम करने के निहितार्थ है। भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधनों को सार्वजनिक डोमेन में रखा जाना चाहिए। इसके बाद मंत्रिमंडल द्वारा पारित करके मंत्रालय को भेजा जाना। अभी भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन को पीएमओ के बाद मंत्रालय में चला गया है। तो मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट पर डाल देना चाहिए था । मगर ऐसा कुछ भी नहीं किया गया।
आलोक कुमार
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